महान स्वतंत्रता सेनानी ओडिशा की मां रमादेवी चौधरी : आजादी का अमृत महोत्सव

               !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!

 "आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज ओडिशा की "माँ रमा देवी" के नाम से जानी जाने वाली महिला स्वतन्त्रता सेनानी जिनकी शादी मात्र 15 वर्ष की उम्र में (डिप्टी कलेक्टर) एक सरकारी अधिकारी से हुई। लेकिन शादी के बाद उनके पति ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पति पत्नी दोनों जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़े देश को आज़ाद कराने। तारकेश्वर टाईम्स देश की आजादी के पचहत्तर वर्ष पूर्ण होने पर मनाए जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान देने वाली पचहत्तर वीरांगनाओं के व्यक्तित्व से पाठकों को रुबरु करा रहा है। अभी तक 48 वीरांगनाओं के योगदान को आपके सम्मुख प्रस्तुत किया जा चुका है। 

                                  प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

49 - "रमा देवी चौधरी" एक भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी समाज सुधारक जिन्हें ओडिशा के लोग प्यार से "माँ" कहकर पुकारते थे। उनका जन्म ओडिशा के ग्राम सत्यभामापुर (कटक) में 03 दिसम्बर 1899 को हुआ था। माता का नाम बसन्त कुमारी देवी और पिता का नाम गोपाल बल्लवदास था। उनके चाचा का नाम उत्कल गौरव मधुसूदनदास था। जो उस समय उड़ीसा के प्रसिद्ध वकील और समाजसुधारक थे। रमा देवी अपने चाचा से बेहद प्रभावित थीं। अपने चाचा की संगत में रहकर ही उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन में शामिल होने की रूचि पैदा हुई थी। मात्र 15 वर्ष की आयु में रमा देवी की शादी गोपाबन्धु चौधरी से हो गयी, जो डिप्टी कलेक्टर (एक सरकारी अधिकारी) थे।

रमा देवी चौधरी का मानना था कि समाज में कोई भी बदलाव बग़ैर स्त्रियों की सक्रिय भूमिका के सम्भव नहीं है। वे देश की आज़ादी के पहले से ही स्त्रियों की आर्थिक आज़ादी की पक्षधर थीं। किशोरावस्था में ही पति के साथ उन्होंने देश की स्वाधीनता का स्वप्न देखा था और उसे साकार करने में जुट गयीं। शादी के बाद उनके पति ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी रमा देवी चौधरी के साथ स्वाधीनता संग्राम आन्दोलन में शामिल हो गए। 23 मार्च 1921 को महात्मा गाँधी जी की पहली उड़ीसा यात्रा के दौरान रमा देवी चौधरी की मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हुई तो वे उनसे अत्यधिक प्रभावित हुईं और अपने पति गोपाबन्धु चौधरी जी के साथ भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गयीं। महात्मा गाँधी जी के गहरे प्रभाव के कारण उन्होंने खादी की साड़ी पहनना शुरू कर दिया और असहयोग आन्दोलन में बहुत सक्रियता से हिस्सा लिया। गाँव गाँव जाकर स्वाधीनता संग्राम आन्दोलन में शामिल होने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करती थीं। वर्ष 1922 काँग्रेस के "गया अधिवेशन" में उन्होंने हिस्सा लिया और इस अघिवेशन से लौटकर रमा देवी चौधरी ने अपने इलाके की महिलाओं को संगठित करने में जुट गयीं। साल 1930 में महात्मा गाँधी जी ने जब "नमक सत्याग्रह" का आह्वान किया तो रमा देवी चौधरी ने महिलाओं को स्वाधीनता आन्दोलन में शामिल करने का अभियान शुरू कर दिया। उनका ये अभियान ब्रिटिश सरकार को नागवार गुज़रा और रमा देवी चौधरी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वर्ष 1931में गाँधी - इरविन समझौता हुआ तो उसके कई महीने बाद रमा देवी की रिहाई हुई। जेल से बाहर आने के बाद रमा देवी चौधरी ने अस्पृश्यता के खिलाफ बड़ा जागरूकता आंदोलन चलाया और अस्पृश्यता निवारण संघ बनाया। उनका मानना था कि समाज में कोई भी बदलाव बगैर स्त्रियों के संभव नहीं है। उसी समय उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर "सेवाधर" नाम से एक आश्रम की स्थापना की थी और आश्रम के माध्यम से उन्होंने "स्वदेशी" को बढावा देना और महिलाओं को शिक्षित करने का भी उपक्रम शुरू किया। आश्रम की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी और बड़ी संख्या में लोग आश्रम से जुड़ने लगे थे।
सन् 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन में फिर रमा देवी चौधरी को उनके पति सहित पूरे परिवार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और उनके आश्रम को अँग्रेजों द्वारा गैरकानूनी घोषित कर बंद कर दिया गया। दो वर्ष बाद जब रमा देवी चौधरी जेल से बाहर आयीं तो महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में जुट गयीं। उन्होंने अस्पृश्यता निवारण समिति को महात्मा गाँधी जी के निर्देश पर अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए कहा। बाद में संस्था का नाम बदलकर "हरिजन सेवा संघ" कर दिया गया। वह महात्मा गाँधी जी की 1932 और 1934 की उड़ीसा यात्राओं के साथ साथ कस्तूरबा, सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना आज़ाद, जवाहरलाल नेहरू और अन्य की यात्राओं में भी शामिल थीं। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद रमा देवी चौधरी जन जागरूकता के कार्यक्रम में लगी रहीं। उत्कल क्षेत्र में खादी आन्दोलन को खड़ा करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। आचार्य विनोबा भावे के भूदान और ग्रामदान आन्दोलन के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। सन् 1952 में उन्होंने अपने पति के साथ राज्य भर में लगभग 4000 किलोमीटर की पैदल यात्रा की और भूमिहीनों और गरीबों को जमीन और धन की समानता के संदेश को प्रचार करने के लिए यात्रा की। उन्होंने "उत्कल खादी मंडल" की स्थापना में मदद किया और रामचंदपुर के बलवाड़ी में एक "शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र" की स्थापना की। सन् 1950 में डुम्बुरूगेड़ा में एक "आदिवासी कल्याण केन्द्र" की स्थापना की। सन् 1951 के अकाल के दौरान उन्होंने कोरापुट में अकाल राहत के लिए काम किया। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध से प्रभावित सैनिकों की सहायता के लिए काम किया। उनके लिए संसाधन जुटाने के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए। आपातकाल के दौरान उन्होंने लोगों को लोकतान्त्रिक अधिकारों पर रोक लगाए जाने का विरोध किया था। आपातकाल के विरोध के लिए उन्होंने अपना समाचार पत्र निकालकर तत्कालीन सरकार का विरोध किया।
रमा देवी चौधरी समाज के कल्याण के लिए सदैव काम करती रही थीं। उन्होंने प्राथमिक स्कूल "शिशु बिहार" की स्थापना की थी। इसके अलावा कटक में एक "कैंसर अस्पताल" की स्थापना की भी थी। चार नवम्बर 1982 में रमा देवी चौधरी जी को राष्ट्र के लिए उनकी सेवाओं के सम्मान में "जमनालाल बजाज पुरस्कार" से सम्मानित किया गया थाा। सोलह अप्रैल 1984 को उन्हें "उत्कल विश्वविद्यालय" द्वारा "डॉक्टर ऑफ फिलसफी" (पीएचडी) की उपाधि दी गयी। 22 जुलाई 1985 को 85 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गयाा। उड़ीसा के भुवनेश्वर में "रमा देवी महिला विश्वविद्यालय" का नाम महान व्यक्तित्व की स्मृति में रखा गया।

आइए हम महान स्वतन्त्रता सेनानी समाजसुधारक ओडिशा की "माँ रमा देवी" चौधरी जी से हम प्रेरणा लें! उन्हें प्रणाम करें! सादर कोटि कोटि नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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