पहली मुस्लिम महिला राजनेता स्वतंत्रता सेनानी अम्मा बी : आजादी का अमृत महोत्सव

 

                !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!

 "आज़ादी का अमृत महेत्सव" में आज "हिन्दू मुस्लिम" को "भारत माँ की दो आँखें" कहने वाली, अँग्रेजों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करने वाली "अम्मा बी" के नाम से प्रसिद्ध महिला सेनानी, पहली मुस्लिम महिला राजनेता जिन्होंने अपने मुस्लिम धर्म के पर्दा प्रथा का बखूबी पालन करते हुए बुर्का पहनकर देश की आज़ादी के लिए अनेक पर्दानशीं औरतों को आज़ादी के आंदोलन से जोड़ दिया था। एक बहादुर मुस्लिम महिला क्रान्तिकारी हैं "अबादी बानो बेगम" भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन की एक प्रमुख आवाज़।

                                  प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

50 - अबादी बानो बेगम "अम्मा बी" का जन्म 1850 में उत्तर प्रदेश के ऐसे राष्ट्रभक्त परिवार में हुआ था, जिन्हें 1857 की क्रान्ति में भाग लेने के कारण अत्यधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनकी शादी रामपुर रियासत के एक वरिष्ठ अधिकारी अब्दुल अली खान से हुई थी। उनकी एक बेटी पाँच बेटे थे। कम उम्र में ही उनके पति की मृत्यु हो गयी थी। पति की मृत्यु के बाद बच्चों के देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी अबादी बानो बेगम पर आ गयी। भले ही उनके पास सीमित संसाधन थे, तथा अबादी बानो बेगम के पास कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं थी, लेकिन प्रगतिशील विचारों के कारण उनका अशिक्षित होना कभी बाधक नहीं बना। उन्होंने अपने बच्चों की देखभाल अच्छी परवरिश की और उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में एक अँग्रेजी माध्यम स्कूल में भेजा। अपने बच्चों को माडर्न शिक्षा देने के लिए अपने ज़ेवर तक ग़िरवी रख दिए थे। अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी से लेकर ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी तक उन्होंने शिक्षा के लिए अपने बच्चों को भेजा था। आगे चलकर उनके बेटे मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली ख़िलाफ़त आंदोलन और भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख व्यक्ति बन गए। ब्रिटिश राज के खिलाफ़ असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।

अबादी बानो बेगम उन पहली मुस्लिम महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने भारत की राजनीति में हिस्सा लिया था। जिन्हें अपने देश को गुलामी की ज़जीरों से मुक्त कराने की उत्सुकता थी। इसलिए वे भारत की आज़ादी की लड़ाई में एक क्रान्तिकारी बनकर कूद पड़ी थीं। अँग्रेजों के खिलाफ़ आवाज़ बुलन्द करने वाली अबादी बानो बेगम लोगों के बीच बड़ी लोकप्रिय थीं। लोग उन्हें "अम्मा बी" के नाम से भी जानते थे। उनके बेटे मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली खिलाफ़त आंदोलन और भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख चेहरे थे। जिनसे ब्रिटिश सरकार भी डरती थी। बेटों को यह प्रेरणा विरासत में अपनी माँ अबादी बानो बेगम से मिली थी। उन्हें ब्रिटिश राज के खिलाफ़ असहयोग आन्दोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था।
वर्ष 1917 में अबादी बानो बेगम उस आन्दोलन में शामिल हुईं, जो जेल में बन्द अपने बेटों और महिला क्रान्तिकारी एनी बेसेन्ट को जेल से रिहा कराने के लिए आयोजित किया था। महात्मा गाँधी ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित व प्रेरित किया था। क्योंकि अबादी बानो बेगम के आने से उन्हें स्वतन्त्रता आन्दोलन में मुस्लिम महिलाओं का समर्थन मिल सकता था। महात्मा गाँधी जी की प्रेरणा से अबादी बानो बेगम ने सक्रियता से खिलाफ़त आन्दोलन में भाग लिया और मुस्लिम महिलाओं का समर्थन प्राप्त करने के लिए उन्होंने पूरे भारत में बड़े पैमाने पर यात्रा की थी। वे बेगम हसरत मोहानी, बसन्ती देवी, सरला चौधरानी और सरोजिनी नायडू आदि के साथ अक्सर महिला सभाओं को सम्बोधित करती थीं। उन्होंने बुर्का पहनकर पर्दे में रहकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। ब्रिटिश राज से भारत को मुक्त कराने के लिए आन्दोलन का एक हिस्सा थीं। असहयोग आन्दोलन व खिलाफ़त आन्दोलन से उन्होंने गाँव गाँव घूमकर महिलाओं को आन्दोलन से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया था। घर घर घूमकर चन्दा इकट्ठा किया तथा महिलाओं को "तिलक स्वराज कोष" में दान करने के लिए प्रेरित करती रहती थींं। जिसे बाल गंगाधर तिलक द्वारा स्थापित किया गया था। वे लगातार विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार करने की अपील भी करती रहती थीं।
 "अम्मा बी" के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप पूरे देश में मुस्लिम पर्दानशीं महिलायें आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़ी थीं। अबादी बानो बेगम का सारा जीवन देश की सेवा में बीता मगर अफसोस की बात थी, कि आज़ाद भारत का सपना देखने वाली अबादी बानो बेगम अपने सपने को पूरा होते हुए नहीं देख पायी थीं, और खिलाफ़त आन्दोलन की समाप्ति के तुरन्त बाद ही 13नवम्बर 1924 को 73 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। वे जीवन भर अपनी मृत्यु तक भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय रही थीं।

अँग्रेजों के खिलाफ़ आवाज़ बुलन्द करने वाली प्रगतिशील विचारक दूरदर्शी महिला स्वतन्त्रता सेनानी की देशभक्ति को आइए हम प्रणाम करें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय! 

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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