दक्षिण भारत की झांसी की रानी अंजलाई अम्माल : आजादी का अमृत महोत्सव

            !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज हैं दक्षिण भारत की महान महिला स्वतन्त्रता सेनानी, जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम के हर आन्दोलन में हिस्सा लिया। जेल गयीं तथा अपनी पारिवारिक जमीन और अपना घर तक बेच दिया था और सारा धन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के लिए खर्चा किया था। वह बेहद साहसी थीं। उनके साहस को देख राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने खुद उन्हें दक्षिण भारत की झाँसी की रानी कहा था। 

                             प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

66 - "अंजलाई अम्माल" - भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की एक प्रमुख सेनानी एवम् कदलूर की एक सामाजिक कार्यकर्ता व सुधारक थीं। उनका जन्म 1890 में मुदुनगर नामक एक साधारण शहर के साधारण परिवार में हुआ था। जो कदलूर में स्थित है। उन्होंने कक्षा 5वीं तक की शिक्षा ग्रहण की थी। उनके पति का नाम मुरूगप्पा था जो एक पत्रिका में एजेन्ट थे। जब महात्मा गाँधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आन्दोलन शुरू किया तो वे स्वाधीनता संग्राम में शामिल हो गयीं और अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। बाद में उन्होंने नील मूर्ति सत्याग्रह, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था तथा साढे सात साल तक जेल में रहीं। वर्ष 1921 गैर सहकारी आंदोलन में भाग लेने वाली दक्षिण भारत की पहली महिला थीं।

अंजलाई अम्माल ने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में संघर्ष के लिए अपनी पारिवारिक जमीन व अपना घर तक बेच दिया था और सारा पैसा देश को आज़ाद कराने के लिए किए जा रहे संघर्ष में खर्चा किया था। उन्होंने भारत के 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के नरसंहार के लिए जिम्मेदार एक ब्रिटिश अधिकारी नील की प्रतिमा हटाने के लिए अपनी 9 वर्षीय बेटी के साथ संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लिया। जिसके लिए उन्हें जेल हुई। एक बार जब महात्मा गाँधी जी कदलूर आए तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अंजलाई अम्माल से मिलने पर रोक लगा दी। लेकिन अंजलाई अम्माल घोड़े की गाड़ी में बुर्का पहनकर महात्मा गाँधी जी से मिलने के लिए आ गयीं। उनके साहस को देख खुद महात्मा गाँधी जी ने उन्हें दक्षिण भारत की झाँसी की रानी कहा था तथा उनकी बेटी अम्माकन्नु का नाम लीलावथी रखा और उन्हें वर्धा आश्रम लेकर गए। सन् 1930 के नमक सत्याग्रह में अंजलाई अम्माल बुरी तरह से घायल हो गयी थीं। सन् 1931में उन्होंने अखिल भारतीय महिला काँग्रेस कमेटी की अध्यक्षता की थी।
सन् 1932 में ही उन्होंने एक और संघर्ष में भाग लिया जिसके लिए गर्भवती होने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार कर बेल्लोर जेल भेज दिया गया था। गर्भावस्था के बावजूद जेल की ज़िन्दगी का उन्हें कोई डर नहीं था। प्रसव के समय उन्हें जमानत पर रिहा किया गया तथा बेटे के जन्म के बाद उन्हें वापस फिर से जेल भेज दिया गया था। अंजलाई अम्माल ने विदेशी कपड़ों के वहिष्कार में भी भाग लिया और 6 महीने के लिए जेल गयीं। 1947 में देश की आज़ादी के बाद वह तमिलनाडु विधान सभा की सदस्य रहीं। अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान तीर्थपलयम की पेयजल समस्या को हल करना था। समस्या के समाधान के लिए अंजलाई अम्माल ने नेवीरनम नहर से तीर्थपलयम तक एक शाखा नहर बनाने की परियोजना पर काम किया था, उस नहर को आज "अंजलाई नहर" कहा जाता है। 20 जनवरी 1961 को उनका निधन हो गया। 

आइए हम महान देशभक्त स्वतन्त्रता संग्राम की प्रमुख महिला वीरांगना को हम प्रणाम करें! उनसे प्रेरणा लें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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