1857 की क्रांति में मुजफ्फरनगर की महानायिका आशा देवी गुर्जराणी : आजादी का अमृत महोत्सव

 

                !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 क्रान्ति की प्रथम शहीद वीरांगना जिन्होंने अँग्रेजों के खिलाफ स्वतन्त्रता आन्दोलन में महिलाओं की टोलियाँ बनाकर गाँव गाँव जंग - ए - आज़ादी का फूँका था बिगुल।

                                          प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

30 - "आशा देवी गुर्जर" महान स्वतन्त्रता सेनानी वीर योद्धा "गुर्जरी माता" के नाम से प्रसिद्ध गाँव की एक साधारण सी आम महिला ने देश की आज़ादी के लिये महिला सेना बनाकर गाँव गाँव वीर महिलाओं के साथ स्वाधीनता का जोश जगाया जनक्रान्ति फैलायी थी। वे सिर्फ 28 साल की उम्र में अँग्रेज़ी साम्राज्य की सेना से लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुई थीं। आशा देवी गुर्जराणी का जन्म - पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर (अब शामली) में कल्श्सान कुल में 19नवम्बर 1829 में हुआ था। 10 मई 1857 को कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में मेरठ से क्रान्ति की शुरुआत हो गयी थी जो सहारनपुर से दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों में फैल गयी थी। शामली कैराना में खाप कल्श्यान के अंदर 84 गाँव चौहान गोत्र के गुर्जरों के थे।

इस वीर युवती का मानना था कि- "आज़ादी की लड़ाई में सिर्फ सैनिकों का लड़ना ही काफी नहीं है बल्कि समाज के हर तबके के लोगों को कंधे से कंधा मिलाकर जंग-ए-आज़ादी में शामिल होना चाहिए। इस क्रान्तिकारी सोच की गुर्जरों के गाँव की एक साधारण सी आम महिला ने महिलाओं को संगठित किया और अपनी महिला सेना बनायी। सभी महिलायें पुरूष वेश में रहती थीं। इस वीरांगना युवती ने अँग्रेजों को मुश्किलों में डाल दिया था। सन् 1857 के गदर में दो दिन और रात तक अँग्रेजों से भीषण युद्ध करके अँग्रेजों की सेना को ध्वस्त कर दिया था और आसपास के क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम कर लिया था। हर धर्म हर वर्ग से जुड़ी महिलाओं ने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर जंग-ए-आज़ादी का बिगुल फूँका था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आशा देवी गुर्जर के पति मेरठ सैनिक विद्रोह में अग्रणी थे। मुजफ्फरनगर शहर में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा किये गये हमले में आशा देवी गुर्जराणी का साथ देने वाली भगवानी देवी, इंद्रकौर, जमीला पठान, रहीमो राजपूत, राजकौर, रणवीरी बाल्मीकी को क्रान्ति का बिगुल बजाने पर अँग्रेजों ने इन सभी को मौत की सज़ा सुनायी। शोभा देवी समेत जितनी भी महिला वीरांगनायें आशा देवी के साथ अँग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की थी। अँग्रेजों ने किसी को फाँसी की सजा दी, तो किसी को तोप से उड़ा दिया था। सभी वीरांगनायें अंग्रेजी सेना से लड़ते लड़ते शहीद हो गयीं। इन महिला सैनिकों की शहादत के बाद ही अँग्रेज़ी सेना आशा देवी गुर्जर को युद्ध भूमि में जिन्दा पकड़ सकी और बर्बर अँग्रेजों ने इस वीर योद्धा महान वीरांगना आशा देवी गुर्जराणी को भी फाँसी पर लटका दिया था।
आजादी के आन्दोलन में मुजफ्फरनगर और शामली की वीरांगनाओं की शहादत, त्याग, संघर्ष, देशभक्ति और बलिदान हम सभी के लिए अनुकरणीय है। अँग्रेज़ी सत्ता को नष्ट करने का पहला समूल प्रयास 1857 में ही हुआ था, जिसमें न केवल क्रान्तिकारियों ने अपितु मुजफ्फरनगर के कल्श्यान कुल की वीरांगना आशा देवी गुर्जराणी अपनी महिला सेना के साथ अँग्रेज़ी साम्राज्य की सेना से लड़ते लड़ते मात्र 28 साल की उम्र में 14 मई 1857 को वीरगति को प्राप्त हुई थीं। आशा देवी गुर्जराणी हम सभी के लिये प्रेरणाश्रोत हैं।

आइये देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 की प्रथम शहीद वीरांगना आशा देवी गुर्जराणी को हम सलाम करें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धांजलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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