आजादी का अमृत महोत्सव : महान क्रांतिकारी लीला राय और कमला देवी चट्टोपाध्याय

 

         !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महेत्सव" में आज हम महान क्रान्तिकारी महिला लीला रॉय और कमला देवी चट्टोपाध्याय के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा कर रहे हैं। तारकेश्वर टाईम्स ने कल नौ अप्रैल से देश की महान महिला स्वतंत्रता सेनानियों से आपको रुबरु करा रहा है। कल हमन रानी लक्ष्मीबाई और नीरा आर्या से आपका परिचय कराया था। भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर मनाये जा रहे अमृत महोत्सव में तारकेश्वर टाईम्स 75 वीरांगनाओं के जीवन परिचय प्रकाशित कर रहा है। इनमें बहुत सी ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें हम जानते हैं या नहीं जानते हैं। 

प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव 

3 - लीला रॉय लीला राय का नाम विशेष रूप से भारत की महिला क्रान्तिकारियों में लिया जाता है। वे एक महान क्रान्तिकारी महिला होने के साथ साथ एक राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। लीला रॉय का जन्म - 02 अक्टूबर 1900 को असम के गोलापारा में एक उच्च-मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। पिता का नाम गिरीश चन्द नाग था, जो बंगाल के सरकारी उच्चाधिकारी थे। माता का नाम कुंजलता नाग था। इनका पालन पोषण सिलहट बंगाल (अब बंगलादेश) में हुआ था। लीला रॉय ने स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ साथ भारतीय समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। लीला रॉय ने न केवल रूढ़िवादी सामाजिक नियमों को ललकारा बल्कि पितृसत्तात्मक धारणाओं और मापदण्डों के खिलाफ आवाज उठाई। लिंग आधारित सामाजिक और राजनीतिक कार्य जैसे स्वतन्त्रता संग्राम में पुरूषों की भूमिका को उन्होंने चुनौती दिया और नये आयाम हासिल किये। उस ज़माने में समाज में लड़कियों के लिये शिक्षा प्राप्त करना आसान नहीं था, लेकिन इस ढाँचे को चुनौती देते हुये लीला रॉय ने न केवल ढाका के ईडन हाईस्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की बल्कि वर्ष 1921 में कोलकाता के बेठुने कॉलेज से अँग्रेजी से बीए पास किया और अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिये "पद्मावती स्वर्ण पदक" भी हासिल किया। उन दिनों विश्वविद्यालयों में पुरूषों के साथ महिलाओं के शिक्षा (सह शिक्षा) की अनुमति नहीं थी, इसलिये महिलायें उच्च शिक्षा से वंचित रह जाती थीं।

लीलॉ राय की असाधारण प्रतिभा और दृढ इच्छाशक्ति के कारण ढाका विश्वविद्यालय के उप-कुलपति "फिलिप हर्टोंग" ने उन्हें लड़कों के साथ पढने की विशेष अनुमति दी। इस तरह लीलॉ राय ने तीन अन्य विषयों के साथ एमए की डिग्री पाने वाली ढाका विश्वविद्यालय की पहली छात्रा थीं। अँग्रेजों के खिलाफ स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान व्यापक पितृसत्तात्मक परम्पराओं और पुरूषों को राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों में भूमिकाओं के लिये स्थापित मानदण्डों को चुनौती देना लीला रॉय के मूल उद्देश्यों में से एक था। इसलिये उन्होंने न केवल महिलाओं के साथ राजनीतिक बल्कि उनके आर्थिक सशक्तिकरण पर भी जोर दिया। महिला सशक्तिकरण और नारीवाद की बात करें तो इस क्षेत्र में लीला रॉय का नाम उल्लेखनीय है। महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के लिये लीला रॉय ने अहम भूमिका निभायी है। साथ ही उन्होंने बंगाल की महिलाओं में देशभक्ति की भावना और देश सेवा करने की निडर इच्छा को प्रोत्साहित किया। आमनिटोला गर्ल्स स्कूल, ढाका का दीपाली हाईस्कूल जैसे शिक्षण संस्थानों की स्थापना की। लीला रॉय "नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी की समर्थक और करीबी सहयोगी रहीं। वर्ष 1921 में जब नेताजी को बंगाल में आये भीषण बाढ में राहत कार्य का नेतृत्व करते देखा तो उन्होंने खुद छात्रा होने के बावजूद "ढाका महिला समिति" के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राहत सामग्री जुटाने में नेताजी की जबरदस्त मदद की। साल 1921 में ही उन्होंने (अखिल बंगाल महिला मताधिकार संघ) की सहायक सचिव के रूप महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के बारे में सार्वजनिक राय बनाने के लिये विभिन्न बैठकों की स्थापना की। सन् 1923 में उन्होंने महिलाओं के विकास के लिये "दीपाली संघ" की स्थापना की। जिसका सामान्य उद्देश्य शिक्षा और लड़कियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने के साथ ही उन्हें क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए लड़ाकू प्रशिक्षण दिये जाते थे। सन् 1925 में लीला रॉय ने हेमचन्द घोष और अनिल राय के नेतृत्व में "श्री संघ" नामक एक जाने माने क्रान्तिकारी दल के समूह में प्रवेश करने वाली पहली महिला सदस्य थीं। सन् 1927-28 में जब महिलायें शारीरिक हमलों का निशाना बनीं तो उन्होंने आत्म-रक्षा कोष नामक एक कोष की स्थापना की। जो महिलायें पहली आत्म-रक्षा मार्शल आर्ट समूहों में से एक थी। महिला शिक्षा को बढावा देने के लिये उन्होंने "गण शिक्षा परिषद" नाम से एक संगठन की स्थापना की और 1931 में लीला रॉय ने "जय श्री" पत्रिका का प्रकाशन किया जो महिलाओं द्वारा संपादित, प्रबंधित और लिखी गयी। चट्टगाँव शस्त्रागार के छापे और प्रेस की आज़ादी को स्थापित करने के मद्देनज़र इसकी शुरूआत की गयी थी। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी के लिये लीला रॉय ने महिलाओं को बम बनाना, हथियारों से काम करना और देशभक्ति पर्चे बाँटना भी सिखाया। अनुशीलन समिति और जुगांतर जैसे पुरूष गढ़ वाले गुप्त क्रान्तिकारी दलों के साथ जुड़कर उन्होंने महिलाओं को प्रभावशाली और प्रखर रूप से स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित और प्रेरित किया। लीला रॉय के स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण हुई जेल के कारण उनकी "जय श्री" पत्रिका मुश्किल दौर से गुज़र रही थी।
जेल से रिहाई के बाद इसे दोबारा शुरू किया गया। "सविनय अवग्या" आन्दोलन में लीला रॉय ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा इनको सजा के तौर पर जेल में डाल दिया गया। लीला रॉय 6 साल तक जेल में भी रहींं। सन 1938 में तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस जी ने लीला रॉय को काँग्रेस की राष्ट्रीय योजना समिति के लिये मनोनीत कियाा और 1939 में उन्होंने अनिल रॉय से शादी की। सन् 1941 में ढाका में जब साम्प्रदायिक दंगे का गंभीर प्रकोप था तो उन्होंने शरत चन्द बोस के साथ मिलकर "एकता बोर्ड और राष्ट्रीय सेवा ब्रिगेड" का गठन किया। सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान अँग्रेजी सरकार द्वारा उन्हें व उनके पति को गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी पत्रिका को बन्द कर दिया गया। 1946 में उनकी रिहाई पर उन्हें भारत की संविधान सभा के लिये चुना गया। भारत के विभाजन के बाद उन्होंने बेसहारा महिलाओं के लिये आश्रय चलाये और पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों की मदद करने की कोशिश की नौ दिसम्बर 1946 को बंगाल से विधान सभा की सदस्य के रूप में शपथ लीं। वे विधान सभा से निर्वाचित होने वाली बंगाल की पहली महिला सदस्य थीं। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शान्तिनिकेतन में लीला रॉय को आमन्त्रित किया था। लीला रॉय ढाका विश्वविद्यालय छात्र संघ की सेक्रेटरी भी रह चुकी थीं। 1970 में लीला रॉय का देहान्त हो गया। लीला रॉय का पूरा जीवन सामाजिक राजनीतिक कार्यों में लीन रहा। महिलाओं की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जागृति और विकास के लिये लीला रॉय का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। देश की ऐसी महान विभूति को हम सभी सादर प्रणाम कोटि कोटि नमन करते हैं भावभीनी विनम्र श्रद्धान्जलि जय हिन्द जय भारत वन्दे मातरम भारत माता की जय

3 - कमला देवी चट्टोपाध्याय कमला देवी चट्टोपाध्याय एक महान स्वतन्त्रता सेनानी होने के साथ साथ एक लेखिका और भारतीय समाज सुधारक भी थीं। ये भारतीय हस्त कला के क्षेत्र में नवजागरण लाने वाली गाँधीवादी महिला थीं। पद्म भूषण, पद्म विभूषण, रेमन मेग्सेसे पुरस्कारों से सम्मानित कमला देवी चट्टोपाध्याय ने देश को आज़ाद करवाने के साथ साथ अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिये हैं। मात्र 14 साल की छोटी सी उम्र में ही इनकी शादी कृष्णा राव से हुई थी। शादी के दो वर्ष बाद ही पति की मृत्यु हो गयी। कमला देवी एक साहसी महिला थीं, जिन्होंने समाज के बनाये नियमों के विरूद्ध जाकर 20 वर्ष की उम्र में पुन: दूसरी शादी हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय से किया जो एक प्रसिद्ध कवि थे। उस समय में समाज में महिलाओं की दूसरी शादी को अपराध माना जाता था, परन्तु कमला देवी चट्टोपाध्याय ने समाज की इस छोटी सोच को नज़रअन्दाज़ कर दूसरा विवाह किया और समाज के बनाये नियमों के विरूद्ध जाकर अपना जीवन जिया। शादी के कुछ सालों बाद कमला देवी अपने पति के साथ लन्दन चली गयीं। वहाँ रहकर अपनी शिक्षा पूरी की।

ये भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान भारत में "असहयोग आन्दोलन" का हिस्सा रहीं। सन् 1930 में जब देश में "नमक" को लेकर आन्दोलन शरू हुआ तो कमला देवी ख़बर पाते ही लन्दन से भारत चली आयीं और महात्मा गाँधी जी के साथ मिलकर इस आन्दोलन को कामयाब बनाया। भारत आने के बाद इन्होंने "सेवा दल" नामक एक संगठन में भी हिस्सा लिया था। यह संगठन सामान्य उन्नति के लिये कार्य करता था। कमला देवी ने इस संगठन के लक्ष्यों को हासिल करने का कार्य किया था और इनकी मेहनत को देखते हुये इन्हें जल्द ही इस संगठन के महिला वर्ग का प्रभारी नियुक्त कर दिया गया। इस संगठन में रहते हुये कमला देवी ने हमारे देश की महिलाओं को इस संगठन से जोड़ने का कार्य किया और इन्हें प्रशिक्षित भी किया। सन् 1926 तक कमला देवी ने देश में हो रहे अनेक आन्दोलनों में भाग लिया था और इसी दौरान इनको मद्रास प्रान्तीय विधान सभा का कार्य सँभालने का मौका मिला था। जिसके साथ ही कमला देवी चट्टोपाध्याय हमारे देश की पहली ऐसी महिला बन गयी थीं जिन्होंने विधान सभा का कार्यालय चलाया था। सन् 1928 में इन्हें अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का अध्यक्ष बना दिया गया था। इस सम्मेलन की जिम्मेदारी मिलते ही कमला देवी ने महिलाओं के हित व कल्याण के लिये कई कार्यक्रमों को शुरू किया था। जिससे देश की महिलाये आसानी से शिक्षा हासिल कर सकें। इसके लिये दिल्ली में इन्होंने "लेडी इरविन कॉलेज की स्थापना में सहयोग किया। इसके साथ ही कमला देवी का कला और भारतीय हस्तशिल्प में भी योगदान था। भारत को आज़ाद कराने के लिये कमला देवी ने एक विश्व दौरा भी किया था और अपने इस दौरे के दौरान इन्होंने भारत के हालातों को दुनिया के सामने रखा था ताकि हमारे देश की आज़ादी के लिये ब्रिटिश शासन पर दबाव बनाया जा सके। भारत को जब आज़ादी मिली उस वक्त पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग देश में आये थे। इन लोगों के पास न रहने के लिये घर था और न ही खाने के लिये भोजन। ऐसी स्थिति में इन लोगों की मदद के लिये कमला देवी चट्टोपाध्याय ने ही इन्हें रहने के,लिये "फरीदाबाद" शहर को बनाया था। इस शहर में करीब 50 हजार से अधिक शरणार्थियों का पुनर्वास किया गया था। कमला देवी ने लेखन के साथ साथ फिल्मों में भी काम किया थाा। इनकी लिखी पहली किताब का नाम - "द अवेकमिंग ऑफ इंडियन वीमेन" था। कमला देवी को उनके योगदान के लिये भारत सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गयाा। ये पद्म भूषण, पद्म विभूषण के अलावा रेमन मेग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित हुईं। इसके अलावा 1974 में इन्हे संगीत नाटक अकादमी से फैलोशिप भी दिया गया। कमला देवी के कार्यों के लिये इन्हें "देसीकोट्टमा" इनाम भी दिया गया था। ये इनाम शान्तिनिकेतन का उच्चतम पुरस्कार हैै। भारत सरकार ने कमला देवी चट्टोपाध्याय के नाम से एक पुरस्कार भी बनाया है। इस पुरस्कार का नाम - "कमला देवी चट्टोपाध्याय राष्ट्रीय पुरस्कार" है। ये पुरस्कार "वीमेन हैण्डलूम वीवर्स" और "हैंडीक्राफ्ट्स" क्राफ्टमैन को दिया जाता है। यूनेस्को द्वारा भी हस्तशिल्प के क्षेत्र में इनके द्वारा किये गये योगदान के लिये सम्मानित किया गया। कमला देवी की वजह से ही देश में हस्त कला को बढावा मिल सका है। कमला देवी ने 29 अक्टूबर 1988 को महाराष्ट्र राज्य के मुम्बई शहर में अपनी अन्तिम सांस लेकर इस दुनिया से विदा ली थी। इस महान स्वतन्त्रता सेनानी समाज सुधारक को मेरा सादर प्रणाम कोटि कोटि नमन भावभीनी विनम्र श्रद्धान्जलि जय हिन्द जय भारत वन्दे मातरम भारत माता की जय

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। ये सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही पर्यावरण के क्षेत्र में भी उत्कृष्ट कार्य कर रही हैं। इनके कार्यों की बदौलत इन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। ये संतकबीरनगर धनघटा के बार एसोसिएशन की अध्यक्षा भी रह चुकी हैं। 

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