सुभाषिनी लता कुमार, फिजी मूल की हिंदी साध्वी : प्रो. मुकेश मिश्र

 सुभाषिनी लता कुमार के 44 वें जन्मदिन पर विशेष आलेख

गिरमिटिया मजदूर के रुप में 1879 में फिजी चले गये थे पूर्वज और आज बज रहा भारतीय सभ्यता - संस्कृति का डंका, भारतीय मूल की फिजीयन हैं लेखिका सुभाषिनी लता कुमार आलेख प्रस्तुत कर रहे हैं डॉ. मुकेश कुमार मिश्र। लेखक करमा देवी स्मृति पीजी कालेज बस्ती में प्राचार्य हैं और हिंदी साहित्य में विशेष रूचि रखते हैं। 

फिजी दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर के मध्य स्थिति छोटा सा देश है जहां कि 37 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल के फिजीयन लोगों की है। कभी ब्रिटेन का उपनिवेश रहा फिजी में भारतीय मूल के बहुत से गिरमिटिया भाई-बहन 1879 ईस्वी में लियोनीदास जहाज पर सवार होकर 481 मजदूरों का एक जत्था फिजी में पहुंचा था जहां वह अपने रीति रिवाज लोक संगीत धार्मिक ग्रंथों के साथ अपनी भाषा और साहित्य के द्वारा वहां अपने को स्थापित किये हमारी संस्कृति, भाषा और साहित्य ने आज फीजी में जो स्थान प्राप्त किया है वह अत्यंत विशिष्ट है खासतौर पर भाषा साहित्य संस्कृति के संदर्भ में है फिजी लोग भी हमारी भाषा साहित्य और संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम रखते हैं उन्हीं में एक नाम युवा साहित्यकार हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रति हमेशा नए विषय एवं संदर्भ के साथ कुछ नया करने के लिए प्रतिबद्ध रहने वाली प्रोफेसर सुभाषिनी लता कुमार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

22 जुलाई 1977 को फीजी में जन्मी सुभाषिनी लता कुमार का व्यक्तित्व हिंदी भाषा एवं साहित्य को प्रौढ़ता प्रदान करने के साथ हिंदी भाषा को प्रचारित प्रसारित करने में विशेष रहा है। हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रति उनका प्रेम बचपन से रहा पारिवारिक एवं सगे संबंधियों के बीच हिंदी के प्रभाव से उनका प्रेम हिंदी के प्रति बढा साथ ही हमारी संस्कृति का प्रभाव भी उनके मस्तिष्क पर पड़ा, क्योंकि हिंदी भाषा और बोली प्रायः अपने धार्मिक संदर्भों के कारण लोगों के दिलों में स्थान बनाने में अहम होती है सुभाषिनी जी भी प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर हिंदी को ही चुना और उसी में कैरियर बनाने के साथ-साथ उस सनातन धर्मी संस्कृत से जुड़ी जिसने संपूर्ण विश्व में प्राचीन संस्कृत का घर कहा जाता है सुभाषिनी जी ने भारत सरकार की आईसीसीआर की फेलोशिप प्राप्त कर मैसूर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से एम ए (हिंदी साहित्य). दो वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रथम श्रेणी के साथ स्वर्ण पदक प्राप्त किया यह हिंदी भाषा और साहित्य के कैरियर में उन्होंने पहला कदम रखा इसके पूर्व वह फीजी के प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में 12 वर्षों तक अध्यापन किया साथ ही साथ फिजी हिंदी परिषद पश्चिमी शाखा के सचिव पद पर रहते हुए उन्होंने हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार प्रसार में आम भूमिका निभाई हिंदी दिवस विश्व हिंदी दिवस के आयोजनों में उनकी विशेष सहभागिता यह प्रमाणित करती है कि वह हिंदी सेवा के प्रति कितनी सजक है उनके आलेखों में हिंदी के छोटे - छोटे वाक्यों के प्रयोग से आप यह अनुभव कर सकते हैं कि लेखों में वाक्यों के प्रयोग में वह कितनी सजग हैं।   सुभाषिनी जी हिंदी लेखन में लंबे समय से अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही हैंं। 
उनके व्याख्यान में हिंदी भाषा के उत्थान पर विशेष टिप्पणी देखने को मिलती रही हैै। भारत के विभिन्न शोध पत्रिकाओं में उनके हिंदी विकास परंपरा पर आलेख प्रकाशित होते रहे हैं हिंदी शोध अर्धवार्षिक पत्रिका शोध सिंधु के मूल्यांकन समिति के सदस्य रूप में भी उनकी उपस्थिति रही है। उनके आलेखों में भी फिजी के हिंदी कवियों तथा भी फिजी में कार्यरत हिंदी संस्थाओंं, गिरमिटियों के ऐतिहासिक संदर्भ को बड़े स्तर पर देखा जा सकता है। सुभाषिनी जी के बहुत से आलेख भारत के दैनिक समाचार पत्र जनसंदेश, आज सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में बराबर प्रकाशित होते रहते हैं उनके शोध पत्रों में संदर्भों की सूची यह प्रमाणित करती है कि उन्होंने कितनी गंभीरता से कलम चलाई है। हाल के वर्षों में उनकी डॉ. मुकेश कुमार मिश्र के साथ संपादित पुस्तक थी 'फिजी हिंदी काव्य साहित्य' विद्या प्रकाशन कानपुर से प्रकाशित हुई इस पुस्तक की भूमिका में उन्होंने फिजी हिंदी काव्य साहित्य पर प्रकाश डालते हुए, फिजी गिरमिटिया इतिहास के साथ वर्तमान फिजी मूल के बारह कवि नरेश चंद्र, विद्या सिंह,मनीष राम रखा, रोहित प्रसाद, खेमेन्द्र कमल कुमार, सुखलेस बली, मनीषा राम रखा, सरिता चंद, रमेश चंद, दर्शनी प्रसाद , श्वेता दंत चौधरी, सुभाषिनी लता कुमार को संकलित कर फिजी के वर्तमान कवियों को हिंदी के कवियों के फलक पर लाकर जो गौरव प्रदान किया वह फिजी के कवियों के लिए विशिष्ट उपलब्धि है।
सुभाषिनी जी के कार्य ही उनकी पहचान है हिंदी कहानी में विशेष रूचि रखती है उनकी कहानी 'फंदा' में उन्होंने नारी मनोविज्ञान का जो स्वरूप प्रस्तुत किया है वह इस अर्थ में विशिष्ट है कि इस कहानी में नारी अपने पश्चाताप के सहारे नए संदर्भ की व्याख्या करती नजर आती है उन्होंने हिंदी कहानी में तत्कालीन संदर्भों को ज्यादा महत्व दिया है फीजी की प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र शांतिदूत में भी उनके अनेक आलेख प्रकाशित हुए उनकी हिंदी साहित्य साधना विगत 20वर्षों से अनेक सोपान तय कर चुकी है चाहे वह हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार या साहित्य का रहा हो उसमें उन्होंने अपनी पूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है उन्होंने हिंदी कहानी के साथ हिंदी कविता मे भी अपनी पूरी उपस्थिति दर्ज कराई है मन मेरे, बांका ट्री तेरे बिना, आरजू, फीजी कितना प्यारा है, दो बूंद बारिश, रिश्ते, हाशिए पर खड़ा जीवन जैसी कविताओं में उन्होंने संवेदनात्मक एहसास जैसा जिया वैसा ही काव्य मे उतारा है। उनका काव्य धारा के श्री कविता के काफी करीब है। उनकी कुछ पंक्तियां इसकी गवाह है  

  आज झूम रही है डाली डाली/कण-कण फीजी का लहराया /गिरमिटियो का भेंट रंग लाया (गिरमिटिया के भेंट)

बिन तेरे/उदासी है /छाई जिंदगी मेरी एक वनवास हो गई है(आरजू)

चेहरे से लुप्त हो रही है / एकाकी तनाव में रिश्ते भार बन गए हैं ( रिश्ते)

प्रकृति को बदलते /घरों को बदलते हैं (हाशिए पर खड़ा जीवन)

 उनकी कविताओं में विशेष संदर्भ हमेशा नए नए उपमान और स्वरूप देखने को मिलते हैं। नई कविता की उनकी कविताएं हमेशा एक उपदेशात्मक संदेश देकर आगे बढ़ जाती हैं। उन्होंने कविताओं और कहानी के अतिरिक्त जो शोध पत्र का लेखन किया है वह शोध परकता के सभी प्रतिमानो को परिभाषित करता है फीजी मे हिंदी भाषा शिक्षण दशा दिशा ,फीजी और भारत की मिली जुली संस्कृति व्रत त्योहार के परिपेक्ष्य, हिंदी का वैश्विक परिदृश्य और फीजी जैसे शोध आलेख इसकी प्रमाणिकता सिद्ध करते हैं। हिंदी साहित्य और भाषा के संवर्धन के लिए उन्होंने फिजी ही नहीं आईसीसीआर फैलोशिप के दौरान मैसूर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के कई आयोजनों में अपनी पूर्ण सहभागिता दी है। अभी हाल में प्रो. प्रतिभा मुदलियार द्वारा अनुवादित साईं बाबा पुस्तक के कुछ अंशों का ऑनलाइन वाचन कर हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति जो समर्पण का भाव प्रस्तुत किया है वह उनके साहित्य और भाषा के प्रति एक बड़े प्रचार प्रसार के उपक्रम रूप में देखा जा सकता है।

 सुभाषिनी लता कुमार की अभी हाल में प्रकाशित पुस्तक 'फिजी में हिंदी भाषा और संस्कृति ' एक ऐसी पुस्तक है जिसमें उन्होंने हिंदी भाषा साहित्य और संस्कृति के सहारे फीजी के मूल्यांकन और वहां हिंदी के साथ सांस्कृतिक विकास परंपरा पर जो संग्रहित आलेखों की पुस्तक रूप में प्रस्तुति की है वह विशेष रूप से उल्लेखनीय है इस पुस्तक में संग्रहित आलेखों में फीजी में तुलसी की रामायण का सांस्कृतिक प्रभाव ,फीजी की हिंदी कविताओं में अप्रवासी संवेदना ,पूर्वजों की गिरमिटिया गाथा, जैसे आलेख से साफ प्रमाणित है कि उन्होंने फीजी में प्रवासी संवेदनाओं से लेकर वहां भारतीय ग्रंथों के समावेशित स्वरूप का चित्रण बुद्धिजीवी वर्ग के समक्ष जो प्रस्तुत किया है वह अत्यंत महत्वपूर्ण है

   सुभाषिनी लता कुमार का साहित्य रचना संसार कविताओं कहानी के साथ शोध परक विषयों के प्रति काफी सजग रहा है। सांस्कृतिक धार्मिक और राष्ट्र के प्रति हमेशा से समर्पित रही हैं। कलाओं और उसके मंचन के प्रति उनकी विशेष रूचि रही है। फिजी मूल की होने के बावजूद उनके उच्चारण और संबोधन शुद्ध हिंदी में ही होने लगता है। इतना ही नहीं उन्होंने भारतीय संस्कृति के साथ फिजी संस्कृति को भी बराबर महत्व दिया है। उन्होंने साहित्य के हर पहलू को बारीकी से परखा है।  विगत 14 सितंबर 2018 को करमा देवी स्मृति पी जी कॉलेज संसारपुर बस्ती के 'विश्व पटल पर हिंदी' विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा 'हिंदी भारत की नहीं बल्कि विश्व के सभी जनों की भाषा बननी चाहिए। उसके साहित्य और संस्कृति ने संपूर्ण विश्व को ऐसी संस्कृति दी है अगर उसका वरण किया जाये तो संपूर्ण विश्व खुशहाल हो जायेगाा' उनके काम की सार्थकता ही उनकी पहचान है। फिजी देश के अतिरिक्त भारत के विभिन्न संस्थानों द्वारा उन्हें अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है उन पुरस्कारों में हिंदी प्रचार प्रसार हेतु समेकित भारतीय साहित्य संस्थान बस्ती (उत्तर प्रदेश)द्वारा स्वर्गीय मधुर नारायण मिश्र स्मृति सम्मान तथा सर्जन लोक अकादमी आरा( बिहार) द्वारा हिंदी सेवी सम्मान से भी , अभी हाल में 2018 में वैश्विक साहित्यिक सांस्कृतिक विज्ञान परिषद् मुंबई द्वारा हिंदी सम्मान से विभूषित किया गया !

 फिजी के हिंदी साहित्यकारों जोगिंदर सिंह कवल, डा विवेकानंद शर्मा, स्व. कमला प्रसाद मिश्र जैसे रचनाकारो ने हिंदी को विकसित किया, परंतु वर्तमान फिजी में हिंदी भाषा साहित्य के प्रचारकों में प्रोफेसर सुब्रमनि, श्रीमती इन्द्र नायडू की नाम की श्रेणी में सुभाषिनी लता कुमार का नाम भी विशेष रुप से उल्लेखनीय है उन्होंने ने अपने कार्य के माध्यम से जो मुकाम हासिल किया है वह उनके विराट सहदय व्यक्तित्व का ही परिणाम है आने वाले वर्षों में वह अपने साहित्यिक एवं हिंदी प्रचार प्रसार के कार्य द्वारा हिंदी के विश्व पटल पर एक नया इतिहास रचेंगी ,ऐसा विश्वास है !

                   प्रो . मुकेश मिश्र, प्राचार्य 

    करमा देवी स्मृति पी जी कालेज संसारपुर बस्ती (उ.प्र.)

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