स्वतंत्रता आंदोलन की वीरांगना बसन्ती देवी : आजादी का अमृत महोत्सव

 

           !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!

 "आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान एक ऐसी स्वतन्त्रता सेनानी थीं, जिन्हें "असहयोग आन्दोलन" के दौरान अँग्रेजी सरकार ने लोगों में "खादी" का प्रचार करने के अभियोग में गिरफ्तार कर लिया था। 

                           प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव 

17 - "बसन्ती देवी" - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी के राजनीतिक गुरू  देशबन्धु चितरंजन दास जी की धर्मपत्नी- थीं जिन्हें नेताजी अपनी "दत्तक माँ" मानते थे। बसन्ती देवी जी का जन्म - 23 मार्च 1880 कोलकाता में हुआ था। पिता का नाम - बरदानाथ हलदार एक दीवान (वित्तीय मंत्री) थे। वे पिता के साथ असम में रहती थीं। आगे की पढाई के लिये कोलकाता आ गयीं। यहीं उनकी शादी 17वर्ष की आयु में बैरिस्टर देशबन्धु चितरंजनदास जी से हो गयी। इन दोनों के तीन बच्चे थे।

बसन्ती देवी ने अपने पति देशबन्धु चितरंजन दास जी के साथ 1920 में "सविनय अवग्या आन्दोलन", खिलाफत आन्दोलन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर सत्र जैसे विभिन्न आन्दोलनों में भाग लिया। सन् 1921 में उन्होंने अपने पति चितरंजनदास जी की बहनों उर्मिला देवी व सुनीता देवी के साथ मिलकर महिला कार्यकर्ताओं के लिये "नारी कर्म मंदिर" नामक प्रशिक्षण केन्द्र बनाया। असहयोग आन्दोलन के दौरान काँग्रेस ने हड़ताल का आह्वान किया। सन् 1915 में जब महात्मा गाँधी जी भारत में सक्रिय राजनीति में शामिल हुये उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में सुधार किया। राष्ट्रव्यापी आन्दोलन शुरू करने के लिये काँग्रेस को धन की कमी का सामना करना पड़ा था गाँधी जी ने एक करोड़ रूपये से भी अधिक का धन जमा किया और इसे "बाल गंगाधर तिलक" के स्मरण में "तिलक स्वराज कोष" का नाम दिया गया। देश भर में स्वयंसेवक धन इकट्ठा करने लगे। सन् 1920-21 में बसन्ती देवी ने जलपाईगुड़ी से "तिलक स्वराज कोष" के लिये स्वर्ण गहने और दो हजार सोने के सिक्के इकट्ठे करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने विदेशी वस्तुओं पर प्रतिबन्ध लगाने और धरना देने का आह्वान किया तो कोलकाता में हाथों से बने खादी के कपड़ों के प्रचार और बेचने के लिये पाँच स्वयंस्वकों का एक समूह बनाया गया जिसका नेतृत्व बसन्ती देवी और उनके पति चितरंजनदास जी ने किया। अँग्रेजी सरकार ने इन्हें लोगों में खादी के प्रचार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। बसन्ती देवी की गिरफ्तारी का लोगों ने बहुत विरोध किया। देश के अनेक बैरिस्टरों ने भी इसके विरोध में आवाज उठाई और मामला वाइसराय तक ले गये जिसके बाद अँग्रेजी सरकार ने इन्हें रिहा कर दिया।
जेल से बाहर आने के बाद भी बसन्ती देवी ने विदेशी शासन का विरोध जारी रखा। 10 दिसम्बर 1921को अँग्रेजों ने चितरंजनदास जी व सुभाष चन्द्र बोस जी को गिरफ्तार कर लिया। यह ब्रिटिशों द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी की 11गिरफ्तारी में से पहली गिरफ्तारी थी। अपने पति चितरंजनदास जी की गिरफ्तारी के बाद बसन्ती देवी ने उनके साप्ताहिक प्रकाशन (बंगलार कथा) "बंगाल की कहानी" की प्रभारी बनीं तथा 1921-22 में बंगाल प्रान्तीय काँग्रेस की अध्यक्ष बनीं। सन् 1922 में चटगाँव राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता की भाषण दिया उन्होंने जमीनी स्तर पर आन्दोलन को प्रोत्साहित किया। उन्हें प्रसिद्ध क्रान्तिकारी कविता प्रकाशन करने के लिये अत्यधिक साहस और वीरता दिखाने के लिये भी जाना जाता है। सन् 1925 में पति देशबन्धु चितरंजनदास जी की मृत्यु के बाद भी वे बराबर राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेती रहीं। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद भी बसन्ती देवी ने सामाजिक कार्य जारी रखा। उन्होंने ज़रूरतमन्द महिलाओं के कल्याण के लिये "चितरंजन सेवा सदन" की स्थापना की। कोलकाता में पहला "महिला महाविद्यालय" बना जिन्हें सरकार द्वारा वित्तपोषित कर उनके सम्मान में विकसित किया और उसका नाम - "बसन्ती देवी महाविद्यालय" रखा गया। उन्हें वर्ष 1973 में भारत गणराज्य का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार "पद्म विभूषण" से सम्मानित किया गया। 07 मई 1974 में उनकी मृत्यु हो गयी। 

 आइये राष्ट्रभक्त पद्मविभूषित बसन्ती देवी जी को हम सभी प्रणाम करें! सादर कोटि कोटि नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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