मनुष्य अपने मानवीय गुणों से महान होता है : अपनों से मन की बात - डॉ. वीके वर्मा

 

                            (विशाल मोदी) 

मानव जीवन मिलना बहुत ही दुर्लभ है। वह मनुष्य भाग्यशाली है जिसे मनुष्य का जीवन प्राप्त हुआ है। कोई भी मानव अपने मानवीय गुणों से महान होता है। एक दोहा है -

अगर समझना है तुम्हें, जीवन का भावार्थ।

अपनी चिंता छोड़कर करो सदा परमार्थ।। 

 जीवन में सदैव समाज सेवा और जन-सेवा के प्रति समर्पित होना चाहिये। दीन दुखियों की सेवा करना सच्चे अर्थों में कुदरत की सेवा करना है।

जब मैं डॉक्टरी पढ़कर गोटवा आया, तो उस समय देखा कि ग्रामीण अंचल में लोग भयंकर त्रासदी से गुजर रहे हैं। मरीज दवा और डॉक्टर के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। मैंने महानगरों की चकाचौंध से अपना ध्यान हटाकर गोटवा में ही क्लीनिक खोलना उपयुक्त समझा। फिर छोटा सा चिकित्सालय खोला। जो आज आपके आशीर्वाद से एक बड़े चिकित्सालय में परिवर्तित हो गया। फिर बच्चों के पढ़ने हेतु मेडिकल फार्मासिस्ट आदि की स्थापना की। बालिकाओं के लिए बालिका विद्यालय स्थापित किया। जिसमे इंटर तक की पढ़ाई होती है। मैंने कभी मरीजों से फीस नहीं लिया, बेड चार्ज नहीं लिया, केवल दवा के पैसे से अस्पताल संचालित होता है। गरीबों की सेवा करना मेरे स्वभाव की प्रमुख विशेषता रही है। फिर साहित्य की ओर उन्मुख हुआ और ईश्वर की कृपा से कई पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। पत्रकारिता से भी जुड़ा और वर्तमान में प्रेस क्लब का सदस्य भी हूं। मैंने अपने लिए कभी नहीं जिया। केवल दूसरों के लिए जीवन समर्पित रहा। मेरा पूरा जीवन त्याग की भाव भूमि पर अवस्थित रहा है। मैंने अपने जीवन में सब का सम्मान किया। कभी किसी की बुराई नहीं किया। मेरी यही इच्छा रही सभी सुखी हो, प्रसन्न रहें और सब का जीवन खुशहाल रहे। जाड़े में गरीबों, निराश्रित और जरूरतमंदों को कंबल वितरित करना, उन्हें दवा मुहैय्या कराना, उनके जीवन स्तर को ऊंचा करने का प्रयास करना मेरे जीवन का अभीष्ट रहा है। मेरा पूरा जीवन खुला इतिहास है। कोरोनाकाल में अपनी जान को जोखिम में डालकर मरीजों का उपचार पूरी निष्ठा से करता रहा। वहीं रात को कोरोना पर कविताएं लिखकर जन जागरण करता रहा। मुझे आपका आशीर्वाद और स्नेह मिलता रहा है। आज भी मिल रहा है, भविष्य में भी आपका स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहेगा, ऐसा विश्वास है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि मैं आप सब के सुख - दुख में एक पांव से हमेशा खड़ा रहा हूं और हमें हमेशा इसी तरह पाएंगे। मैं चाहता हूं कि मेरा मानव जन्म लेना सार्थक हो। मैं अधिक से अधिक आपके काम आऊं। आपके सपनों को साकार करूं। एक चिकित्सक, समाजसेवी और साहित्यकार की भूमिका का पूरी ईमानदारी से निर्वाह करूं। आपके घर आंगन में खुशियों का संचार करूं। आपके चेहरे पर मुस्कान आए यही मेरी इच्छा है।
अब आपको एक प्रसंग बताता हूं - एक बीहड़ जंगल देख कर मैं ठहर गया वहां देखा चिड़ियों ने चहकना छोड़ दिया है, फूलों ने महकना छोड़ दिया है, शीतल मंद मंद हवाएं प्रतिकूल चल रही हैं। आम्रकुंज में बबूल उग गये हैं, हिंसक जानवरों के प्रकोप से जंगल का वातावरण भयाक्रांत है। मयूर सर्प को परेशान कर रहे हैं। चारों तरफ सायं-सायं का स्वर मुखरित हो रहा है। आसुरी प्रवृत्तियां संत महात्माओं को प्रताड़ित कर रही हैं। कलियों को मसला जा रहा है, जंगल का मालिक ध्वनिमति से एक बंदर को बनाया गया है। शेर को बलहीन कर दिया गया हैं। एक भेड़िया मेमना के बच्चे को दबोच कर एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया। वह मेमना के बच्चे को खाने की तैयारी कर रहा था, तभी मेमना ने बंदर से गुहार किया मेरे बच्चे को भेड़िया उठा ले गया है, देखो उस पेड़ के नीचे बैठा है। तुम यहां के राजा हो उसे बचा लो। बंदर मेमना के साथ पेड़ के पास गया और एक डाल से दूसरे डाल पर काफी देर तक उछल कूद करने लगा। तभी मेमना ने बन्दर से कहा यह आप क्या कर रहे हैं ? इतनी देर में तो भेड़िया मेरे बच्चे को खा जाएगा। तभी बंदर ने कहा - अब तुम्हारा बच्चा बचे या ना बचे लेकिन देखो मेरे भाग दौड़ में उछल कूद में कोई भी कमी नहीं है।
यह देख कर मैं अवाक रह गया। सोचा काश कोई मसीहा बनकर आता और इस जंगल की सारी विसंगतियों को दूर करता। यहां के पशु - पक्षी स्वच्छन्द और प्रसन्न होकर विचरण करते। शांति का वातावरण यहां सृजित होता। जंगल में हरियाली आती, नफरत और कटुता भूलकर मयूर और सर्प आपस में जुगलबन्दी करते। भेड़िया मेमना के बच्चे को अपना बच्चा समझ कर प्यार करता। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम आपसी मनमुटाव और नफरत को भूलकर एकजुटता का परिचय देते हुए हर प्राणी को सुख, समृद्धि, शांति और उल्लास के पथ पर अग्रसर करें।

आपका आशीर्वाद और स्नेह ही मेरे जीवन का संबल होगा आशीर्वाद दीजिये कि हम सदैव की तरह हर प्राणी को खुशहाली और प्रगति का पर्याय बनाएं।  आपका स्नेहाधीन - डॉ. वी. के. वर्मा

                            समाजिक कार्यकर्ता

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