महान स्वतंत्रता सेनानी मदर आफ द ईयर अम्मु स्वामीनाथन : आजादी का अमृत महोत्सव

 

                !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की एक सेनानी सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता जिन्हें "अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष" के उदघाटन पर वर्ष 1975 में "मदर ऑफ द ईयर" के रूप में चुना गया था। वह महान महिला स्वतन्त्रता सेनानी हैं "अम्मु स्वामीनाथन"

                                  प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

45 - अम्मु स्वामीनाथन एक बलशाली, दृढ इच्छाशक्ति, मुखर व्यक्तित्व वाली तमिलनाडु की एक तेजतर्रार गाँधीवादी नेता थीं। उनका जन्म - वर्तमान केरल के पलक्कड़ जिले में 22अप्रैल 1894 को हुआ था। उनके विचार बहुत कम उम्र से ही नारीवादी थे जो एक समाजसुधारक और राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी गतिविधियों में प्रकट होता रहा। अपने आसपास होने वाले अन्याय के खिलाफ वे बहादुरी से खड़ी रहीं और सक्रिय रूप से रचनात्मक परिवर्तन लाने के लिए भी उन्होंने काम किया।

अम्मु एक उत्साही लड़की थीं मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही उन्हें शादी की सम्भावना का सामना करना पड़ा था। उनके पिता का नाम गोविन्द मेनन था जो एक स्थानीय अधिकारी थे। अम्मु स्वामीनाथन के माता पिता दोनों नायर जाति (छोटी जाति) से थे। अम्मु अपने माता पिता की 13 सन्तानों में सबसे छोटी बेटी थीं। उस जमाने में घर से दूर सिर्फ लड़कों को पढने भेजा जाता था इसलिए अम्मु कभी स्कूल नहीं जा पायीं। पिता के निधन के बाद उनकी माँ परिवार की मुखिया थी उनके मज़बूत व्यक्तित्व का असर उन पर भी पड़ा था। उन्होंने घर पर ही मलयालम में थोड़ी बहुत शिक्षा ग्रहण की थी, जिसमें मलयालम में न्यूनतम पढ़ना लिखना, खाना बनाना, घर सँभालना और विवाहित जीवन के लिए तैयार करना शामिल था। बचपन में ही अम्मु के पिता ने सुब्बाराम स्वामीनाथन नाम के लड़के की प्रतिभा को देखते हुए उनकी मदद की थी। छात्रवृत्तियों के सहारे स्वामीनाथन को देश विदेश में पढ़ने का मौका मिला। पढ़ाई पूरी कर स्वामीनाथन ने मद्रास में वकालत शुरू कर दी। अम्मु ने बहुत कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था। उनकी माँ ने अपने बच्चों की परवरिश करने और कई बेटियों की शादी करने के लिए संघर्ष किया था।
अम्मु बचपन से ही गलत के खिलाफ़ आवाज़ उठाना और अपनी बात को मुखरता से कहना सीखा था। सुब्बाराम स्वामीनाथन जब अम्मु के गाँव आए तो अम्मु के पिता के देहान्त की खबर मिली। स्वामीनाथन अम्मु के घर गए और बगैर कुछ सोचे समझे उनकी माता जी के सामने अपनी शादी करने का प्रस्ताव रख दिया कि यदि उनकी कोई बेटी उनके योग्य हो तो शादी के लिए उत्सुक हैं। उस वक्त अम्मु की उम्र मात्र 13 वर्ष थी और स्वामीनाथन अम्मु से 20 वर्ष बड़े थे। अम्मु की माँ ने कहा छोटी बेटी बची है, और यह कहकर मना कर दिया था कि वह बहुत चंचल है घर क्या सँभालेगी। स्वामीनाथन ने तब अम्मु से बातें करने की इच्छा व्यक्त की और माँ की स्वीकृति मिलने पर उन्होंने अम्मु से बात की। उन्हें उनकी बातें अच्छी लगीं और उन्होंने पूछ लिया कि क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? अम्मु बचपन से ही मुखर स्वभाव की थी इसलिए मुखरता से कहा कर सकती हूँ पर मेरी कुछ शर्त हैं। "मैं गाँव में नहीं शहर में रहूँगी और मेरे आने जाने के बारे में कोई सवाल न पूछे क्योंकि उन्होंने शुरू से ही अपने घर में अपने भाइयों से कोई सवाल होते हुए नहीं देखा।" स्वामीनाथन ने सारी शर्त मान ली। उस ज़माने में किसी ब्राम्हण की शादी नायर महिला से नहीं होती थी। केवल सम्बन्ध स्थापित करना सम्भव था। परन्तु स्वामीनाथन जी सम्बन्ध जैसी प्रथा के सख्त विरोधी थे। उन्होंने 1908 में अम्मु से शादी की और विलायत जाकर कोर्ट मैरिज की। ब्राम्हण समाज ने खुलकर उन दोनों की शादी का विरोध किया परन्तु सुब्बाराम स्वामीनाथन ने समाज की परवाह किए बिना हमेशा अम्मु स्वामीनाथन का हौसला आफ़जाई किया। उन्होंने घर पर ही अपनी पत्नी की पढाई के लिए अँग्रेज़ी व अन्य विषयों को पढाने के लिए ट्यूटर रखा।

अम्मु ने खूब मन लगाकर पढाई की और जल्द ही धारा प्रवाह से अँग्रेज़ी बोलने लगीं। स्वामीनाथन ने हमेशा अम्मु की प्रतिभा को प्रोत्साहित किया। उनके पति ने जो आत्मविश्वास जगाया अम्मु स्वामीनाथन का जीवन पति के संरक्षण में बदल गया और खिल उठा। परन्तु अपने शादीशुदा जीवन में भी अम्मु को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उनके पति ऊँची जाति ब्राम्हण थे और वे एक छोटी जाति नायर थीं। जिसकी वजह से उन्हें उनके ही पैतृक घर में भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था। अम्मु स्वामीनाथन के चार बच्चे दो लड़का दो लड़की थीं। उन्होंने अपने सभी बच्चों को समान शिक्षा और समान अवसर प्रदान किया था। सभी को अपना कैरियर चुनने की आज़ादी दी थी। एक बार उन्हें पता चला कि उनकी बेटियों को खाना उनके पति के पुश्तैनी घर के बरामदे में घर के बाहर खिलाया जा रहा था क्योंकि वे पूर्ण ब्राम्हण नही थीं। अम्मु ने जातिगत उत्पीड़न को करीब से देखा था। वे और उनके पति स्वामीनाथन दोनों ने ही उस प्रथा का खुलकर विरोध किया और उऩ रीति रिवाजों के खिलाफ अभियान भी चलाया था। उन्होंने लैंगिक भेदभाव और जातिगत उत्पीड़न का हमेशा विरोध किया। स्वामीनाथन हमेशा अपनी पत्नी के साथ थे उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे। अपने पति स्वामीनाथन की प्रेरणा से ही वे देश की आज़ादी के लिए भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़ीं। सन् 1934 में वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गयीं और तमिलनाडु में काँग्रेस का चेहरा बन गयीं। उन्होंने 1917 को मद्रास में एनी बेसेन्ट, मालती पटवर्धन, मार्ग्रेट, दादा भाई, श्रीमती अंबुजमल आदि के साथ मिलकर "महिला भारत संघ" की स्थापना की थी। उसके तहत उन्होंने महिला अधिकारों और सामाजिक स्थितियों के ज़िम्मेदार कारणों पर अपनी आवाज बुलन्द की थी। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान वे महात्मा गाँधी जी की अनुयायी बन गयीं। देश की आज़ादी के लिए 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी से उन्हें एक साल के लिए वेल्लौर जेल भी जाना पड़ा था। आज़ादी मिलने के बाद 26 जनवरी 1950 के दिन देश में संविधान लागू किया गया था। अम्मु स्वामीनाथन ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के साथ मिलकर संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने संविधान में महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार देने की बात प्रमुखता से रखी थी। 1952 में भारत के पहले संसदीय चुनावों में वे काँग्रेस के टिकट पर मद्रास (तमिलनाडु) राज्य की डिंडिगुल संसदीय क्षेत्र (लोक सभा) से चुनाव जीतकर संसद में पहुँचीं। वह तमिलनाडु की तेजतर्रार गाँधीवादी नेता थीं। वे कई सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों से जुड़ी थीं। नवम्बर 1960 से मार्च 1965 तक उन्होंने "भारत स्काउट्स एण्ड गाइड्स" के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। "अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष" के उदघाटन पर वर्ष 1975 में वे "मदर ऑफ द ईयर" चुनी गयी थीं। उनका एक पुत्र गोविन्द स्वामीनाथन एक कानूनी विद्वान था, पुत्री मृणालिनी एक नृत्यांगना और लक्ष्मी सहगल स्वतन्त्रता सेनानी थीं तथा नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी द्वारा गठित भारतीय राष्ट्रीय सेना (रानी झाँसी रेजीमेन्ट) की नेता बनीं। वे महिला समर्थक कानून की भी प्रबल समर्थक थीं। 04 जुलाई 1978 को वीर नारी अम्मु स्वामीनाथन जी की मृत्यु हो गई।

 आइए वीर साहसी महान क्रान्तिकारी महिला अम्मु स्वामीनाथन जी को सादर प्रणाम करें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धांजवलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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