महान स्वतंत्रता सेनानी मालती चौधरी ने राजीव गांधी के हाथों पुरस्कार लेने से मना कर दिया था : आजादी का अमृत महोत्सव

              !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हैं जिन्हें गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी प्यार से "मीनू" और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी प्यार से "टोफनी" कहकर बुलाते थे। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ साथ राष्ट्र के प्रति समर्पित होने के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित की जाने वाली महान क्रान्तिकारी हैं "मालती चौधरी" 

                               प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

42 - मालती चौधरी एक महान स्वतन्त्रता कार्यकर्ता और गाँधीवादी थीं। उनका जन्म पूर्वी बंगाल मूल रूप से विक्रमपुर ढाका (अब बांग्लादेश) में एक उच्च मध्यमवर्गीय ब्रम्हो परिवार में 26 जुलाई 1904 को हुआ था। उनके पिता का नाम कुमुदसेन था जो एक बैरिस्टर थे। मालती चौधरी ने मात्र ढाई साल की आयु में ही अपने पिता को खो दिया था। माँ स्नेहलता सेन ने उन्हें लाड़ प्यार से पाला था। उनके नाना बिहारीलाल गुप्ता आईसीएस थे। चचेरा भाई रणजीत गुप्ता आईसीएस पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव थेे। इन्द्रजीत गुप्ता प्रसिद्ध सांसद और भारत के पूर्व गृह मंत्री थेे। सबसे बड़े भाई पीके सेन गुप्ता एक पूर्व आयकर आयुक्त भारतीय राजस्व सेवा से सम्बन्धित थे और एक अन्य भाई केपी सेन गुप्ता एक पूर्व पोस्टमास्टर जनरल भारतीय डाक सेवा से थे। वे अपने माता पिता की सबसे छोटी संतान होने के कारण सभी भाई बहनों की प्रिय थीं। उनकी माँ स्नेहलता सेन एक लेखिका थीं। उन्होंने गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की कुछ रचनाओं का अनुवाद भी किया था। जैसा कि उनकी पुस्तक "जुगलांजलि" से देखा जाता है। मालती देवी गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी और महात्मा गाँधी जी से बहुत गहराई से प्रभावित थीं।

 सन 1921में मालती चौधरी 16 साल की थीं, तो परिवार वालों ने उन्हें शान्तिनिकेतन भेेजा। जहाँ गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी द्वारा स्थापित "विश्व भारती" में भर्ती कराया गया। शान्तिनिकेतन छोटा और सुन्दर था। "नाटुनबारी" नया घर नामक छात्रावास में अपनी उम्र की 9 लड़कियों के साथ मालती चौधरी रहकर बहुत खुश थीं। वे बहुत भाग्यशाली थीं कि शान्तिनिकेतन में उन्हें गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी से सीधे ज्ञान प्राप्त करने का मौका मिला। उन्होंने वहाँ न सिर्फ डिग्री प्राप्त की बल्कि सिलाई कढ़ाई, हस्तशिल्प, संगीत, नृत्य, पेंटिंग और बागवानी सीखी। एक अंग्रेज लियोनार्ड नाइट एल्महर्स्ट श्रीनिकेतन के सुरूल में कृषि संस्थान के प्रभारी थे। उन्होंने ही उन्हें बागवानी सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। एक और अंग्रेज पियर्सन ने भी उन्हें पढ़ाया और आदिवासियों के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। वहाँ रहकर मालती चौधरी ने विभिन्न प्रकार की कला और संस्कृति में विशाल ज्ञान अर्जित किया। उन्होंने गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की "विश्व भारती" में रहकर एक पूरी तरह से अलग जीवन शैली को अपनाया था। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की शिक्षाओं, सिद्धान्तों, उनकी देशभक्ति और उनके आदर्शवाद के व्यक्तिगत प्रभाव से मालती चौधरीे बहुत प्रभावित थींं। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी प्यार से उन्हें "मीनू" कहकर बुलाते थे। सन 1927 में महात्मा गाँधी जी के कहने पर साबरमती आश्रम से शान्तिनिकेतन में पढाई करने आए एक छात्र युवक नवाकृष्ण चौधरी जो उड़ीसा के एक प्रसिद्ध परिवार से थे, उनसे प्रभावित होकर मालती देवी नेे सगाई की, फिर शादी करके अपने पति के साथ 1927 में शान्तिनिकेतन छोड़कर उड़ीसा चली गयीं और वहीं बस गयीं। शादी के बाद उड़ीसा में ही ग्रामीण विकास के बारे में कई तरह की सामाजिक गतिविधियां शुरू कींं। उन्होंने "कृसाका आन्दोलन" का नेतृत्व करते हुए गरीब किसानों को भू - स्वामियों और साहुकारों के चंगुल से बचाया। गन्ने के खेती को बेहतर बनाने के लिए गरीब किसानों की मदद की और उनके सशक्तिकरण के लिए काम किया। आसपास के गांवों में वयस्क शिक्षा शुरू की। मालती चौधरी उड़ीसा के अनु.जाति/अनुु.जनजाति की दुर्दशा के विषय में चिन्तित थीं। उन्होंने उड़ीसा के गांवों में घूमते हुए उनके कष्टों को अनुभव किया। उनका मिशन उड़ीसा के गरीब लोगों को शिक्षित करना था। उन्होंने अपना पूरा जीवन उड़ीसा के गरीब लोगों को प्रबुद्घ करने के लिए समर्पित कर दिया था।
सन् 1933 में मालती चौधरी ने अपने पति के साथ "उत्कल काँग्रेस समाजवादी कर्म संघ" का गठन किया बाद में उस संगठन को "अखिल भारतीय कांँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी" की उड़ीसा प्रान्तीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा। मालती चौधरी अपनी नोआखली यात्रा के दौरान महात्मा गांधी जी से जुड़ी। सन् 1934 में वे उड़ीसा में महात्मा गांधी जी की प्रसिद्ध "पदयात्रा" में उनके साथ थीं। आज़ादी के पहले 1946 में उड़ीसा के अंगुल में बाजीराव छात्रावास और 1948 में उत्कल नवजीवन मंडल की स्थापना की। आज़ादी के बाद 1951 में उनके पति नवाकृष्ण चौधरी जब उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने तो अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों की विशेष रूप से वंचितों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला और उड़ीसा में विभिन्न ग्रामीण पुनर्निर्माण योजना शुरू की। बाजीराव छात्रावास का गठन स्वतन्त्रता सेनानियों, अनुसूचितजाति/अनुसूचितजनजातियों व अन्य पिछड़े वर्गों और समाज के बच्चों के बीच शिक्षा का प्रसार करने के लिए किया गया था। उत्कल नवजीवन मंडल ने मुख्य रूप से उड़ीसा में ग्रामीण विकास और आदिवासी कल्याण के लिए काम किया। मालती चौधरी ने चंपतिमुंडा में पोस्ट बेसिक स्कूल की स्थापना भी की। वे भूदान आन्दोलन में आचार्य विनोबा भावे जी के साथ थीं। "नमक सत्याग्रह" के समय वे और उनके पति अखिल भारतीय कांग्रेस में शामिल हो गए, जिस कारण अँग्रेज़ी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जेल में रहकर भी मालती चौधरी ने जेल के कैदियों को पढ़ाया और महात्मा गांधी जी के विचारों का प्रचार किया। महात्मा गांधी जी उन्हें प्यार से "टोफनी" कहकर बुलाते थे। सन 1921, 1936 और 1942 में सरला देवी, रमा देवी और अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मालती चौधरी भी गिरफ्तार होकर जेल गयीं। स्वतन्त्रता के बाद मालती चौधरी भारतीय संविधान सभा की सदस्य के रूप में चुनी गयीं। वह उत्कल प्रदेश काँग्रेस समिति की अध्यक्ष भी चुनी गयीं। आज़ादी के बाद भी उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए संघर्ष जारी रखा। देश में आपातकाल के दौरान उन्होंने सरकार द्वारा अपनायी गयी नीतियों और दमनकारी उपायों के खिलाफ आवाज उठायी तो भी उन्हें जेल में डाल दिया गया। वह स्पष्टवादी और मुखर थीं। बोलने से कभी नहीं डरती थीं।
मालती चौधरी को राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था - (1) "बाल कल्याण" के लिए "राष्ट्रीय पुरस्कार" (1987) (2) "जमनालाल बजाज" पुरस्कार (1988) (3) "उत्कल सेवा सम्मान" (1994) (4) "टैगोर साक्षरता पुरस्कार" (1995) (5) "संविधान सभा की पहली बैठक (1997) की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर लोक सभा और राज्य सभा द्वारा सम्मान" (6) राज्य समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड द्वारा सम्मान (1997)  (7) "राज्य महिला आयोग" द्वारा सम्मान (1997) (8) "विश्व भारती से देसीकोट्टम्मा" (डी लिट ऑनोरिस कौसा) (9) 1988 में उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी के हाथों प्रतिष्ठित "जमनालाल बजाज पुरस्कार" प्राप्त करने से इन्कार कर दिया था क्योंकि उनके अनुसार राजीव गांधी जी ने गाँधीवादी मूल्यों को बढावा देने के लिए कुछ भी नहीं किया था। मालती चौधरी ने एक घटनापूर्ण जीवन जिया। 93 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन व सामाजिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण योगदान के लिए मालती देवी को कई बार सम्मानित किया गया। 

आइये हम महान देशभक्त गाँधीवादी राष्ट्रवादी क्रान्तिकारी प्रेरणाश्रोत मालती चौधरी जी को प्रणाम करें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धांजलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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