जानिए ग्लैमरस गर्ल आफ इण्डियन पालिटिक्स : आजादी का अमृत महोत्सव

             !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज एक ऐसी प्रतिभाशाली विकासशील स्वतन्त्रता सेनानी की कहानी है जिसके निधन की खबर उस समय के किसी भी अखबार अथवा पत्रिका का समाचार नहीं बनी थी। तारकेश्वर टाईम्स आजादी के अमृत महोत्सव पर्व पर स्वतंत्रता आन्दोलन की पचहत्तर वीरांगनाओं से आपको परिचित करा रहा है।

                             प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

16 - "तारकेश्वरी सिन्हा" - बांकीपुर कॉलेज क छात्र जीवन में ही एक किशोरी के रूप में महज 16 वर्ष की उम्र में ही 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़ी थीं और बढ चढकर हिस्सा लिया था। मात्र 26 साल की उम्र में बिहार से संसद पहुँचने वाली तथा देश की पहली उप-वित्त मंत्री बनने का गौरव उन्हें प्राप्त है। इनका जन्म - 26 दिसम्बर 1926 में नालन्दा जिला के तुलसीगढ में हुआ था। माता - राधा देवी व पिता - डॉ0 नंदन प्रसाद सिन्हा जी पेशे से एक सिविल सर्जन थे। पिता खुद शिक्षित होने के साथ साथ उस समय में भी लड़कियों की शिक्षा को बहुत महत्व देते थे। तारकेश्वरी सिन्हा की प्रारम्भिक शिक्षा बड़ौदा से हुई थी। जिसकी गिनती पूरे हिन्दुस्तान में लड़कियों के लिये सबसे अच्छे विद्यालयों में होती थी। फिर इनका नामांकन पटना के बांकीपुर कॉलेज में हुआ। वहाँ वे कॉलेज राजनीति में खासी दिलचस्पी लेने लगीं और पहली दफा में ही बिहार छात्र काँग्रेस की वॉइस प्रेसीडेन्ट बनायी गयींं। तारकेश्वरी सिन्हा की राजनीति में बढती दिलचस्पी देख पिता घबरा गये और उनकी शादी सिवान में स्थित चैनपुर ग्राम के निधिदेव नारायण सिन्हा से कर दिया। वह पति के साथ कोलकाता अपनी पैतृक हवेली में रहने लगीं। पति पेशे से अधिवक्ता थे बाद में उन्होंने इंडियन ऑयल में मैनेजर पद पर भी काम किया।

तारकेश्वरी सिन्हा बेइन्तिहां खूबसूरत होने के साथ साथ तेजतर्रार राजनीतिज्ञ व अच्छी वक्ता थीं। वह कोई राजकुमारी या अभिनेत्री नहीं थी बल्कि एक राजनेत्री थीं। सन् 1945 में लालकिले पर भारतीय राष्ट्रीय सेना के सैनिकों के परीक्षणों ने उन्हें अत्यधिक आकर्षित किया और उनका राजनीति की ओर झुकाव और ज्यादा बढ गया। वह जल्द ही बिहार छात्र काँग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। वे उन लोगों में शामिल थीं जिन्होंने नालन्दा में महात्मा गाँधी जी की अगुवाई की और विभाजन के दौरान हिन्दू मुस्लिम दंगों को दबाने के लिये इस क्षेत्र में थे। ऐसे समय में जब महिलाओं के लिये राजनीति में जगह बनाना बेहद मुश्किल था। तारकेश्वरी सिन्हा 1952 में हुये पहले आम चुनाव में लोक सभा के लिये चुनी गयींं। उन्होंने अनुभवी स्वतन्त्रता सेनानी शीलभद्रयाजी को हराकर पटना पू्र्वी सीट जीती और देश की पहली उप वित्त मंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। एक मंत्री के रूप में वे अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने से कभी नहीं कतरातीं थीं। ऐसा कहा जाता है कि वे सरकारी अधिकारियों के कमरों में घुस जाती थीं और उनपर अपने अपने विभागों से सम्बन्धित सवालों की बौछार कर देती थीं। तारकेश्वरी सिन्हा अपने नेतृत्व क्षमता के लिये मशहूर थीं। संसद में जब वे बोलतीं तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। जिस किसी ने उनका भाषण सुना हमेशा के लिये उनके दीवाने हो जाते थे। उस ज़माने में उन्हें हजारों शेर-शायरी याद थे और बखूबी मालूम था कि किस अवसर पर किस शेर का इस्तेमाल करना है। बड़े बुजूर्ग कहते हैं कि जब वे बोलती थीं तो लोकसभा रूक सी जाती थी। बहुत से सांसद केवल उन्हें देखने और सुनने के लिये आते थे।
 वह बेहद खूबसूरत थीं चेहरे पर एक चार्म था। वह जहाँ भी खड़ी हो जाती थीं, वहाँ का माहौल बदल जाता था। "न्यूयार्क टाइम्स" ने 05 मार्च 1971 के अंक में उनकी आवाज़ को "शहद सरीखी" बताया था। आवाज सुनकर लोगों ने उन्हें लोकसभा की बुलबुल का भी नाम दिया। लोगों ने उन्हें "ग्लैमर्स गर्ल ऑफ इण्डियन पॉलीटिक्स" तो कई लोगों ने उन्हें "ब्यूटी विद ब्रेन" कहा। वे पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी जी के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाली महिला सांसद थीं। वे 1957, 1962 और 1967 में बिहार से लगातार लोक सभा सदस्य रहीं। तारकेश्वरी सिन्हा जी को पढने लिखने का बहुत शौक था। वह हमेशा लेख लिखती रहती थींं। जो बड़े समाचार पत्रों में छपते रहते थे। वह बेहद संवेदनशील कवियित्री और अच्छी लेखिका थीं। उन्होंने अपनी यादों को सहेजकर कई संस्मरण भी लिखे। उनके भाई गिरीश नारायण सिन्हा हिन्दुस्तान एयर इण्डिया में पॉयलट थे छोटी उम्र में ही एक प्लेन क्रैश में उनका देहान्त हो गया। उनके नाम पर ताकेश्वरी सिन्हा ने उनके गाँव तुलसीगढ में एक अस्पताल का निर्माण कराया जहाँ मुफ्त इलाज होता था। वह अस्पताल आज भी कार्यरत है। भारत के स्वतन्त्रता सेनानियों में कितनी ही महिलाओं के संघर्ष की कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर खोकर रह गयी है।
तारकेश्वरी सिन्हा का निधन 80 वर्ष की उम्र में 14 अगस्त 2007 को हुआ। परन्तु अफ़सोस इस बात की थी कि ऐसी प्रतिभाशाली विकासशील महिला स्वतन्त्रता सेनानी जो हमेशा समाचारों की सुर्खियों में रहती थीं, उनकी मृत्यु की ख़बर उस समय किसी भी अख़बार या पत्रिका का समाचार नहीं बनी थी।

 आइये ऐसी प्रतिभाशाली महान स्वतन्त्रता सेनानी को याद करते हुये प्रणाम करें! सादर शत शत नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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