स्वतंत्रता आंदोलन के साथ संविधान निर्माण में भी कमला चौधरी का महत्वपूर्ण योगदान : आजादी का अमृत महोत्सव

               !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!

 "आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज हम याद कर रहे हैं एक ऐसी महान स्वतन्त्रता सेनानी को जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ने के साथ साथ भारत के महान संविधान निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। "कमला चौधरी" एक महान राष्ट्रवादी महिला स्वतन्त्रता सेनानी थीं। हमारा भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। संविधान के निर्माण में 284 लोग शामिल थे जिसमें 15 प्रगतिशील महिलायें भी थीं और उन्हीं महिलाओं में से एक थीं कमला चौधरी जिनका भारत के संविधान में महत्वपूर्ण योगदान था।

                               प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

 41 - कमला चौधरी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उन्हें कई बार उन्हें कैद किया गया था! "चरखा समिति" का गठन कर देश की महिलाओं को जोड़ने का बेहतरीन कार्य किया था! एक कथा लेखिका होने के साथ साथ महिलाओंं के जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास करने वाली कमला चौधरी का जन्म - लखनऊ में 22 फरवरी 1908 को हुआ था। पिता का नाम - राय मनमोहन दयाल था जो डिप्टी कलेक्टर थे। उनके नाना 1857 प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान लखनऊ में स्वतन्त्र अवध सेना के कमाण्डर थे। कमला चौधरी ने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में रत्न प्रभाकर की उपाधि हासिल की थी। हालांकि एक लड़की होने के नाते पढाई लिखाई के लिए उन्हें भी परिवार में काफी संघर्ष करना पड़ा था। सन 1927 में उनकी शादी मेरठ के डॉ. जेएम चौधरी से हुआ। बहुमुखी प्रतिभा की धनी कमला देवी अपने समय की एक प्रसिद्ध कथा लेखिका थीं। साहित्य के प्रति उनकी रूचि स्कूल के समय से ही थी उसी समय से उन्होंने लेखन शुरू कर दिया था। महिलाओं की आंतरिक दुनिया की पीड़ाओं को उन्होंने अपनी कहानियों में उजागर किया। जाति, धर्म, सम्प्रदाय, वर्ग, प्रेम, घृणा, नैतिकता, आचार व्यवहार उनकी कहानियों के विषय थे। उनके विषय मुख्य रूप से नारीवादी रहे। इसलिए उनके विषयों को बोल्ड माना जाता था। विधवापन, लैंगिक भेदभाव, महिला इच्छाओं, महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य और महिला मज़दूरों के शोषण पर प्रभाव उनके विषय थे।

कहानियाें के चार संग्रह - उन्माद (1934) पिकनिक (1936) यात्रा (1947) और बेलपत्र और प्रसादी कमंडल कमला चौधरी की प्रमुख रचनायें थीं। अपने लेखन में उन्होंने महिलाओं के जीवन से जुड़ी सच्चाई को उकेरा था। उन्होंने महिलाओं के लिए समानता और स्वतन्त्रता का काफी प्रयास किया। वह उन महिला समाज सुधारकों में से थीं जिन्होंने महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर प्रयास किया था। साहित्यिक क्षेत्र में सक्रियता के साथ साथ कमला देवी ने पारिवारिक परम्परा को तोड़ते हुए सन 1930 में अपने राजनीतिक सफ़र की शुरूआत की और भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गयीं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी द्वारा शुरू किए गए "सविनय अवग्या आन्दोलन" में उन्होंने भाग लिया और देश की आज़ादी मिलने तक कमला चौधरी ने देश की स्वतन्त्रता संग्राम के संघर्ष में बढ-चढकर हिस्सा लिया और कारावास तक का सफ़र भी तय किया था। अँग्रेज अधिकारियों ने उन्हें कई बार जेल में बन्द किया। वे साल 1946 में मेरठ में हुए काँग्रेस के 54वें सम्मेलन में उपाध्यक्ष बनायी गयी थीं। 1947 से 1952 तक संविधान सभा की सदस्य रहीं। इसके साथ साथ वह जिला काँग्रेस कमेटी के शहरी प्रान्तीय कमेटी के विभिन्न पदों पर काम करती रहीं। साल 1962 में वह उत्तर प्रदेश लोक सभा सीट हापुड़ से आम चुनाव जीतीं और तीसरी लोक सभा की सदस्य बनीं थीं। उत्तर प्रदेश समाज सलाहकार बोर्ड की सदस्य भी बनीं। उनका निधन 1970 में मेरठ में हुआ। कमला चौधरी एक समाज सुधारक, एक लेखिका, एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में संविधान को बनाने में और महिलाओं के उत्थान के लिए विशेष रूप से सक्रिय रहीं।

आइये हम उन महान स्वतन्त्रता सेनानी, लेखिका, समाज सुधारक को प्रणाम करें जिन्होंने अपना हर पल हर क्षण भारत देश के लिए न्योछावर कर दिया! सादर नमन! आदरपूर्ण भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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