वीर सेनानी आजादी की दीवानी कनकलता बरूआ : आजादी का अमृत महोत्सव

  

                !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज मैं असम की रानी लक्ष्मीबाई तथा "वीरबाला" और "शहीद" के नाम से जानी जाने वाली भारत की उस शहीद वीरांगना राष्ट्र-पुत्री की बात कर रही हूँ, जिन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान मात्र 17 वर्ष की छोटी सी उम्र में राष्ट्र-ध्वज तिरंगे के लिये दे दी थी कुर्बानी।

                                          प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

28 - कनकलता बरूआ - राष्ट्र-पुत्री शहीद वीरांगना कनकलता बरूआ एक ऐसी स्वतन्त्रता सेनानी जिन्होंने मात्र 17 वर्ष की अपनी छोटी सी उम्र में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की आन बान शान के लिये अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित कर दिया था कि राष्ट्र-भक्ति और राष्ट्र के लिये शहादत देने की कोई उम्र नहीं होती। उनका जन्म- असम के अविभाजित दरांग जिले के बोरांगबाड़ी गाँव में 22 दिसम्बर 1924 को हुआ था। उनकी माता का नाम- कर्णेश्वरी बरुआ और पिता का नाम - कृष्णकान्त बरूआ था। उनके दादा घानाकांत बरुआ दरांग में एक प्रसिद्ध शिकारी थे। कनकलता बरुआ मात्र पाँच वर्ष की थीं तो उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। कुछ वर्ष बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली। कुछ वर्ष बाद दूसरी माँ और पिता की भी मृत्यु हो गयी। अल्पायु में माता पिता के गुज़र जाने के बाद उनकी नानी ने उनका पालन पोषण किया। वे घर के कामों में हाथ बँटाने के साथ साथ पढाई भी करती थीं। वह महात्मा गाँधी, किरण बाला बोरा, ज्योति प्रसाद अग्रवाल आदि से प्रेरित थीं। महात्मा गाँधी जी ने 1942 में जब भारत छोड़ो आन्दोलन का आह्वान किया तो उन्होंने एक किशोरी के रूप में राष्ट्रवादी शिविर में गुप्त रूप से मिलना शुरू कर दिया।

 वे नवस्थापित शांति वाहिनी (शांति बल) में शामिल हुईं। जिसे असम प्रान्तीय काँग्रेस कमेटी ने रात में गांवों की रक्षा करने और विरोध के दौरान शान्ति बनाये रखने के लिये स्थापित किया था। असम के प्रसिद्ध कवि ज्योति प्रसाद अग्रवाल थे। जिनके असमिया भाषा में लिखे गीत घर घर में लोकप्रिय थे। कनकलता इन गीतों से काफी प्रभावित व प्रेरित रहती थीं। इन गीतों ने कनकलता बरूआ के बाल मन में राष्ट्रभक्ति की बीज अंकुरित किया। मई 1931 में असम के गमेरी गाँव में विद्यार्थियों के सहयोग से "रैयत सभा"आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता ज्योति प्रसाद अग्रवाल कर रहे थेे। वे मात्र सात वर्ष की थीं। अपने मामा देवेन्द्रनाथ और यदुराम के साथ उसमें शामिल हो गयीं। बाद में इस सभा में भाग लेने वालों को राष्ट्रद्रोह के आरोप में बंदी बना लिया गया जिसकी आग असम के चारो तरफ फैल गयी। मुम्बई में 08 अगस्त 1942 को अँग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हुआ और देश के कोने कोने में फैल गयाा। असम के सभी शीर्ष नेताओं को जेल में डाल दिया गया। ज्योति प्रसाद अग्रवाल ने तब नेतृत्व सँभालते हुये एक गुप्त सभा की। 20सितम्बर 1942 को वाहिनी ने फैसला किया कि वह स्थानीय पुलिस स्टेशन पर राष्ट्रीय ध्वज फहरायेंगी। कनकलता की उम्र उस वक्त विवाह योग्य थी। परन्तु उन्होंने विवाह की अपेक्षा भारत की आज़ादी को ही अधिक महत्वपूर्ण माना क्योंकि उन्हें अपनी मंजिल मिल चुकी थी।
कनकलता बरुआ ने निहत्थे ग्रामीणों के एक जुलूस का नेतृत्व किया। थाना प्रभारी रेवती महान सोम के नेतृत्व में पुलिस ने जुलूस को अपनी योजना के साथ आगे बढ़ने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी। थाना प्रभारी ने कहा था कि - "एक इंच भी आगे बढ़े तो गोलियों से भून दिये जाओगे।" कनकलता बरूआ जैसे ही हाथों में तिरंगा लेकर आगे बढीं वैसे ही पुलिस ने जुलूस पर गोलियों की बौछार कर दी। पहली गोली कनकलता को लगी वे गिर पड़ीं लेकिन तिरंगे को न गिरने दिया न झुकने दिया। मुकुन्द काकोती ने उनके हाथों से तिरंगा ले लिया। ब्रिटिश पुलिस ने दूसरी गोली मुकुन्द काकोती को मार दी और तत्काल उन दोनों की मृत्यु हो गयी। कनकलता बरुआ की देशभक्ति, साहस और शहादत देख जुलूस में शामिल लोगों का जोश बढ़े और गोलियां खाते हुये तिरंगा फहराने में कामयाब हो गये। कनकलता बरूआ ने मात्र 17 वर्ष की उम्र में देश के लिये शहीद होकर अपने त्याग और बलिदान से यह साबित कर दिया कि देशभक्ति और देश के लिये शहादत देने की कोई उम्र नहीं होती। उन्होंने देश के लिये अपने प्राणों की आहुति देकर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में प्राण फूंक दिये। कनकलता बरूआ के आत्म बलिदान की स्मृति में बोरांगबाड़ी में स्थापित कनकलता मॉडल गर्ल्स हाईस्कूल आज भी हम सभी को देश की स्वतन्त्रता की रक्षा करने की प्रेरणा देता है। 
 आइये असम की निवासी भारतीय वीरांगना की शहादत को हम प्रणाम करें! सादर कोटि कोटि नमन! भावभीनी श्रद्धांजलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

 शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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