ओडिशा की मदर टेरेसा महान क्रांतिकारी पार्वती गिरी : आजादी का अमृत महोत्सव

                !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज हैं ओडिशा की एक महान स्वतन्त्रता सेनानी, महिला सशक्तिकरण की प्रतीक, पश्चिम ओडिशा की "मदर टेरेसा" के नाम से जानी जाने वाली महान वीरांगना जो अँग्रेजों से देश को आज़ाद कराने के लिए मात्र 11 साल की उम्र में ही आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़ी थी और महात्मा गांधी जी के 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन का हिस्सा बन गयी थीं। महान समाजसेविका और क्रान्तिकारी महिला हैं - "पार्वती गिरी"

                                 प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव 

43 - पार्वती गिरी पश्चिम ओडिशा की "मदर टेरेसा" उपनाम से प्रसिद्ध इस महान वीरांगना का जन्म (पश्चिमी ओडिशा) वर्तमान बरगढ जिला और अविभाजित संबलपुर जिला के बीजेपुर के पास समलाईपदार गाँव में 19 जनवरी 1926 को हुआ था। उनके पिता का नाम धनन्जय गिरी था। उनके चाचा रामचन्द्र गिरी काँग्रेसी नेता और एक महान स्वतन्त्रता सेनानी थे। जिस कारण उनका घर राष्ट्रवादियों के एकत्र होने बैठक, चर्चा और बहस करने का महत्वपूर्ण स्थान था। पार्वती गिरी भी अपने चाचा के साथ बैठकें और बहस सुनती रहतीं। तभी से उनके मन में भी देश के लिए कुछ करने की भावना ने जन्म लिया।

पार्वती गिरी ने तीसरी कक्षा पढने के बाद ही पढाई छोड़कर स्कूल जाना बन्द कर दिया और मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में ही अपने परिवार से प्रेरित होकर भारत के स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़ी तथा सभी आन्दोलनों में बढ-चढकर हिस्सा लेने लगीं। वे देश को अँग्रेजों के चंगुल से आज़ाद कराने के बाद समाज में फली कुरीतियों से भी देश को आज़ाद कराती रहीं। सन् 1938 में जब वह 12 वर्ष की थीं तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने समलाईदार में कांग्रेस के लिए काम करने की अनुमति देने के लिए उनके पिता को मनाने की कोशिश की थी। पार्वती गिर  नेे एक युवा लड़की के रूप में बारी आश्रम की यात्रा की थी। आश्रम में पार्वती गिरी ने हस्त शिल्प, अहिंसा के दौरान और आत्मनिर्भरता सहित कई चीजें सीखीं। सन् 1940 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए बरगढ, संबलपुर, पदमपुर आदि अन्य स्थानों व गाँव गाँव घूमकर प्रचार किया। उन्होंने ग्रामीणों को सूत कातना खादी बुनना सिखाया। राजनीतिक दल के प्रचार के लिए उन्होंने पूरे ओडिशा की यात्रा की थी। महात्मा गाँधी जी के आह्वान पर उन्होंने 1942 मेंं भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई रैलियों का नेतृत्व किया।
अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों की तरह पार्वती गिरी को भी अँग्रेजों ने जेल में डाल दिया लेकिन बाद में नाबालिग होने के कारण रिहा कर दिया गया क्योंकि उनकी उम्र महज 16 वर्ष की थी। मात्र 16 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ब्रिटिश सल्तनत को पूरी तरह से हिला दिया था। अँग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन के लिए पूरे देश में उन्होंने अभियान चलाया था। ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों के कारण बाद में उन्हें अँग्रेजों ने फिर से गिरफ्तार कर दो साल के लिए जेल में डाल दिया। सन् 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी पार्वती गिरी ने गरीबों की भलाई के लिए सामाजिक रूप से राष्ट्र की सेवा करना जारी रखा। आज़ादी के बाद 1950 में उन्होंने इलाहाबाद के प्रयाग महिला विद्यापीठ से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। 1955 में वे संबलपुर जिले के लोगों के स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार के लिए एक अमेरिकी परियोजना में शामिल हुईं। महिलाओं बच्चों और बेसहारा लोगों के लिए नृसिंहनाथ में एक अनाथालय खोला जहाँ अनाथ बच्चों और महिलाओं को आश्रय दिया गया। इसके अलावा उन्होंने बीरासिंह गढ में "बाल निकेतन" नामक एक और आश्रम की स्थापना की थी। उन्होंने ओडिशा के जेलों की स्थिति सुधारने के लिए भी बहुत काम किया।
पार्वती गिरी ने अपना शेष जीवन अपने गाँव के अनाथ बच्चों को अच्छा जीवन देने एवं अनाथों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। वे लोगों के उत्थान की दिशा में अपने काम के लिए पश्चिमी ओडिशा की "मदर टेरेसा" के रूप में जानी जाने लगीं। अपना सम्पूर्ण जीवन देश सेवा के लिए समर्पित करने के बाद उन्होंने लोगों के लिए तब तक कार्य किया जब तक उनकी साँसें चलती रही। 17 अगस्त 1995 को महान क्रान्तिकारी वीरांगना पार्वती गिरि ने अपने जीवन की आखिरी साँस ली, उनका निधन हो गया। महान क्रान्तिकारी समाजसेविका पार्वती गिरि के सम्मान में भारत सरकार के समाज कल्याण विभाग ने उन्हें 1984 में एक पुरस्कार से सम्मानित किया था। सन् 1998 में ओडिशा के महामहिम राज्यपाल द्वारा संबलपुर विश्वविद्यालय से पार्वती देवी को "डॉक्टरेट की मानद उपाधि" से सम्मानित किया गया था। उनके सम्मान में सरकार द्वारा 2016 में महान क्रान्तिकारी वीरांगना के नाम पर "मेगा लिफ्ट सिंचाई योजना" का नाम "पार्वती गिरि" रखा गया।

आइए महान क्रान्तिकारी समाजसुधारक ओडिशा की "मदर टेरेशा" उपनाम से सम्मानित की जाने वाली हम सभी की प्रेरणाश्रोत पार्वती गिरि जी को प्रणाम करें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धांजलि! जय हिन्द! जय भारत!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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