महान स्वतंत्रता सेनानी सरला देवी चौधरानी : आजादी का अमृत महोत्सव

                !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज "वन्दे मातरम" राष्ट्रीय गीत की पहली दो पंक्तियों के बाद शेष गीत को संगीतबद्ध कर वन्दे मातरम गीत गाकर विदेशी शासकों के पाँव तले गहरी नींद में सोये राष्ट्र को जगाने वाली, स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढावा देने वाली पहली क्रान्तिकारी महिला अनेक प्रतिभाओं की धनी भारत में पहली महिला संगठन की संस्थापिका महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली महान महिला स्वतन्त्रता सेनानी "सरला देवी चौधरानी" को नमन करते हैं। "वन्दे मातरम" राष्ट्रीय गीत को सुप्रसिद्ध साहित्यकार बंकिमचन्द चट्टोपाध्याय जी ने लिखा था लेकिन पहली बार इस गीत को गाया था सुप्रसिद्ध साहित्यकार गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने और पहली दो पंक्तियों की धुन भी तैयार की थी। शेष गीत को सरला देवी चौधरानी ने न सिर्फ संगीतबद्ध किया था बल्कि वन्दे मातरम गीत को गाकर विदेशी शासकों के पाँव तले गहरी नींद में सोये राष्ट्र को जगा दिया था। यही नहीं 24 अक्टूबर 1901 को कोलकाता में काँग्रेस की राष्ट्रीय प्रदर्शनी में विभिन्न प्रान्तों से आयी लड़कियों के साथ "उठो ओ भारती लक्ष्मी" समूह गान का नेतृत्व भी किया था।

                                 प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

34 - सरला देवी चौधरानी देश की पहली महिला संगठन की संस्थापिका, एक प्रेरक गायिका, महान लेखिका, एक राजनीतिक कार्यकर्ता और ब्रिटिश विरोधी आंदोलन की नेता सरला देवी चौधरानी का जन्म - कोलकाता के एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार में 9 सितम्बर.1872 को हुआ था। उनकी माता का नाम - स्वर्ण कुमारी देवी जो बंगाली साहित्य की एक सफल उपन्यासकार थीं और पिता - जानकीनाथ घोषाल एक बंगाली लेखक थे! माता पिता दोनों ही एक सफल बंगाली लेखक थे। सरला देवी चौधरानी गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की भतीजी थीं। उनमें बचपन से ही बंगाली होने की गज़ब स्वाभिमानी चेतना थी जो बाद में राष्ट्रीय चेतना के रूप में तब्दील हो गयी जब उन्होंने स्वयं को "स्वदेशी आन्दोलन" से जोड़ा। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूरी की। उस समय वे कुछ महिला स्नातकों में से एक थीं क्योंकि उस समय भारत में महिलाओं के लिए शिक्षा प्राप्त करना काफी मुश्किल सा था।

सरला देवी चौधरानी ने अपनी पढाई के लिये "पद्मावती गोल्ड मेडल" भी प्राप्त किया था। वे फारसी, फ्रेन्च और संस्कृत की विशेषज्ञ थीं। शुरूआत से ही संगीत कला में उनकी काफी रूचि थी और संगीत के माध्यम से उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। वह संगीत में असाधारण प्रतिभाशाली महिला थीं। काँग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने वन्दे मातरम आत्मप्रेरक गीत गाया और गीत की देशव्यापी लोकप्रियता में व्यापक योगदान दिया जो बाद में एक "राष्ट्रीय गीत" बन गया। उनका मिशन न केवल गीत गाना था बल्कि एक राष्ट्र को विदेशी आकाओं की गुलामी की गहरी नींद से जगाना भी था। उन्होंने अच्छी संख्या में राष्ट्रवादी गीतों की रचना भी की। वह एक देशभक्त महिला थीं जिन्हें बंगाली होने पर गर्व था। उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ खड़े होने के लिए लोगों को प्रोत्साहित और प्रेरित करने के लिए गीत लिखना और गाना शुरू किया। वह ब्रिटिश राज के खिलाफ बंगाल में "स्वदेशी आन्दोलन" में शामिल हो गयीं और भारतीय सामानों को लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने महिलाओं के लिये एक "भारतीय स्टोर" शुरू किया जिसमें केवल स्वदेशी उत्पाद बेचे जाते थे।
उन्होंने महिलाओं को स्वदेशी उत्पादों का उपयोग शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया। वे स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने वाली पहली क्रान्तिकारियों में से एक थीं। उन्होंने युवाओं के लिए क्लब बनाये जो क्रान्तिकारियों के साथ संपर्क के रूप में कार्य करते थे। वह युवाओं को शपथ दिलाती थीं कि वे तन मन से भारत की सेवा करेंगे। वे एक प्रख्यात नारीवादी थीं और उन्होंने देश में महिलाओं के अधिकार और उनकी शिक्षा के महत्व को मान्यता दिलाने की दिशा में कड़ी मेहनत की। साल 1901 में सरला देवी चौधरानी जब 29 साल की थीं, तब महात्मा गांधी जी ने उन्हें पहली बार देखा था। वह एक आर्केस्ट्रा का संचालन कर रही थीं। 1905 में 33 वर्ष की उम्र में उनकी शादी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के सदस्य वकील और पत्रकार पंडित रामभुज दत्त चौधरी से हुई। शादी के बाद वे पति के साथ पंजाब चली गयीं और वहाँ उन्होंने "हिन्दुस्तान" नामक एक उर्दू साप्ताहिक अख़बार के संपादन में अपने पति की मदद की और समय के साथ अख़बार का एक अँग्रेजी संस्करण भी शुरू किया। उसी समय के दौरान उन्होंने भारत में पहली महिला संगठन की स्थापना की। जिसे इलाहाबाद में "भारत स्त्री महामंडल" के नाम से जाना जाता था। इस संगठन का मुख्य लक्ष्य था - देश में महिलाओं को उनके अधिकार प्राप्त कराना उनकी शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा को बढावा देना और सुधारना था। संगठन की भारत में हर जाति हर वर्ग और पार्टी की महिलाओं की उन्नति और विकास करने के लिये लाहौर, हजारीबाग, दिल्ली, करांची, कानपुर, हैदराबाद, कोलकाता, अमृतसर और मिदनापुर सहित देश भर में विभिन्न शाखायें खोली गयीं। यह संगठन पूरे भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए काम करता था। रॉलेट एक्ट पारित होने के बाद कई सरकारी नीतियों के खिलाफ देशव्यापी तनाव पैदा हो गया। जिसके परिणामस्वरूप जलियाँवाला बाग नरसंहार हुआ। सरला देवी चौधरी व उनके पति रामभुज दत्त (दोनों पति पत्नी) ने अखबार में सरकार के रूख की कड़ी आलोचना की। जिसके परिणामस्वरूप पति पंडित रामभुज दत्त चौधरी को असहयोग आन्दोलन में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उस वक्त सरला देवी चौधरानी की गिरफ्तारी भी होनी थी। लेकिन एक महिला की गिरफ्तारी राजनीतिक दिक्कतें बढा सकती थीं। इसलिये उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया।
जलियाँवाला बाग नरसंहार के दौरान महात्मा गाँधी जी लाहौर गये और वहाँ सरला देवी चौधरानी के घर अतिथि बने। उसी समय सरला देवी चौधरानी महात्मा गाँधी जी के निकट आयीं और उनकी अनुयायी बन गयीं। हालांकि उनके पति रामभुज दत्त चौधरी जी महात्मा गाँधी जी के अहिंसावादी सिद्धांतों से सहमत नहीं थे। इस कारण पति पत्नी में आपस में मतभेद था। परन्तु सरला देवी महात्मा गाँधी जी द्वारा चलाये गये "खादी आन्दोलन" के प्रचार में लग गयीं। उन्होंने गाँधी जी के साथ काम किया और जीवन पर्यन्त महात्मा गांधी जी का समर्थन किया था। अपने इकलौते बेटे दीपक की शादी महात्मा गांधी जी की पोती राधा से की थी। साल 1923 में सरला देवी चौधरानी के पति पंडित रामभुज दत्त चौधरी जी की मृत्यु हो गयी। वे वापस कोलकाता लौट आयीं और अपने चाचा गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी द्वारा स्थापित पत्रिका "भारती" सहित विभिन्न पत्रिकाओं का संपादन किया। पत्रिका में देश भर के विभिन्न लेखकों के लेख और योगदान शामिल थे।

सरला देवी चोधरानी ने स्वयं अपने विचारों को व्यक्त करते हुये पत्रिका के लिए गीत और लेख लिखे। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से जो तीन विचार प्रस्तुत किये। सबसे पहले "किसी को मरने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि हमारा जीवन साहस और दूसरों की सेवा के लिए है। "दूसरा - "एक योग्य जीवन जीने के लिए एक व्यक्ति के पास एक मजबूत और स्वस्थ शरीर होना चाहिए और नियमित व्यायाम एक आवश्यकता है।" और तीसरा - "अगर अँग्रेज किसी का अपमान करते हैं तो कानूनी न्याय की प्रतीक्षा किये बिना तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। क्योंकि अँग्रेजों की विशेषता यह है कि वे केवल उन्हीं का सम्मान करते हैं जो उन्हें किसी भी निष्पक्ष प्रतियोगिता में हराने में सक्षम हों। "उन्होंने "सतगन" नामक गीतों से भरी एक पुस्तक भी लिखी जिसका शाब्दिक अर्थ है - "एक सौ गीत"  सरला देवी चौधरानी को युवाओं को देश सेवा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और विभिन्न कार्यों को शुरू करने के लिए जाना जाता है। उनका प्रयास युवाओं में शारीरिक क्षमता और साहस का संचार करना था। बंगाल के युवाओं को प्रेरित करने के उद्देश्य से उन्होंने "दुर्गा पूजा" के दूसरे दिन नायकों के उत्सव "बिरष्टमी उत्सव" की स्थापना की। उन्हें तलवार के चारों ओर खड़े होकर वीर पुरुषों के नाम वाली एक कविता का जप करना था। जब प्रत्येक नाम का उच्चारण किया जाता था तो प्रतिभागियों को फूल फेंकना होता था। समारोह ने व्यापक घ्यान आकर्षित किया। अपने इस प्रयोग की सफलता से खुश होकर उन्होंने बंगाल के युवाओं को प्रेरित करने के लिए "राष्ट्रीय नायकों की याद में" ऐसे कई समारोह आयोजित किये थे। उनकी मौत आज़ादी के दो वर्ष पहले ही 72 वर्ष की आयु में कोलकाता में 18 अगस्त 1945 को हो गयी। सरला देवी चौधरानी एक महान क्रान्तिकारी महिला होने के साथ साथ एक नारीवादी थीं। उन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन से आज़ादी के लिए बल्कि महिलाओं के अधिकारों के लिये भी लडाई लड़ी थी और स्वदेशी आन्दोलन की एक अग्रणी रोशनी थीं। स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढावा देने वाली पहली क्रान्तिकारियों में से एक थीं। 

आइये बहुमुखी प्रतिभा की धनी देश की पहली महिला संगठन की संस्थापिका महिला सशक्तिकरण की मिशाल महान देशभक्त महान क्रान्तिकारी हम सभी की प्रेरणाश्रोत सरला देवी चौधरानी जी को हम प्रणाम करें! सादर शत शत नमन! भावभीनी श्रद्धांजलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता की जय।

शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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