ओडिशा की स्वतंत्रता सेनानी चुन्नी आपा : आजादी का अमृत महोत्सव

 

              !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज - ओडिशा की प्रसिद्ध महिला स्वतन्त्रता सेनानी जिन्होंने 180 किलोमीटर पैदल मार्च चलकर छेड़ी थी आज़ादी की जंग। ये ओडिशा में "चुन्नी आपा" के नाम से भी जानी जाती हैं। महान महिला स्वतन्त्रता सेनानी हैं "अन्नपूर्णा महाराणा" 

                               प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

57 - अन्नपूर्णा महाराणा उर्फ चुन्नी आपा एक प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और समाज सुधारक थीं। बचपन से ही देश की स्वतन्त्रता के लिए सक्रिय रूप से प्रचार करना शुरू कर दिया था। सन् 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान अनेकों बार जेल गयी थीं। सारा जीवन वे गाँधीवादी आदर्शों और सिद्धान्तों पर चलती रहींं। उनका जन्म नबकृष्ण चौधरी परिवार में 03 नवम्बर 1917 को ओडिशा में हुआ था। माता का नाम रमा देवी और पिता का नाम गोपबंधु चौधरी था। माता पिता दोनों ही महान स्वतन्त्रता सेनानी थे। पिता गोपबंधु ब्रिटिश सरकार में मजिस्ट्रेट थे। जिनका अपना एक रूतबा था, परन्तु महात्मा गाँधी जी के आह्वान पर उन्होंने अँग्रेजी सरकार की मजिस्ट्रेट की नौकरी छोड़कर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद गए थे। अपने पिता से ही प्रभावित होकर अन्नपूर्णा महाराणा भी उनके नक्शे कदम पर चल पड़ी थीं। मात्र 14 वर्ष की उम्र से ही उन्होंने अँग्रेजों के खिलाफ चलने वाले आन्दोलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था और महात्मा गाँधी की समर्थक बन गयी थींं। उन्होंने "बानर सेना" ज्वाइन की जो बच्चों की एक ब्रिगेड थी और इंडियन नेशनल काँग्रेस की मदद किया करती थीं। सन् 1930 में "नमक आन्दोलन" के समय उनकी पहली बार गिरफ्तारी हुई थी। उस दौरान उन्होंने 6 महीने कटक और जाजपुर जेलों में बिताई थी। सन् 1931में बहुत ही युवा आन्दोलनकारी के रूप में उन्होंने कराची में हुई "इंडियन नेशनल काँग्रेस" की मीटिंग में भाग लिया। उसी उम्र में उन्हें सीमान्त गाँधी कहे जाने अब्दुल गफ्फ़ार खान से भी जुड़ने का मौका मिला था। वे इंडियन नेशनल काँग्रेस की एक एक्टिव मेम्बर थीं, इसलिए उनके पास काँग्रेस की हर कांफ्रेन्स में भाग लेने का मौका होता था। वर्ष 1934 और 1938 में महात्मा गाँधी जी जब ओडिशा गए तो को आर्डिनेटर के रूप में उन्होंने अपने राज्य का प्रतिनिधित्व किया था। महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में 1934 में ही "पुरी से भद्रक" तक "हरिजन पद यात्रा" में पूरे जोश के साथ अपनी भागीदारी निभाई थी। सन् 1942 में उन्होंने ओडिशा के ही शरत चन्द महाराणा से अन्तरजातीय विवाह किया। जो समाज में जाति को लेकर चलने वाले भेदभाव पर उनका प्रहार था। जिस पर उनके परिवार ने भी उनकी शादी पर कोई आपत्ति नहीं की थी। उनके पति जाने माने शिक्षाविद थे। जिन्होंने बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया था। बच्चों को चरखा बनाना सिखाया गया और रोजाना गाँव की सफाई का जिम्मा सौंपा गया था। जिसके लिए उन्हें समय समय पर कई सम्मानों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें ओडिशा से सम्मानित सम्मान "उत्कल रत्न" से भी सम्मानित किया गया था। पति पत्नी दोनों ही समाज और देश के लिए सोचने वाले व्यक्ति थे।

शरत चन्द जी को "बुनियादी शिक्षा" का अग्रणी माना जाता था। अगस्त 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन व सविनय अवग्या अभियान के दौरान अन्नपूर्णा महाराणा को अँग्रेजों द्वारा कई बार गिरफ्तार किया गया था। ओडिशा में आन्दोलन को आगे बढाने वाली अन्नपूर्णा महाराणा स्वतन्त्रता के साथ साथ महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाती थीं! 1942 से 1944तक ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कटक जेल में बन्द कर दिया था! 15अगस्त 1947 को देश के स्वतन्त्र होने के बाद भी वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहीं! पहले देश की आज़ादी के लिए लड़ीं आज़ादी के बाद समाज में महिलाओं बच्चों और आदिवासी समाज के उत्थान के लिए निरन्तर नि:स्वार्थ रूप से समर्पित रही थीं! उन्होंने अपने राज्य के जनजातीय समुदाय के बीच जाकर न केवल उनकी समस्याओं को जाना पहचाना था बल्कि उन्हें दूर करने की कोशिश भी की थी! ओडिशा के रायगढ जिले में आदिवासी बच्चों की पढाई के लिए एक स्कूल खोला उनकी बेहतरी के लिए बड़े पैमाने पर काम किया! साथ ही उन्होंने चंबल घाटी के डकैतों के लिए भी काम किया! 1950 में आचार्य विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए "भूदान आन्दोलन" में अपनी माँ की तरह ही बढ चढकर हिस्सा लिया था! 1964 में राउरकेला के सांप्रदायिक दंगों के दौरान उन्होंने "शांति रक्षक" के रूप में काम किया था! 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश में मानवीय संकट के समय आगे बढकर सहायता भी पहुँचाई थी।
1975 की इमरजेंसी के समय उन्होंने अपनी माँ रमा देवी की ग्रामसेवा प्रेस द्वारा प्रकाशित अखबार की मदद से विरोध जताया था। उसके अलावा उन्होंने सर्वोदय आन्दोलन के प्रचार प्रसार के लिए पूरे विश्व में कई कांफ्रेंस आयोजित की थी। वे सर्वोदय के विचारों से काफी प्रभावित थीं। आज़ाद भारत में वे केवल सामाजिक कार्यों तक ही सीमित नहीं थीं। उन्होंने अपने सीमित समय से वक्त निकालकर महात्मा गाँधी जी और विनोबा भावे जी की किताबों का उड़िया भाषा में अनुवाद भी किया था। चंबल दस्यु समर्पण के अनुभवों पर "दस्यु ह्रदयारा देवता" लिखा। उसके अलावा उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़े अपने कई अनुभवों पर भी कई किताबें लिखीं। सन् 1999 में उड़ीसा में आए सुपर साइक्लोन के दौरान अपने भाई मनमोहन चौधरी के साथ पीड़ितों को राहत प्रदान करने की दिशा में उन्होंने बड़े पैमाने पर काम किया था। 2009 में उनके पति शरद महाराणा की मृत्यु हो गयी। ओडिशा के केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने 19 अगस्त 2012 को आयोजित एक समारोह में अन्नपूर्णा महाराणा को "ऑनोरिस कौसा" (मानद उपाधि) से सम्मानित किया था। 96 साल तक भरपूर व सक्रिय ज़िन्दगी जीते हुए 31दिसम्बर 2012 को वे इस संसार से विदा हो गयीं। ओडिशा के राज्यपाल मुरलीधर चन्द्रकांत भंडारी और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी ने उनकी मृत्यु को भारत और ओडिशा की अपूर्णनीय क्षति के रूप में वर्णित किया था। महान स्वतन्त्रता सेनानी और समाज सुधारक अन्नपूर्णा महाराणा द्वारा देश की आज़ादी के लिए और समाज में महिलाओं बच्चों और आदिवासी समाज के लिए किए गए उनके कार्य समर्पण आदि उनका सम्पूर्ण जीवन ही हमारे लिए प्रेरणाश्रोत है। 

 आइए हम महान स्वतन्त्रता सेनानी समाजसुधारक अन्नपूर्णा महाराणा जी को प्रणाम करें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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