महान क्रांतिकारी प्रीतिलता वड्डेदार : आजादी का अमृत महोत्सव
!! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!
"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज मैं भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की उस गुमनाम युवा और साहसी महिला क्रान्तिकारी की बात कर रही हूँ। जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए महज 21 वर्ष की आयु में अँग्रेजों से लड़ते लड़ते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत तारकेश्वर टाईम्स स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त 2022) तक स्वतंत्रता आंदोलन की 75 वीरांगनाओं की जीवन गाथा पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। अभी तक 23 वीरांगनाओं के जीवन आदर्श तारकेश्वर टाईम्स प्रकाशित कर चुका है।
प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव
24 - "प्रीतिलता वड्डेदार" - बंगाल की एक राष्ट्रवादी क्रान्तिकारी "चटगाँव विद्रोह" की अमर सेनानी मेधावी छात्रा निर्भीक लेखिका और बंगाल की पहली महिला सर्वोच्च बलिदानी थीं, जिन्होंने अँग्रेजों को याद दिलायी उनकी असली औकात। जो निडरता से लेख लिखती थी। प्रीतिलता वड्डेदार का जन्म - 05 मई 1911 को तत्कालीन ब्रिटिश बंगाल (अब बंगलादेश) में स्थित "चटगाँव" के एक गरीब परिवार में हुआ था। माता का नाम- प्रतिभा देवी और पिता का नाम- जगबंधु वड्डेदार था, जो चटगाँव नगरपालिका में एक क्लर्क थे। आय कम होने के कारण आर्थिक स्थिति सही नहीं थी परन्तु अपनी पुत्री को अच्छी शिक्षा दी। वह अक्सर कहा करते थे - "मेरी उम्मीदें तुमसे जुड़ी हैं।" माता पिता प्रीतिलता वड्डेदार को प्यार से "रानी" कहकर पुकारते थे। अपने नाम के अनुरूप प्रीतिलता वड्डेदार झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से बहुत प्रभावित थीं। प्रीतिलता वड्डेदार बचपन से ही मेधावी छात्रा थी। प्रारम्भिक शिक्षा चटगाँव खस्तागीर बालिका विद्यालय से हुई। प्रीतिलता वड्डेदार ने अपनी मैट्रिक की परीक्षा 1927 में और 1929 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। इण्टरमीडिएट के बाद प्रीतिलता वड्डेदार ने "बेथुन कॉलेज" कोलकाता विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें डिग्री नहीं मिली। दरअसल किसी महिला की शिक्षा की दिशा में इतनी बड़ी उपलब्धि और स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रसर रहने वाली प्रीतिलता वड्डेदार से ब्रिटिश सरकार को भय हो गया था कि कहीं आगे चलकर प्रीतिलता वड्डेदार उनके मार्ग की बाधा न बन जाये। इसीलिये कोलकाता विश्वविद्यालय के ब्रिटिश अधिकारियों ने प्रीतिलता वड्डेदार की स्नातक की डिग्री को रोक दिया था, जो 80 वर्ष बाद साल 2012 में मरणोपरांत उन्हें योग्यता प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया। प्रीतिलता वड्डेदार बचपन में स्कूल से ही "बालचरी संस्था" की सदस्य थीं जहाँ उन्होंने सेवा भाव और अनुशासन का पाठ सीखा था। बालचरी संस्था में बालचर सदस्यों को ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति एकनिष्ठ रहने की शपथ लेनी पड़ती थी जो प्रीतिलता को खटकती थी और उन्हें बेचैन कर देती थी। इसी संस्थान से उनके मन में क्रान्ति के बीज उत्पन्न हुये। बेथुन कॉलेज में पढाई के दौरान ही वह क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ चुकी थी। शिक्षा उपरान्त उन्होंने परिवार की आर्थिक सहायता करने के लिये एक पाठशाला में नौकरी कर ली परन्तु उनका लक्ष्य सिर्फ परिवार चलाना नहीं बल्कि माँ भारती को स्वतन्त्र कराना था। वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में गहरी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और वे महान स्वतन्त्रता सेनानी लीला नाग की "दीपाली संघ" में शामिल हो गयीं। सन् 1930 का दशक था। जब बंगाल में महात्मा गांधी जी के अहिंसा के विचारों का परित्याग कर दिया गया था। इसके बाद वहाँ अँग्रेज़ी हुकूमत के विरूद्ध हथियारबंद लड़ाई के लिए बढावा देने वाले क्रान्तिकारी संगठनों ने अपनी जगह ले ली थी। उन्हीं दिनों एक क्रान्तिकारी भाई ने प्रीतिलता वड्डेदार की भेंट प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सूर्यसेन और निर्मल सेन से करायी। सूर्यसेन उस समय भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के महान क्रान्तिकारी थे। उन्होंने "इंडियन रिपब्लिकन आर्मी" (आईआरए) की स्थापना की थी, और चटगाँव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया। वे नेशनल हाईस्कूल में सीनियर ग्रेजुएट शिक्षक के पद पर कार्यरत थे। लोग प्यार से उन्हें "मास्टर दा" कहते थे। उस समय महिलाओं को क्रान्तिकारी समूहों में शामिल किया जाना दुर्लभ था, लेकिन सूर्यसेन "मास्टर दा" ने प्रीतिलता वड्डेदार को न केवल अपने संगठन में शामिल किया बल्कि उन्हें एक सैनिक की तरह लड़ने और हमलों का नेतृत्व करने के लिए भी प्रशिक्षित किया। हालांकि सूर्यसेन द्वारा चलाये जा रहे "जुगंतर समूह" के ढलघाट शिविर में प्रीतिलता वड्डेदार को शामिल करने से साथी क्रान्तिकारी नेता विनोद बिहारी चौधरी नाराज हो गये। लेकिन सेना को इस बात का पता था कि बिना किसी शक के एक महिला हथियारों को ले जा सकती थी। प्रीतिलता वड्डेदार ने क्रान्तिकारियों के दस्ते के साथ मिलकर कई मोर्चों पर ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से लोहा लिया। वो रिजर्व पुलिस लाइन पर क्रान्तिकारियों के कब्जे और टेलीफोन और टेलीग्राफ ऑफिस पर हुये आक्रमणों में भी शामिल थी। प्रीतिलता वड्डेदार ने क्रान्तिकारियों के लिये हथियार लाने ले जाने की जिम्मेदारी ले रखी थी। क्रान्तिकारी इस बात के लिये निश्चिन्त रहते थे कि लड़की होने की वजह से ब्रिटिश उपनिवेशवादियों को प्रीतिलता वड्डेदार पर शक नहीं होगा।पूर्वी बंगाल के घलघाट में क्रान्तिकारियों को पुलिस ने घेर लिया था। लड़ते हुये अपूर्वसेन और निर्मल सेन शहीद हो गये। सूर्यसेन की गोली से कैप्टन कैमरान मारा गया। सूर्यसेन और प्रीतिलता वड्डेदार लड़ते लड़ते फरार हो गये। इस घटना के बाद सूर्यसेन पर दस हजार रूपये का इनाम घोषित कर दिया गया। भागते हुये सूर्यसेन और प्रीतिलता वड्डेदार जिस सावित्री नाम की महिला के घर गुप्त रूप से रहे वो क्रान्तिकारियों को आश्रय देने के कारण अँग्रेजों की कोपभाजन बनी। सूर्यसेन ने अपने साथियों का बदला लेने की योजना बनायी। योजना यह थी कि पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच गाने में मग्न अँग्रेजों को मृत्युदण्ड देकर अपने साथियों का बदला लिया जाये। इस हमले की सारी जिम्मेदारी प्रीतिलता वड्डेदार पर थी। 24 सितम्बर 1932 को प्रीतिलता वड्डेदार के नेतृत्व में क्रान्तिकारी हमले के लिए तैयार हुये। प्रीतिलता वड्डेदार ने खुद को एक पंजाबी पुरूष के रूप में तैयार किया। उनके साथी क्रान्तिकारियों ने धोती और शर्ट पहनी थी। प्रीतिलता वड्डेदार समेत सभी साथियों को "पोटेशियम साइनाइड" दिया गया और कहा गया था कि अगर पकड़े गए तो इसे निगल लेंगे।आइये बंगाल की राष्ट्रवादी क्रान्तिकारी बंगाल की पहली महिला अमर बलिदानी प्रीतिलता वड्डेदार को याद करते हुये उन्हें प्रणाम करें! सादर कोटि कोटि नमन! भावभीनी श्रद्धांजलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता की जय!
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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।