जेजे बोर्ड सजा के समानांतर पुनर्वास भी सुनिश्चित करते हैं : खुरानिया

 

                          (संतोष दूबे) 

 सीसीएफ़ की 45 वी ई संगोष्ठी में फिलीपींस से भी जुड़े प्रतिभा, जेजे बोर्ड की कार्यप्रणाली को समझने के लिए 18 राज्यों से प्रतिनिधियों ने लिया भाग

 संतकबीरनगर उत्तर प्रदेश /भोपाल। जुबेनाइल जस्टिस एक्ट 2016 में छोटे अपराधों में पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने का प्रावधान नही है। जेजे बोर्ड ऐसे मामलों को पहली पेशी में ही निपटाया जा सकता है।जेजे बोर्ड की अवधारणा कोर्ट से बिल्कुल पृथक है क्योंकि यह सामाजिक भागीदारी केंद्रित सुधार व्यवस्था है जो न्याय औऱ अपराध शास्त्र के सामान्य सिद्धान्तों औऱ विहित प्रक्रियाओं पर काम नही करती है।देश के ख्यातिनाम किशोर न्याय विशेषज्ञ अरविंद खुरानिया ने आज यह बात चाईल्डकंजर्वेशन फाउंडेशन की 45 वी ई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। जेजे बोर्ड की कार्यपद्धति और शक्तियों पर केंद्रित आज की संगोष्ठी में 16 राज्यों के जेजेबी सदस्यों ने भागीदारी की।खासबात यह भी रही कि फिलीपींस के सेंट कार्लो विश्वविद्यालय से भी बाल अधिकार विशेषज्ञ इस संगोष्ठी में शामिल हुए।

श्री खुरानिया ने बारीकी औऱ विस्तार के साथ किशोर न्याय बोर्ड की भूमिका से सदस्यों को अवगत कराया।उन्होंने बताया कि मूल रुप से यह कानून बालकों को बालमन या अनजाने में हुए अपचार को भूलाकर उन्हें एक सुगम्य और जबाबदेह नागरिक बनाने का वातावरण समाज में उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है।इसीलिए छोटे अपराधों में पुलिस प्रकरण दर्ज नही करने का प्रावधान है।संगीन अपराधों को छोड़कर यह कानून मूलतः बालकों के सामाजिक समेकन पर केंद्रित करता है।उन्होंने बताया कि किशोर की परिधि में आने वाले सभी बालकों के अपराध से जुड़े मामलों को अधिकतम 6 माह में जेजे बोर्ड को निपटाना होता है।यह प्रक्रिया किसी ट्रायल की तर्ज पर न होकर जांचसंवत होती है।बोर्ड के आदेश केवल सजा या माफी नही बल्कि पुनर्वास औऱ सुरक्षा पर केंद्रित होते है।श्री खुरानिया ने बताया कि किसी भी मामले में नाबालिग को पकड़े जाने की दशा में उसे 24 घण्टे के अंदर जेजे बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है।इसके लिए हर जिले में रोस्टर का प्रावधान होता है जो 24 घण्टे प्रधान मजिस्ट्रेट एवं दो सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।श्री खुरानिया के अनुसार छोटे अपराध के मामले में बालकों को जमानत पर नही छोड़ना केवल उन्हीं परिस्थितियों में श्रेयस्कर है जब चिन्हित बालक की जानमाल की सुरक्षा सहसबन्धित घटनाक्रम या सह अपराधियों से प्रभावित होने का खतरा हो अथवा अपचारी बालक द्वारा पुनः अपराध किये जाने का अंदेशा हो।अन्यथा सभी मामलों में बालकों को प्रथम दिवस ही परिवार या सरंक्षक को सौंप दिया जाना चाहिये।
श्री खुरानिया ने बताया कि बच्चों के किसी भी प्रचलित या बंद किये जा चुके प्रकरण की जानकारी किसी असम्बद्ध पक्ष को कभी भी लीक नही की जा सकती है।गोपनीयता का यह सिद्धांत जेजे एक्ट की बुनियादी विशेषताओं में एक है।सुनवाई के दौरान भी कोर्ट रूम से अलग एक चाइल्ड फ्रेंडली माहौल में विहित प्रक्रिया पूरी की जाती है जिसमें बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषिद्ध रहता है।जेजे बोर्ड का यह दायित्व है कि वह अपचारी बालकों के मामले में आवश्यकतानुसार मेडिकल,लीगल,रहवास एवं अन्य जीवनोपयोगी सुविधाओं का इंतजाम जिला बाल कल्याण यूनिट के माध्यम से सुनिश्चित करे। श्री खुरानिया के अनुसार नियमित कोर्ट में अगर कोई यह दावा करता है की अपराध दिनांक को वह बालक था यानी 18 साल से कम था तब उसकी तस्दीक के लिए न्यायालय ऐसे मामलों को जेजे बोर्ड के पास भेजने के लिए बाध्य है।अगर किसी नाबालिग का यह दावा सही निकलता है तो उच्चतर कोर्ट द्वारा दी गई उसकी सजा भी शून्य होने का प्रावधान इस एक्ट में है। श्री खुरानिया के अनुसार बोर्ड में पदस्थ सामाजिक कार्यकर्ताओं को नियमित अंतराल से स्थानीय जेलों ,नारी निकेतनों का निरीक्षण करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि वहाँ कोई बालक तो निरुद्ध नही है।उन्होंने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि वे निरन्तर एक्ट का अध्ययन करते रहे क्योंकि देश मे अभी भी पुलिस और शेष स्टेक होल्डर्स इस एक्ट के क्रियान्वयन में अन्य कानून की तरह पारंगत नही है इसलिए अक्सर विसंगतियों की खबरे आती रहती है।

चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि यह पिछले साल लोकडाउन में मप्र के सदस्यों के लिए आरम्भ की गई ई संगोष्ठी की श्रंखला आज देश के 18 राज्यों से होती हुई फिलीपींस तक जा पहुंची है।इसके लिए उन्होंने फाउंडेशन की कोर टीम औऱ सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे के प्रयासों को सराहा।संगोष्ठी का संचालन फाउंडेशन के आईटी सेल प्रभारी श्री अनिल गौर ने किया। वेबिनार में अमित कुमार उपाध्याय अध्यक्ष बाल कल्याण समिति संत कबीर नगर उत्तर प्रदेश ने भी प्रतिभाग किया।

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