आर्थोपेडिक एसोसिएशन की इण्टरनेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए बस्ती के डॉ. सौरभ द्विवेदी

(विशाल मोदी) 
बस्ती (उ.प्र.) । इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन का पांच दिवसीय 66वां कॉन्फ्रेंस गोवा में सम्पन्न हुआ। इस अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में बस्ती के युवा आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. सौरभ द्विवेदी ने सहभाग किया। भारतीय आर्थोपेडिक एसोसिएशन की स्थापना 1955 में हुई थी।

 अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस से लौटकर डॉ. सौरभ द्विवेदी ने बताया कि वर्ष 2013 में इण्डियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन में 9,000 से अधिक सदस्य थे। वर्तमान समय इस संगठन में कुल 12262 सक्रिय सदस्य हैं। इस सम्मेलन में भारत भर के 5,000 से अधिक आर्थोपेडिक सर्जन ने 21 दिसंबर से 25 दिसम्बर 2021 तक भाग लिया। भारत में आर्थोपेडिक सर्जरी पर ध्यान केंद्रित करने वाले पहले सर्जन डॉ. आर जे कटक, डॉ. एनएस नरसिम्हा अय्यर और डॉ. एस आर चंद्र थे। उन्होंने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद डॉ. मुखोपाध्याय और डॉ. केएस ग्रेवाल ने 1952 में वेल्लोर में एएसआई के वार्षिक सम्मेलन के दौरान एक एसोसिएशन बनाने का सुझाव दिया। 1953 में आगरा में कई अभ्यास करने वाले सर्जन मिले, जिनमें प्रमुख रूप से डॉ. आरजे कटक, डॉ. बीएन सिन्हा, डॉ. केएस ग्रेवाल, डॉ. मुखोपाध्याय और डॉ. एके गुप्ता थे। वे एएसआई का एक हड्डी रोग अनुभाग बनाने के लिए सहमत हुए। दिसंबर 1955 में एएसआई की बैठक में आधिकारिक तौर पर सोसायटी का गठन अमृतसर में किया गया था। डॉ. बीएन सिन्हा और डॉ. मुखोपाध्याय सर्वसम्मति से अध्यक्ष और सचिव चुने गए थे।

डॉ. सौरभ द््विवेदीने बताया कि डॉ. एके तलवलकर ने इण्डियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन (IOA) की ओर से जॉनसन एंड जॉनसन और स्मिथ एंड नेफ्यू ट्रैवलिंग फेलोशिप की शुरुआत की। वार्षिक किनी मेमोरियल ओरेशन 1958 में शुरू हुआ। सर हैरी प्लाट ने 1958 में पहले वक्ता के रूप में कार्य किया। एसोसिएशन के सदस्यों ने 1967 में प्रकाश चंद्र के संपादक के रूप में एक पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया। एक प्रवर समिति द्वारा तैयार किए गए संविधान को 1967 में आम सभा की बैठक में सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था। इसे बाद में भारतीय समाज अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था ।

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