भारत की बहादुर वीरांगना रानी चेन्नम्मा : आजादी का अमृत महोत्सव

             !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज भारत की सबसे पहली भारतीय वीरांगना कित्तूर रानी चेन्नम्मा की कहानी है। जिसने अपने राज्य की रक्षा के लिये अँग्रेजों से लोहा लिया फिरंगियों को अपने राज्य से मार भगाने के लिये कमर कसी और अंग्रेजों से कित्तूर की रक्षा के लिये देशभक्तों की सुदृढ सेना खड़ी कर दी। जिसकी लगायी क्रान्ति की आग ने भारत में आज़ादी की लड़ाई की अलख जगायी। प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

15 - "रानी चेनम्मा" - "महिला शक्ति" की प्रतीक रानी चेनम्मा ने झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई से भी पहले अँग्रेजों की सत्ता को सशस्त्र चुनौती दी थी। अँग्रेजों को उनके सामने दो बार मुँह की खानी पड़ी थी। इनका जन्म - दक्षिण भारत के कर्नाटक में काकतीय राजवंश में 23अक्टूबर 1778 ई. में हुआ था। माता का नाम - पद्मावती और पिता का नाम - धूलप्पा देसाई था। माता पिता सुन्दर कन्या को पाकर हर्ष से फूले न समाये और इनका नाम "चेन्नम्मा" रख दिया।

 चेनम्मा शब्द का शाब्दिक अर्थ ही है "सुन्दर कन्या" माता पिता ने इनका पालन-पोषण राजकुल के पुत्रों की भाँति किया था। इन्हें संस्कृत, कन्नड़, मराठी व उर्दू भाषा के साथ साथ घुड़सवारी, आखेट, शस्त्र चलाने और युद्ध कला की भी शिक्षा दी गयी थी। बचपन से ही उन्हें घुड़सवारी और युद्ध कलाओं का शौक था। उन्होंने इतनी शिद्दत से इन कलाओं को सीखा कि युवा होते होते अपने युद्ध कौशल की वजह से प्रसिद्ध हो गयीं। सन् 1857 भारत के स्वाधीनता संग्राम से भी 33 वर्ष पूर्व ही उन्होंने हड़प नीति (डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स) के विरूद्ध अँग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया था। इनका विवाह कित्तूर के राजा मल्लसर्ज के साथ बहुत ही धूमधाम से हुआ और चेन्नम्मा कित्तूर की रानी बन गयीं। कित्तूर उन दिनों मैसूर के उत्तर में एक छोटा सा स्वतन्त्र राज्य था परन्तु बहुत सम्पन्न था। यहाँ हीरे जवाहरात के बाज़ार लगा करते थे। व्यापार के लिये प्रसिद्ध कित्तूर में दूर दूर के व्यापारी आया करते थे। सुख-समृद्धि से भरपुर कित्तूर उन दिनों शांति की साँस ले रहा था। राजा प्रजावत्सल न्यायपरायण थे और प्रजा आज्ञाकारिणी और स्वामिभक्त थी। राजा मल्लसर्ज अपनी रानी चेन्नम्मा की राजनीतिक कुशलता से भी भलीभाँति परिचित थे। इसलिये राज्य के शासन प्रबन्धन में वे रानी चेन्नम्मा से सलाह लिया करते थे।
 रानी चेन्नमा को एक पुत्र हुआ जिसका नाम रूद्रसर्ज रखा गया। रानी चेन्नम्मा का जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था कि उनके पुत्र की अकाल मृत्यु हो गयी। सन् 1824 में राजा मल्लसर्ज का भी देहान्त हो गया। रानी चेन्नम्मा पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा। ऐसे में राज्य के सामने राजा के पद का संकट खड़ा हो गया। कित्तूर की राजगद्दी रिक्त हो गयी थी। जिसे भरने के लिये रानी चेन्नम्मा ने एक पुत्र गोद लिया। बेटा गोद लेकर राजसिंहासन के उत्तराधिकारी के तौर पर घोषणा करने पर एक समस्या उत्पन्न हो गयी जिसने रानी चेन्नम्मा को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की महानायिका बनने का गौरव प्रदान किया। उन दिनों अँग्रेजों की ईस्ट इण्डिया कम्पनी उत्तर भारत में अपने दाँत गड़ा चुकी थी। दूर दूर तक अँग्रेजी राज्य की जड़ें फैल चुकी थी और अब उसकी नज़र कित्तूर की राजगद्दी पर था। ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लार्ड डलहौजी ने गोद निषेध नीति की घोषणा कर दी। इस नीति के अनुसार भारत के जिन राजवंशों की राजगद्दी पर बैठने वाला वारिस नहीं होता था उन्हें ईस्ट इण्डिया कम्पनी अपने नियन्त्रण में ले लेती थी। दरअसल अँग्रेजों ने भारतीय राजाओं को अपदस्थ कर राज्य हड़पने के लिये ही इस नीति का निर्माण किया था। अँग्रेजों की नजर इस छोटे परन्तु बेहद सम्पन्न राज्य कित्तूर पर बहुत दिनों से लगी थी। अवसर मिलते ही उन्होंने गोद लिये पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया।
रानी चेन्नम्मा ने बातचीत से इस मुद्दे को हल करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी फिर रानी चेन्नम्मा न बाम्बे प्रेसिडेन्ट (गवर्नर) से बातचीत करने की कोशिश की। परन्तु इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला। क्योंकि अँग्रेज कित्तूर पर किसी भी तरह से कब्ज़ा जमाकर हड़पना चाहते थे। वे कित्तूर के बहुमूल्य खजाने को लूटने का पूरा मन बना चुके थे और इस राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगे। आधा राज्य देने का लालच देकर कुछ देशद्रोहियों को मिला लिये। रानी चेन्नम्मा ने स्पष्ट उत्तर दिया कि उत्तराधिकारी का मामला उनका अपना मामला है। अँग्रेजों का इससे कोई लेना देना नहीं है। साथ ही उन्होंने अपने राज्य की जनता से कहा कि - "अँग्रेजी सरकार हमसे हमारा कित्तूर लेना चाहती है, लेकिन जब तक आपकी रानी की नसों में रक्त की एक भी बूँद है हमारे राज्य "कित्तूर" को कोई नहीं ले सकता" और कित्तूर की जनता भी रानी के सहयोग में थी। 
कित्तूर रानी चेन्नम्मा का उत्तर पाकर धारवाड़ के कलेक्टर थैकरे ने 500 सिपाहियों के साथ कित्तूर का किला घेर लिया। 23 सितम्बर 1824 का दिन था किले के फाटक बन्द थे। थैकरे ने दस मिनट के अन्दर आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी। इतने में अचानक किले का फाटक खुला और दो हजार देशभक्तों की अपनी सेना के साथ पुरूष वेश में रानी चेन्नम्मा अँग्रेजों की सेना पर टूट पड़ीं। थैकरे भाग गया और दो देशद्रोहियों को रानी चेन्नम्मा ने अपनी तलवार से मौत के घाट उतार दिया। इस लड़ाई में अँग्रेजों ने भारतीय महिला के युद्धकौशल को देखा तो उनके होश उड़ गये। तीन दिसम्बर 1824 को अँग्रेजों ने फिर दुबारा कित्तूर का किला घेर लिया और फिर से उन्हें कित्तूर के देशभक्तों के सामने पीछे हटना पड़ा। दो दिन बाद ही फिर शक्ति संचय करके अँग्रेज धमक पड़े छोटे से राज्य कित्तूर के लोग काफी बलिदान दे चुके थे। कित्तूर रानी चेन्नम्मा के नेतृत्व में उन्होंने फिर से अँग्रेजों का सामना किया परन्तु इस बार वे टिक नहीं सके और अँग्रेजों ने कित्तूर रानी चेन्नम्मा को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। उनके अनेकों सहयोगियों को फाँसी दे दी। कित्तूर की मनमानी लूट की और अन्तत: 21 फरवरी 1829 को जेल में ही इस महान वीरांगना की मृत्यु हो गयी।
कित्तूर रानी चेन्नम्मा की बहादुरी के लिये कर्नाटक के लोग महानायिका के रूप में पूजा करते हैं। कर्नाटक में उनकी याद में 22 से 24 अक्टूबर तक हर साल "कित्तूर उत्सव" मनाया जाता है। उनके सम्मान में नई दिल्ली पॉर्लियामेन्ट हाउस में उनकी मूर्ति भी स्थापित की गयी है। आज भी कित्तूर के राजमहल और ऐतिहासिक इमारतों में इस महान महिला के वीरता के साक्ष्यों को देखा और महसूस किया जा सकता है। उन्होंने आज़ादी की जो अलख जगायी उससे ढेरों अन्य लोगों ने प्रेरणा ली। कित्तूर रानी चेन्नम्मा के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है वे न सिर्फ महिला शक्ति की प्रतीक हैं, बल्कि हम सभी की प्रेरणाश्रोत हैं।

आइये इस महान वीरांगना की बहादुरी को सलाम करें! सादर कोटि कोटि नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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