स्वतंत्रता आन्दोलन की योद्धा चन्द्रप्रभा सैकियानी : आजादी का अमृत महोत्सव

           !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज मैं एक असमिया स्वतन्त्रता सेनानी, कार्यकर्ता, लेखक व समाज सुधारक के विषय में बात कर रही हूँ जिन्होंने "असम" राज्य से "पर्दा प्रथा" हटाने के साथ साथ न केवल लड़कियों की शिक्षा के लिये काम किया बल्कि स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रति जन जन तक जागरूकता फैलाने के लिये पूरे राज्य भर में सायकिल से यात्रा की। तारकेश्वर टाईम्स आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत पचहत्तर वीरांगनाओं के जीवन चरित्र प्रकाशित कर रहा है। प्रस्तुति : - शान्ता श्रीवास्तव 

11 - "चन्द्रप्रभा सैकियानी" - असम की रहने वाली तेजतर्रार महिला चन्द्रप्रभा सैकियानी का जन्म- 16 मार्च 1901 में कामरूप जिले के दोइसिंगारी गाँव में हुआ था। पिता का नाम- रतिराम मजुमदार था जो गाँव के मुखिया थे और अपनी बेटी की पढाई पर काफी जोर दिया। चन्द्रप्रभा सैकियानी ने न केवल अपनी पढाई की बल्कि अपने गाँव में पढने वाली लड़कियों पर भी ध्यान दिया। महज 13वर्ष की थीं तो इन्होंने अपने गाँव की लड़कियों के लिये स्कूल खोला। तेरह साल की शिक्षिका को देखकर स्कूल इन्सपेक्टर बहुत प्रभावित हुये और उन्होंने चन्द्रप्रभा सैकियानी को नौगाँव मिशन स्कूल का वजीफा दिलवाया।

लड़कियों के साथ शिक्षा के स्तर पर हो रहे भेदभाव के खिलाफ भी चन्द्रप्रभा सैकियानी ने अपनी आवाज को नौगाँव मिशन स्कूल में ज़ोर शोर से रखा और वो ऐसा करने वाली पहली लड़की मानी जाती है। इसके अलावा असम के नौगाँव में "असम साहित्य सभा" की बैठक हो रही थी। बैठक में महिलाओं में शिक्षा को बढावा देने पर चर्चा हो रही थी और लड़कियों में शिक्षा के विस्तार पर जोर दिया जा रहा था। इस बैठक में पुरूष महिला दोनों मौजूद थे, लेकिन महिलायें पुरूषों से अलग बाँस से बने पर्दे के पीछे बैठी हुई थीं। चन्द्रप्रभा सैकियानी मंच पर चढ़ीं और माइक पर शेर सी गरजती आवाज में कहा कि - तुम पर्दे के पीछे क्यूँ बैठी हो और महिलाओं को आगे आने को कहा। उसकी इस बात से इस सभा में शामिल सभी महिलायें इतनी प्रेरित हुईं कि वे पुरूषों को अलग करने वाली उस बाँस की दीवार को तोड़़कर उनके साथ आकर बैठ गयीं। चन्द्रप्रभा सैकियानी की इस पहल को असम के समाज में उस समय प्रचलन में रही "पर्दा प्रथा" को हटाने में अहम माना जाता है।
चन्द्रप्रभा सैकियानी पर उपन्यास लिखने वाली निरूपमा बॉरगोहाई बताती हैं कि चन्द्रप्रभा और अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों ने "वस्त्र योजना" यानि विदेशी कपड़ों के बहिष्कार को लेकर मुहिम चलाई और वस्त्रों को जलाया जिसमें बड़े पैमाने पर महिलाओं ने भी भाग लिया इस समय महात्मा गाँधी तेजपुर आये हुये थे। पिछड़ी जाति की चन्द्रप्रभा सैकियानी की बहुत कम उम्र में ही एक उम्रदराज आदमी से शादी की जा रही थी तो उन्होंने इस शादी से इन्कार कर दिया था। गाँव में अनुसूचित जाति के लोगों को तालाब से पानी लेने की अनुमति नहीं थी तो इसके लिये भी उन्होंने अपनी आवाज बुलन्द की लड़ाई लड़ी और लोगों को उनका हक़ दिलाया। उन्हीं की कोशिश से लोगों को तालाब से पानी लेने का अधिकार मिला। असम में चन्द्रप्रभा सैकियानी को नारीवादी आन्दोलन काअग्रणी माना जाता है! वह "अखिल असम प्रादेशिक महिला समिति" की संस्थापक थीं। जो असम की महिलाओं के कल्याण के लिये काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था थी। चन्द्रप्रभा सैकियानी ने न केवल अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने, बल्कि स्वतन्त्रता आन्दोलन को जन जन तक पहुँचाने के लिये पूरे राज्य भर में साइकिल से यात्रा की और ऐसा करने वाली वो राज्य की पहली महिला मानी जाती हैं उन्होंने 1920-21 में "असहयोग आन्दोलन" एवम् 1932 में "सविनय अवग्या आन्दोलन" में भी सक्रिय भूमिका निभायी और जेल भी गयीं। सन 1947 तक वे काँग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता के तौर पर काम करती रहीं।

 विधान सभा के लिये चुनाव लड़कर वह स्वतन्त्र भारत में राजनीति में आने वाली पहली असमिया महिला थीं। 16 मार्च 1972 को उनकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु से कुछ महीने पहले ही भारत सरकार ने 1972 में देश का चौथा सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान "पद्मश्री" से सम्मानित किया था। पुन: 2002 में भारत सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया जब डाक विभाग द्वारा एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया था। कामरूप गुवाहाटी में सरकारी पॉलीटेकनिक का नाम उनके नाम पर पद्मश्री चन्द्रप्रभा सैकियानी गर्ल्स पॉलीटेकनिक तथा तेजपुर विश्वविद्यालय ने उनके नाम पर एक महिला केन्द्र "चन्द्रप्रभा सैकियानी सेंटर फॉर विमेन स्टडीज" (सीएससीडब्ल्यूएस) की स्थापना पूर्वोत्तर में महिलाओं की शिक्षा को बढावा देने के लिये की थी। "पद्मश्री" चन्द्रप्रभा सैकियानी जी का देश व समाज के लिये अमूल्य योगदान हम सभी के लिये प्रेरणादायी है। ऐसी महान वीरांगना को सादर नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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