मारा गया मामा मारीच : सीता हरण, जटायु मरण, बालि वध के साथ शबरी से मिले राम

                             (विशाल मोदी) 

बस्ती (उ.प्र.)। सनातन धर्म संस्था बस्ती द्वारा आयोजित श्रीराम लीला महोत्सव में आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, लखन लाल और माता जानकी के वनवास के दृश्य का मंचन करते हुए कलाकारों ने बहुत ही मनमोहक और जीवंत अभिनय किया। वनवास की अवधि में पंचवटी में खर, दूषण का वध और सूपनखा के नाक कान काटे जाने की प्रस्तुतियों के मध्य पूरे पण्डाल में हजारों तालियों के साथ जय श्रीराम के नारों से वातावरण गुंजायमान हो उठा। दसकंधर ने मारीच के साथ मिलकर छल किया और जानकी जी हरण कर अशोक वाटिका में ले गया है। भगवान राम लखन लाल के साथ मां जानकी की खोज में वन वन भटक रहे हैं।

हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम देखी सीता मृगनयनी।।

मैं बैरी सुग्रीव पियारा। कारन कवन नाथ मोहि मारा।।

 अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥

इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई।। 

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी बालि से कहते हैं - हे मूर्ख ! सुन - छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री और कन्या - ये चारों समान हैं। इनको जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता।

बस्ती में रामलीला के छठें दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि मंगलवार (एक अक्टूबर 2022) को स्कूली बच्चों ने मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला करते हुए अपनी भूमिकाओं के चरित्र चित्रण से दर्शकों को अपने वश में कर लिया। एक दिन पूर्व सोमवार को भरत मिलाप की लीला थी। भरत जी तीनों माताओं और शत्रुघ्न जी के वन में राम जी से मिलने जाते हैं और सीताजी व लखन लाल से अयोध्या प्रस्थान कर रामजी से राजपाट संभालने और स्वयं वनवास की अवधि श्रीराम जी स्थान पर स्वयं वन में व्यतीत करने का हठ करते हैं। भगवान श्रीराम भरत जी को समझाते हैं। भरत जी श्रीराम की चरण पादुका सिर माथे पर लेकर अयोध्या जाते हैं। सिंहासन पर चरण पादुका रखकर स्वयं कंदरा में निवास करते हैं और राजपाट का कुशल संचालन करते हैं। प्रजा सुखी और संतुष्ट है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं - 

विश्व भरण पोषण कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।

आज की लीला में पंचवटी में राक्षसों के साम्राज्य को तहस नहस करने की प्रक्रिया आरम्भ होती है। खर और दूषण का वध हो जाता है। लखन लाल ने सूपनखा के नाक और कान काट दिये। सूपनखा रावण की बहन है, सो वह रोते बिलखते रावण के पास जाती है और वहां बिलख बिलख कर सारी बात बताती है। और रावण को बहन के अपमान का और खर दूषण की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए प्रेरित करती है और धिक्कारती है। रावण को यह ज्ञात है कि राम नारायण का अवतार हैं, सो वह छल करने के लिए अपने मामा मारीच के पास सहयोग के लिए जाता है। मारीच के द्वारा उसके प्रस्ताव का विरोध करने पर उसे मृत्यु का भय दिखाकर अपने पक्ष में कर लेता है। उधर मारीच भी यह सोचता है कि यदि मृत्यु होनी ही है तो साक्षात नारायण के हाथों से हो। मारीच स्वर्ण मृग का वेश बनाकर पंचवटी में जाता है। जानकी जी रामजी से स्वर्ण मृग का आखेट करने का हठपूर्वक आग्रह करती हैं। भगवान राम माता सीता की देखरेख का दायित्व लखन जी पर छोड़कर मारीच के पीछे जाते हैं। बाण लगते ही मारीच छल पूर्वक राम के स्वर में लक्ष्मण को पुकारता है और मर जाता है। मारीच के इस छल से अनजान माता जानकी लक्ष्मण को राम की सहायता के लिए भेजती हैं और लक्ष्मण जी सम्भावित षड्यंत्र को भांपकर सीता जी को लक्ष्मण रेखा के अन्दर ही रहने की निवेदन कर वन में राम जी को ढूंढ़ने चले जाते हैं।
दोनों भाई लौटकर आते हैं, तो कुटिया सूनी देखकर व्याकुल हो जाते हैं और सीता माता को ढूंढन लगते हैं। तभी रामनाम जपते जटायु के स्वर सुनाई देते हैं और जटायु सीता हरण की सूचना देकर रामजी के चरणों में अपने प्राण त्याग देता है।
इसके पश्चात् दोनों भाई शबरी की कुटिया में पहुंचते हैं और शबरी से ही उसका पता पूछते हैं। शबरी जो राम की भक्ति में लीन और उनकी प्रतीक्षा में अपना जीवन समर्पित कर चुकी होती है। राम और लक्ष्मण को अपने सम्मुख पाकर भाव विभोर हो जाती है। धन्य हो जाती है। एक पल के लिए उसे जैसे विश्वास ही न हो रहा हो ऐसे राम को अपलक निहारने लगती है। शबरी कहती है राम तुम आ गये और राम उसके आतिथ्य को स्वीकार करते हुए भीलनी के बेर को बड़े चाव से खाते हैं। लखन लाल की भृकुटि उनके चिर परिचित स्वभाव के अनुसार तन जाती है और शबरी के बेर न खाकर पीछे फेंक दिया करते हैं, राम जी लखन लाल को बताते हैं कि बेर बहुत ही मीठे हैं। शबरी का जीवन हो गया। वह तर गई। ये वही नारायण हैं जिन्हें कहा जाता है - शबरी के बेर, सुदामा के तन्दुल - साग विदुर घर खायो मेरे भगवन।

 श्रीराम और लखन लाल की भेंट हनुमान जी से होती है। वे दोनों भाईयों को सुग्रीव से मिलवाते हैं और अपने कंधे पर बैठाकर ले जाते हैं। सुग्रीव ने भगवान से अपनी सारी व्यथा बताई। कैसे उसके बड़े भाई ने अत्याचार किया और उसे राज्य से भगा दिया। यहीं प्रभु श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हो जाती है। अग्नि को साक्षी मानकर दोनों मित्र एक दूसरे का साथ देने और मित्रता के निर्वहन का वचन एक दूसरे को देते हैं।
सुग्रीव द्वारा भगवान राम को बालि की शक्ति के सम्बन्ध में अवगत कराया जाता है। राम जी सुग्रीव को बालि के पास ललकारते हुए युद्ध करने को भेजते हैं। एक बार सुग्रीव और बालि का युद्ध होता है और राम जी बालि पर बाण इसलिए नहीं चला पाते कि बालि और सुग्रीव एक जैसे दिखते हैं। भगवन यह सोचते हैं कि ऐसा न हो कि बालि के चक्कर में सुग्रीव को बाण लग जाय। पराजित होकर सुग्रीव पुन: रामजी के पास आता है और सहायता न करने की उलाहना देता है। भगवान सुग्रीव को माला पहनाते हुए बाण न चलाने का कारण बताते हैं और कहते हैं अब मैं तुम्हें इसी माला से पहचान लूंगा और बालि पर प्रहार अवश्य होगा। इस बार बालि मारा जाता है। प्राण त्यागने से पूर्व बालि श्रीराम से अपने वध का कारण पूछता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में लिखते हैं, बालि कहता है - मैं बैरी सुग्रीव पियारा। कारन कवन नाथ मोहि मारा ।। श्रीराम बालि को उसका दोष बताते हैं और बालि अंगद और श्रीराम से भेंट कराता है और प्राण त्याग देता है। भगवान राम की सहायता से सुग्रीव को पम्पापुर का राजपाट प्राप्त होता है। इस प्रकार माता सीता की खोज में भगवान को बानर सेना मिल गयी है और विस्तार भी होने लगा है। छठें दिन की लीला का यहीं विश्राम है। आगे की लीलाओं का दर्शन आज सायं सात बजे से होगा। बस्ती में मण्डल मुख्यालय पर सनातन धर्म संस्था बस्ती द्वारा रामलीला का मंचन बस्ती क्लब में (निकट पुलिस अधीक्षक आवास कचहरी बस्ती) में कराया जा रहा है। रामलीला सायं 7 बजे से रात साढ़े 10 बजे तक होती है। रामलीला 4 अक्टूबर तक होगी। इस मनोहारी रामलीला में पधारकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के जीवन चरित्र का रसपान करें। रामजी का चरित्र रामलीला के माध्यम से समाज के लिए संस्कारशाला है। रामलीला में पधारकर सनातन धर्म संस्था के अभियान का हिस्सा बनें।

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