यूपी में सपा - रालोद गठबन्धन को तगड़ा झटका, गड़बड़ा रही गणित

 

                          (प्रशांत द्विवेदी) 

 लखनऊ । प्रधानमंत्री की किसान कानून वापसी से उप्र में विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और रालोद के गठबन्धन पर ग्रहण लगता दिखाई दे रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के बीच मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन 22 नवंबर से एक दिन पहले 21 नवम्बर को होने वाली संयुक्त पत्रकार वार्ता के टलने के कई मायने समझे जा रहे हैं। इसे नरेन्द्र मोदी के किसान कानून वापसी का यूपी में बड़ा राजनैतिक झटका माना जा रहा है।

राजनैतिक चर्चाओं में यह अहम माना जा रहा है कि जब दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन होने की बात पहले से चल रही थी और अब नतीजे पर पहुंचने वाली थी तो अचानक समीकरण बिगड़ने क्यों लगा। साधारण नजरिए से ऐसा लगता है कि कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा ने जयन्त और अखिलेश की राजनीतिक गणित में बाधा डाल दी है। कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के बावजूद किसान पंजाब में अपना आंदोलन जारी रखने और एमएसपी पर संवैधानिक गारंटी जैसे मुद्दों के साथ बीजेपी के विरुद्ध खड़े रहने के बहाने ढूंढ सकते हैं, पर उप्र में खासकर पश्चिम उप्र में किसानों का रुख ऐसा नहीं है। वहां के समीकरण बदले नजर आ रहे हैं। यूपी के इस इलाके में किसानों के सबसे बड़े वर्ग जाट समुदाय के मतदाता परम्परागत रूप से भाजपा विरोधी नहीं हैं। कृषि कानून भाजपा से नाराजगी का एक कारण था, उस कारण को हटाने से भाजपा का नुकसान कम हो सकता है। इस बात को समझते हुए जयन्त चौधरी अपनी रणनीति को दुरुस्त करने के लिए कुछ वक्त चाह रहे हैं। 

  बिगड़ रही सपा - रालोद की रणनीति

पश्चिम यूपी में ही रालोद का प्रभाव है और यहां खेती के काम में जुटे जाट फिर से रालोद के साथ खड़े थे। पिछले पंचायत चुनावों में जिला पंचायत सदस्यों में सपा और आरलएडी को यहां खासी जीत मिली थी। रालोद के प्रभाव के इस इलाके में जाट - मुस्लिम दो बडे वोट बैंक हैं। 2013 से पहले जाट राष्ट्रीय लोकदल के पक्के वोट बैंक थे, पर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट - मुस्लिम में आपस में बिखराव आया था। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला।

 किसान आंदोलन के बाद से स्थितियां बदलीं और किसान मुद्दे पर जाट - मुस्लिम एकता का समीकरण फिर बन गया था, जो राजनैतिक दृष्टि से बीजेपी के विपक्षी दलों रालोद और समाजवादी पार्टी के पक्ष में था। भाजपा ने किसान कानून वापस लेकर अपने पाजिटिव समीकरण में जान डाल दी है। इससे सपा - रालोद की इस इलाके को लेकर पूरी रणनीति बिगड़ती दिख रही है।

    कुछ ऐसा है रालोद का गणित

हालांकि आरएलडी के लोग अभी दोनों पार्टियों की दूरी की बात को नकार रहे हैं। पार्टी सूत्रों की ओर से कहा जा रहा है कि प्रेस कांफ्रेंस नहीं हो रहा, कोई बात नहीं, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी लगातार संपर्क में हैं। महागठबंधन पर बात चल रही है। केवल सीटों के बंटवारे की दिक्कत है। पार्टी सूत्रों की मानें तो रालोद इस गठबंधन में पैंतीस सीटों की मांग कर रही है। सपा की कोशिश है कि पचीस सीटों में बात बन जाए। हाल में बाइस सीटों पर रालोद और सपा के बीच सहमति बन गई थी। रालोद सहारनपुर , बागपत और मथुरा के बाहर भी सीटें पाना चाहती है। बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और मुरादाबाद पर भी उसकी नजर है। अंदरखाने की बात यह है कि सपा उसे इतनी बड़ी संख्या में सीटें देने पर सहमत नहीं है। जयंत अपने पिता चौधरी अजीत सिंह के निधन की सहानुभूति और किसान आंदोलन की लहर को अपने पक्ष में भुनाना चाहते थे, पर मोदी के मास्टरस्ट्रोक की चोट से कहीं दोनों का गठबंधन टूट न जाए।

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