महान स्वतंत्रता सेनानी कमला दास : आजादी का अमृत महोत्सव

               !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज हैं बंगाल की प्रसिद्ध क्रान्तिकारी तथा समाज सेविका जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए क्रान्तिकारी आन्दोलनों में भाग लेने के कारण साल 1933 से 1936 तक लगातार जेल में रहीं और अपने ही घर में नज़रबन्द भी रही थीं। ये महान महिला स्वतन्त्रता सेनानी हैं "कमला दास गुप्ता"। ये बंगाल की एक महान क्रान्तिकारी और समाज सेविका थीं।

                               प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

69 - कमला दास गुप्ता का जन्म ढाका के बिक्रमपुर में 11मार्च 1907 को हुआ था। जो अब बांग्लादेश में है। उनके पिता का नाम सुरेन्द्रनाथ दास गुप्ता था जो परिवार के साथ बाद में कलकत्ता जाकर रहने लगे थे। कमला दास गुप्ता ने कोलकाता विश्वविद्यालय के बैथ्यून कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। कोलकाता में विश्वविद्यालय में मिले युवाओं में राष्ट्रवादी विचार मौजूद थे। उनके सम्पर्क से उनके अन्दर भी देशभक्ति की भावना जागृत हो गयी। वह महात्मा गाँधी जी के विचारों से बेहद प्रभावित थीं। वे भी स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेना चाहती थीं जिसके लिए वह अपनी पढाई बीच में ही छोड़कर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के साबरमती आश्रम जाना चाहती थीं। परन्तु उनके पिता ने अनुमति नहीं दी थी।

कमला दास गुप्ता ने अपनी पढाई पूरी की, तभी उनका सम्पर्क बंगाल के कुछ क्रान्तिकारियों से हो गया और वह युगान्तर पार्टी में सम्मिलित हो गयीं। घर में रहकर पार्टी की गुप्त गतिविधियों में संलग्न होना कठिन देखकर वर्ष 1930 में उन्होंने घर छोड़ दिया और गरीब महिलाओं के लिए छात्रावास की प्रबन्धक के रूप में नौकरी कर ली। वहाँ उन्होंने क्रान्तिकारियों के लिए बम बनाने की सामग्री संग्रहित और कूरियर की। बम विस्फोटों के सिलसिले में उनकी गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हो गया। उनकी गिरफ्तारी होती थी परन्तु सबूतों के अभाव में उन्हें हर बार रिहा कर दिया जाता था। बंगाल के गवर्नर पर गोली चलाने वाली रिवॉल्वर महान महिला क्रान्तिकारी बीना दास को उन्होंने ही उपलब्ध करायी थी। परन्तु पक्का प्रमाण न मिलने के कारण गिरफ्तार करने के बाद फिर से उन्हें छोड़ दिया गया था। सन् 1933 में अँग्रेज आखिरकार उन्हें सलाखों के पीछे डालने में सफल हो गए। सन् 1936 में उन्हें रिहा कर दिया गया और घर में ही नज़रबन्द कर दिया गया। साल 1933 से लेकर 1936 तक उन्हें कई बार गिरफ्तार होना पड़ा। जेल गयीं और बाद में अपने ही घर में नज़रबन्द कर दी गयी थीं। 1938 में जब अँग्रेजों के विरूद्ध आन्दोलन में क्रान्तिकारी भी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस से जुड़ गए तो कमला दास गुप्ता भी काँग्रेस में सम्मिलित हो गयीं। सन् 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन में भी वह जेल गयी थीं।
 कमला दास गुप्ता को राजनीति के साथ साथ समाज सेवा के कार्यों में भी बहुत रूचि थी। उन्होंने साम्प्रदायिक दंगों से पीड़ित लोगों की भी बहुत सहायता की। वह राहत कार्यों में शामिल हो गयीं। विशेष रूप से 1942 और 1943 के बर्मी शरणार्थियों के साथ और 1946-47में सांप्रदायिक दंगों के शिकार लोगों के साथ। साल 1946 में जिस समय महात्मा गाँधी ने दंगा पीड़ित नोआखली की पैदल यात्रा की थी। वहाँ सहायता कार्य की प्रमुख कार्यकर्ता (राहत शिविर की प्रभारी) कमला दास गुप्ता ही थीं। महिलाओं को आजीविका की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से उन्होंने महिला शिल्प कला केन्द्रों की स्थापना की थी। दक्षिणेश्वरी नारी स्वावलंबी सदन में महिलाओं के व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए भी काम किया। उन सभी कामों के अतिरिक्त कमला दास गुप्ता की पत्रकारिता और साहित्य में भी रूचि थी। उन्होंने कई वर्षों तक अभूतपूर्व महिला पत्रिका "मंदिरा" का संपादन किया था। उन्होंने बंगाली में दो संस्करण भी लिखे - रैक्टर अक्षरे (इन लेटर्स ऑफ ब्लड 1954) और स्वाधीनता संग्रामे नारी (स्वतन्त्रता आन्दोलन में महिलायें 1963)। महान स्वतन्त्रता सेनानी व समाजसेविका कमला दास गुप्ता जी का 19 जुलाई 2000 को कोलकाता में निधन हो गया।

भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए जानी जाने वाली महान महिला स्वतन्त्रता सेनानी, लेखिका और समाजसेविका कमला दास गुप्ता जी को आइए हम याद करें! उनसे प्रेरणा लें! सादर नमन! भावपूर्ण श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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