किशोरवय से ही अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी सुनीति चौधरी : आजादी का अमृत महोत्सव

 

               !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!

 "आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज हैं - भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास की सबसे कम उम्र की कक्षा - आठ की दो छात्रा क्रान्तिकारी वीरांगना "सुनीति चौधरी" और "शांति घोष" जिन्होंने मात्र 14 वर्ष व 15 वर्ष की आयु में एक क्रूर ब्रिटिश मजिस्ट्रेट की गोली मारकर हत्या कर दी थी। आज हम सुनीति चौधरी के व्यक्तित्व से रुबरू करा रहे हैं और कल हम चर्चा करेंगे शांति घोष की। इन्होंने अँग्रेजों द्वारा किये जा रहे अत्याचार और शहीद भगत सिंह की फाँसी का बदला लेकर ब्रिटिश अधिकारियों में खलबली मचा दी थी उनकी रातों की नींद उड़ा दी थी। 

                        प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

39 - सुनीति चौधरी संसार की और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की सबसे छोटी उम्र (मात्र 14 वर्ष) की क्रान्तिकारी वीरांगना हैं - "सुनीति चौधरी" एक राष्ट्रवादी नारी। देश की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाली एक क्रान्तिकारी 14 वर्ष की छात्रा। स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुत कम उम्र में बड़ा कारनामा कर दिखाने वाली उस समय की प्रसिद्ध "दीपाली संघ" की सदस्या थीं। "जीवन अपनी मातृभूमि के लिए त्याग का नाम है" स्वामी विवेकानन्द जी के इन शब्दों से 14 वर्ष की किशोरी बहुत प्रभावित थीं। उनका जन्म - पश्चिम बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) के कोमिला जिले में एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में 22 मई 1917 को हुआ था। पिता का नाम  उमाचरण चौधरी था जो सरकारी नौकरी में थे तथा राष्ट्रवादी थे। माता का नाम सुरसुंदरी था, जो धार्मिक व शान्त स्वभाव की महिला थीं।

सुनीति चौधरी के क्रान्तिकारी बनने के पीछे उनकी माँ की बहुत बड़ी भूमिका थी। वर्ष 1930 देश में "सविनय अवग्या आन्दोलन" का समय था। उनके दोनों बड़े भाई क्रान्तिकारी आन्दोलनों में भाग लेते थे। उस वक्त महिला पुरूष के जुलूस और आन्दोलन के दौरान अपने आसपास हो रहे अँग्रेजों के अत्याचार को देखकर सुनीति चौधरी के मन में अँग्रेजों से बदला लेने की भावना जागृत होती रहती थी। वह त्रिपुरा कोमिला फैजुन्निसा बालिका विद्यालय की कक्षा आठ की छात्रा थीं। स्कूली शिक्षा के दौरान ही वो आन्दोलनात्मक गतिविधियों में खुलकर हिस्सा लेने लगी थीं। 06 मई 1931में आयोजित "त्रिपुरा जिला छत्री संघ" के वार्षिक सम्मेलन में "महिला स्वयं सेवी कोर" की कप्तान के रूप में चुनी गयीं। उन्हें "मीरा देवी" के उपनाम से भी जाना जाता था। उन्हें आग्नेयास्त्रों के संरक्षक के रूप में चुना गया था। लाठी तलवार और खंजर खेलने में महिला सदस्यों (छत्री संघ) के प्रशिक्षण की प्रभारी थीं। जब नेताजी सुभाष चन्द बोस विद्यार्थी संगठन को सम्बोधित करने स्कूल में आए तो उस समय सुनीति चौधरी लड़कियों के परेड का नेतृत्व कर रही थीं। आजादी की लड़ाई में लड़कियों को लड़कों के बराबर ज़िम्मेदारी दिए जाने की माँग को प्रफुल्ल नलिनी, शांति घोष और सुनीति चौधरी ने ही उठाई थी। कुछ वरिष्ठ नेताओं के संदेह जताने पर सुनीति चौधरी ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि "हमारे खंजर हमारी लाठी के खेल का क्या मतलब अगर हमें वास्तविक लड़ाई में भाग लेने का अवसर ही न मिले।" उन्होंने बेहतरीन तरीके से क्रान्तिकारी नेताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा था।
सुनीति चौधरी अपनी सहपाठी प्रफुल्ल नलिनी की मदद से "युगान्तर पार्टी" में शामिल हो गयी। उन्हें रॉयफल और हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गयी। कम उम्र की वजह से रिवाल्वर के ट्रिगर तक उनकी हाथ की ऊँगली नहीं पहुँच पाती थी, तो वे अपनी मध्यमा ऊँगली का इस्तेमाल करने लगीं, उन्हें हार मानना स्वीकार नहीं था। कुछ दिन बाद उन्हें उनकी सहपाठी शांति घोष के साथ एक क्रान्तिकारी कार्रवाई के लिए चुना गया। चौदह दिसम्बर 1931 को सुनीति चौधरी अपनी सहपाठी सखी शांति घोष के साथ (त्रिपुरा) कोमिला मजिस्ट्रेट चार्ल्स स्टीवंस के ऑफिस पहुँची, और मिलने के लिए अपना नाम बदलकर अन्य नाम से एक स्लिप भेजी। मिलने का कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि वे लड़कियों के लिए तैराकी की व्यवस्था के लिए प्रार्थना पत्र लेकर आयी हैं। जैसे ही अँग्रेज मजिस्ट्रेट सामने आया, उन दोनों सहेलियों ने ठंड से बचने के बहाने शॉल ओढ़ रखी थी, दोनों छात्रा सहेलियों ने अपने शॉल के नीचे से अपनी अपनी पिस्तौल निकाली और गोलियों की बौछार कर दी। अँग्रेज अधिकारी चॉर्ल्स स्टीवंस गोली लगने से वहीं ढेर हो गया, तत्काल उसकी मृत्यु हो गयी। गोली चलने की आवाज से चारों ओर अफरा तफरी मच गयी। सुनीति चौधरी और शांति घोष दोनों छात्रा सहेलियाँ वीर बालायें गिरफ्तार कर ली गयीं। 14 - 15 साल की उन दोनों छात्राओं के साहस पूर्ण कार्य से सम्पूर्ण देश ही नहीं अँग्रेज भी अचम्भित थे। वर्ष 1932 कोलकाता हाईकोर्ट ने उन्हें अँग्रेज मजिस्ट्रेट चॉर्ल्स स्टीवंस की हत्या का दोषी पाया, लेकिन उनकी (कम उम्र) नाबालिग होने की वजह से 10 साल कैद की सजा सुनायी।हालांकि दोनों क्रान्तिकारी फाँसी की माँग कर रही थीं।
उनकी गतिविधियों के प्रभाव का उनके परिवार को भी सामना करना पड़ा था। पिता की सरकारी पेन्शन बन्द कर दी गयी थी। दो बड़े भाईयों को बिना मुकदमे के हिरासत में रखा गया था तथा वर्षों से कुपोषित भाई की मौत हो गयी थी। कुछ दिनों तक जेल में सुनीति चौधरी और शांति घोष को अलग रखा गया था। एकांत कारावास 14 -15 वर्ष की लड़कियों के लिए दुखी कर देने वाला था। छोटी सी उम्र में दोनों वीरांगनाओं ने हँसते हँसते जेल की यातनायें सहीं। वे दोनों शहीदों की तरह मरना चाहती थीं। 06 दिसम्बर 1939 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और भारतीय क्रान्तिकारियों के प्रयास से सात साल की सज़ा काटने के बाद दोनों क्रान्तिकारी जेल से रिहा हो गयीं। सुनीति चौधरी ने जेल से रिहा होने के बाद एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और एक मशहूर डॉक्टर बनीं। उन्होंने सन् 1947 में ट्रेड यूनियन लीडर प्रद्योत कुमार घोष से शादी की। लोग उन्हें "लेडी माँ" कहकर बुलाते थे। आज़ादी के बाद कई पार्टियों से चुनाव लड़ने का कई बार प्रस्ताव आया परन्तु उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा दिया। बारह जनवरी 1988 को उनका निधन हो गया। 

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में एक असाधारण भूमिका निभाने वाली संसार की सबसे कम उम्र की क्रान्तिकारी साहसी क्रान्तिपुत्री को आइये हम सैल्यूट करें। सादर कोटि कोटि नमन! सादर भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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