आजादी की दीवानी पद्म विभूषण से सम्मानित पुष्पलता दास : आजादी का अमृत महोत्सव

 

                !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!

 "आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज की स्वतन्त्रता सेनानी हैं - "पुष्पलता दास" - सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार द्वारा "पद्मभूषण" से सम्मानित हैं। देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर तारकेश्वर टाईम्स देश की 75 महिला स्वतंत्रता सेनानियों की जीवन वृत्त प्रकाशित कर रहा है। इस कड़ी में 26 वीरांगनाओं से आपको परिचित कराया जा चुका है। 

                                   प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

27 - पुष्पलता दास आठ अगस्त 1942 को भारत का "राष्ट्र-ध्वज" हाथों में लेकर अपने क्रान्तिकारी साथियों के साथ पुलिस स्टेशन पर विरोध प्रदर्शन करने वाली गाँधीवादी महान स्वतन्त्रता सेनानी का जन्म- उत्तरी लखीमपुर असम में 27मार्च 1915 को हुआ था। उनकी माता का नाम - स्वर्णलता और पिता का नाम - रामेश्वर सैकिया था। हाईस्कूल की छात्रा होने के दौरान ही उन्होंने अपनी राजनीतिक गतिविधियों की शुरूआत कर दी थी और "मुक्ति संघ" नामक संगठन की सचिव थीं। वर्ष 1931में मात्र 15 वर्ष की आयु में ही अपने साथियों के साथ महान क्रान्तिकारी भगत सिंह जी को ब्रिटिश सरकार द्वारा फाँसी के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था। जिसके लिये उन्हें स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था लेकिन उन्होंने अपनी पढाई (प्राइवेट) निजी छात्रा के रूप में जारी रखी। 1934 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इण्टरमीडिएट के लिये बी.एच.यू. में दाखिला लिया। बाद में आन्ध्र प्रदेश से उन्होंने स्नातक की और इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने 1938 में पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री प्राप्त की। तत्पश्चात अर्ल लॉ कालेज गुवाहाटी से कानून की पढाई करने के लिए चली गयी और वहाँ भी अपनी छात्र राजनीति जारी रखी।

 1940 में वे कॉलेज यूनियन की सचिव थीं। उस समय महात्मा गाँधी जी ने सविनय अवग्या आन्दोलन के एक भाग के रूप में और दो साल बाद शुरू होने वाले भारत छोड़ो आन्दोलन के लिए एक अग्रदूत के रूप में व्यक्तिगत सत्याग्रह का बुलावा दिया तो पुष्पलता दास जी ने इन आन्दोलनों में भाग लिया और वे जेल में भी रहीं जिसकी वजह से कानून की पढाई उनकी प्रभावित हुई। राष्ट्रीय योजना समिति की महिला उपसमिति की सदस्य के रूप में वे मुम्बई चली गयीं। वहाँ दो साल तक रहीं। उनकी गतिविधियों से उन्हें मृदुला साराभाई और विजयलक्ष्मी पंडित और ओमेओ कुमार दास जी जो उस समय असम विधान सभा के सदस्य थे पुष्पलता दास जी को अपने साथ कार्य करने का अवसर दिया। पुष्पलता दास ने 1942 में ओमेओ कुमार दास जी से विवाह कर लिया और विवाह के बाद असम वापस आ गयीं। शांति वाहिनी और मृत्यु वाहिनी नामक दो संगठनों का गठन किया। 08 सितम्बर 1942 को पुष्पलता दास जी ने अपने साथियों के साथ भारत का राष्ट्रीय ध्वज हाथों में लेकर स्थानीय पुलिस स्टेशन पर विरोध प्रदर्शन किया पुलिस ने उनके विरोध प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई जिसमें उनकी सहयोगी क्रान्तिकारी कनकलता बरुआ को गोली लग गयी और उनकी मौत हो गयी। उस समय तक वह पहले से ही अखिल भारतीय काँग्रेस की एक सदस्य असम काँग्रेस समिति के महिला विंग की संयोजक बन चुकी थीं। कथित तौर पर असम को पूर्वी पाकिस्तान के साथ जाने से असम को रोकने के लिए भी काम किया था।
पुष्पलता दास जी ने 1951से 1961 तक राज्यसभा सदस्य, असम विधान सभा की सदस्य भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की कार्यसमिति की अध्यक्ष एवम् कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट खादी ग्रामोद्योग आयोग असम के अध्यायों की अध्यक्ष के रूप में भी सेवा की। भारत सरकार ने उन्हें ताम्र पत्र प्रदान कर स्वतन्त्रता सेनानी पुरस्कार से सम्मानित किया। लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया था कि वापसी की उम्मीद किये बिना भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लिया था। भारत सरकार द्वारा 1999 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान "पद्मभूषण" से उन्हें सम्मानित किया गया। 09 नवम्बर 2003में कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में उनका निधन हो गया। 

 आइये पद्मभूषित महान स्वतन्त्रता सेनानी पुष्पलता दास जी को हम प्रणाम करें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धांजलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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