महान देशभक्त मणिबेन पटेल, जो सरदार पटेल की बेटी थीं : आजादी का अमृत महोत्सव
!! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!
"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज महान स्वतन्त्रता सेनानी देशभक्त भारत रत्न देश के पहले गृह मंत्री देश के पहले उप प्रधानमंत्री लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुत्री महान स्वतन्त्रता सेनानी हैं "मणिबेन पटेल"। वह एक महान देशभक्त स्वतन्त्रता सेनानी और स्वतन्त्रता के बाद भारतीय संसद की सदस्य थीं।
प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव
55 - मणिबेन पटेल का जन्म गुजरात राज्य में जिला खेड़ा के बोरसद गाँव में 03अप्रैल 1903 को हुआ था। वे महान देशभक्त लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम झवरेबा था। जिन्हें मात्र 6 वर्ष की उम्र में ही वे खो चुकी थींं। उनका पालन पोषण उनके चाचा विट्ठलभाई पटेल ने किया था। बचपन से ही उनके अन्दर देशभक्ति की भावना थी जो देशभक्त पिता से मिली थी। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा बॉम्बे के क्वीन मैरी हाई स्कूल से हुई। साल 1918 में महात्मा गाँधी जी की शिक्षाओं से प्रभावित होकर वे अहमदाबाद चली गयीं और महात्मा गाँधी जी के साबरमती आश्रम में ही रहकर राष्ट्र सेवा करती रहीं। वर्ष 1920 में उन्होंने महात्मा गाँधी जी द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय विद्यापीठ विश्वविद्यालय में भाग लिया और 1925 में महात्मा गाँधी जी के विद्यापीठ से ही उन्होंने स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। साल 1923 - 24 में ब्रिटिश सरकार ने जब आम लोगों पर भारी "कर" लगाया और उसकी वसूली के लिए मवेशियों, जमीन और सम्पत्ति को जब़्त करना शुरू कर दिया था तो उस उत्पीड़न का विरोध करने के लिए मणिबेन ने महिलाओं को महात्मा गाँधी और अपने पिता सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में एक अभियान में शामिल होने और कर मुक्त बोरसद आन्दोलन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया था। 1928 में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बारडोली के किसानों पर अत्यधिक कराधान लगाया गया था तो महात्मा गाँधी जी ने सरदार पटेल को सत्याग्रह का नेतृत्व करने का निर्देश दिया था। शुरूआत में महिलायें आन्दोलन में शामिल होने से हिचक रही थीं तो मणिबेन पटेल ने मिथुबेन पेटिट और भक्तिबा देसाई के साथ उन महिलाओं को प्रेरित किया। जिन्होंने अंतत: आन्दोलन में पुरूषों को पीछे कर दिया था। वर्ष 1938 के दौरान राजकोट राज्य के दीवान के अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ़ एक सत्याग्रह की योजना बनायी गयी। सरकार ने महिलाओं को अलग करने का आदेश पारित किया था। मणिबेन पटेल ने सरकार के आदेश के खिलाफ भूख हड़ताल की थी। उन्होंने महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन के साथ साथ नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था और लम्बे समय तक जेल में रही थींं। वे अपने पिता की सहयोगी भी बनी रहीं। उनकी व्यक्तिगत ज़रूरतों की देखभाल भी करती थीं। वह सुनिश्चित करती थीं कि उनके पिता और उनके कपड़े उनके द्वारा कताई किए गए खादी के धागों से ही बुने जाएं तथा अपने पिता के साथ हर जगह जातीं। उनके विचार जानतीं दिन प्रतिदिन की गतिविधियों को डायरी में नोट करती थीं। मणिबेन भारत की मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध थीं और 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में फिर से 1942 से 1945 तक उन्हें पुणे की "यरवदा सेन्ट्रल जेल" में कैद किया गया था। जेल में रहकर भी वे अपने पिता और एक सच्चे गाँधीवादी की तरह एक सख़्त अनुशासक होने के नाते अपने दिन की शुरूआत प्रार्थना के साथ फिर कताई पढने चलने धोने आदि के साथ करती थीं। वे बीमार कैदियों को ठीक करने एवं उनकी देखभाल आद कीी भूमिका में रहती थीं।आइए हम महान देशभक्त मणिबेन जी की देश के लिए समर्पित जीवन राष्ट्रभक्ति से प्रेरणा लें उन्हें प्रणाम करें! सादर नमन! भावपूर्ण विनम्र श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!
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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।