क्या अखिलेश बढ़ा रहे बुआ की परेशानी

                           (संजीव पाण्डेय) 

लखनऊ । बसपा प्रमुख मायावती की पीड़ा उनके ट्वीट में साफ नजर आ रही है। मायावती ने अपने लहजे में अखिलेश यादव पर बसपा के नेताओं और पार्टी से बाहर हो चुके नेताओं से मिलने पर निशाना साधा है। मायावती के इस ट्वीट पर समाजवादी पार्टी के नेता चुटकी लेते हुए कहते हैं कि अभी देखते जाइए आगे-आगे होता है क्या? पार्टी के एमएलसी और अखिलेश यादव के करीबी संजय लाठर कहते हैं समाजवादी पार्टी में इस समय हर दल के नेता शामिल होना चाह रहे हैं। कांग्रेस, बसपा, भाजपा के कई नेता हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष से संपर्क कर रहे हैं।

मायावती की 2007-12 की सरकार में मंत्री रहे एक नेता का कहना है कि हमारे यहां सबकुछ ठीक है, बस बोलने पर मनाही है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि भाजपा की योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक तो बसपा के ही नेता थे। अब भाजपाई हो गए हैं। कुछ नेताओं को हाल में मायावती ने पार्टी से निकाला है। वह भी अपना कहीं न कहीं राजनीतिक भविष्य तलाशेंगे। हो सकता है कि राम अचल राजभर सरीखे नेता किसी दूसरे दल में चले जाएं या फिर बाबू सिंह कुशवाहा की तरह नई पार्टी बनाएं। वरिष्ठ नेता का कहना है कि बसपा को थोड़ा डिप्लोमैटिक होना चाहिए। ऐसा न होने के कारण अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग समेत तमाम जातियों में हमारा जनाधार घट रहा है। इसे हमारे रणनीतिकारों को सोचना चाहिए।

 नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर

भाजपा के नेता 2022 में भी जहां 2017 की तरह ही बहुमत मिलने का दावा कर रहे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी के संजय लाठर को 300 से अधिक सीटें आने की उम्मीद है। जौनपुर से चुनाव लड़ने के लिए प्रयासरत सपा नेता सुशील कुमार दुबे का कहना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में जातिगत, सामाजिक और राजनीतिक समीकरण समाजवादी पार्टी के पक्ष में रहने वाला है। पटेल, कुर्मी, कोइरी, नाऊ, कहार, लुहार, पासी, धोबी समेत तमाम अन्य पिछड़ी जातियां सपा के साथ रहने वाली हैं। इसके साथ-साथ ब्राह्मण, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में खड़ा रहेगा। सुशील कहते हैं कि यही कारण है कि दूसरे दलों के नेता भी सपा में टिकट पाने के लिए जोर लगा रहे हैं। अखिलेश के एक अन्य करीबी विधायक का कहना है कि कांग्रेस के नेता जितिन प्रसाद भाजपा में जाने से पहले सपा में आना चाह रहे थे। उन्होंने कोशिश की लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ग्रीन सिग्नल नहीं दिया। लिहाजा भाजपा में चले गए।

सपा नेताओं के इस दावे पर प्रयागराज से भाजपा के नेता ज्ञानेश्वर शुक्ला कहते हैं कि दावा करने का सभी को अधिकार है। समाजवादी पार्टी के नेताओं को चाहिए कि अभी वह पहले अपना घर संभाल लें। कांग्रेस के नेता शिवराय कहते हैं कि अभी इसके बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं है। चुनाव अभी आठ महीने बाद होगा और तब तक उत्तर प्रदेश दो मौसम का सामना कर लेगा। इसलिए अभी कुछ कहना ठीक नहीं है। शिव राय कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की जनता योगी सरकार के कामकाज से निराश भी है और नाराज भी। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलने वाला है।

अमेठी में राजीव गांधी के लिए और मछली शहर में पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र के चुनाव प्रचार रणनीतिकार रहे प्रदीप पाठक कहते हैं कि मार्च-अप्रैल और मई में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार का ग्राफ तेजी से गिरा है। प्रधानमंत्री मोदी की छवि को भी ठेस पहुंची है। इसलिए बहुत हद तक संभावना है कि राज्य की जनता नया विकल्प आजमा सकती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी काफी मेहनत कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस का जमीनी संगठन अभी तक खड़ा नहीं हो पाया है। इसलिए सरकार विरोधी लहर का लाभ दो ही दलों को मिलने की स्थिति बन रही है। एक है सपा और दूसरी बसपा। इसमें समाजवादी पार्टी की स्थिति ज्यादा मजबूत रह सकती है। क्योंकि बसपा को लोग भाजपा के साथ दोस्ताना रिश्ता रखने वाली पार्टी मानने लगे हैं। प्रदीप कहते हैं कि पिछले कुछ चुनावों से एक चलन बढ़ा है। जिस पार्टी की स्थिति मजबूत रहती है, राजनीति के मौसम विज्ञानी उधर का रुख कर लेते हैं। इस बार भी जुलाई अगस्त के बाद यह रुख देखने को मिल सकता है। संजय लाठर का कहना है कि लोग हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलना चाहते हैं, इसलिए वह मिल रहे हैं। लेकिन बात इतनी भर नहीं है। ज्ञानेश्वर शुक्ला कहते हैं कि जब किसी पार्टी में दूसरे दल के नेता शामिल होने लगते हैं तो पिछले कुछ चुनावों से उस दल के पक्ष में माहौल तेजी से बदलने लगता है। नकारात्मकता कम करने में भी मदद मिलती है। भाजपा ने पिछले कुछ सालों में इस रणनीति के बल पर कई सफलताएं अर्जित की हैं। माना जा रहा है कि इसी नीति पर चलते हुए अखिलेश यादव भी अपना राजनीतिक बाजार चमका रहे हैं। हालांकि पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों ने साबित किया है कि आयाराम-गयाराम से राजनीति की ट्रेन पटरी से उतरने की भी संभावना रहती है। भीतरघात बढ़ जाता है।

शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के नेता की कमजोर कड़ी हैं। इसलिए अखिलेश चाचा को न तो नाराज करना चाहते हैं और न खुश। पार्टी के एक नेता बताते हैं कि यदि शिवपाल चाहेंगे तो समाजवादी पार्टी जहां से वह चुनाव लड़ेंगे, प्रत्याशी नहीं उतारेगी। इसके अलावा दो-चार सीटों पर उनके करीबी, जीतने योग्य समर्थकों को टिकट दे देगी। लेकिन अभी शिवपाल से करीबी बढ़ने के संदेश देने का खतरा भी है। कहीं वह भाजपा के साथ मिल गए तो? इसलिए अखिलेश यादव इस मामले में फूंककर कदम रख रहे हैं। महान दल, अपना दल की नेता कृष्ण पटेल समेत अन्य समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं। अमरपाल शर्मा को सपा से जोड़कर अखिलेश ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों में पैठ बनाने की कोशिश की है तो गोरखपुर की काजल निषाद के भी सपा से जुड़ने की संभावना है। काजल निषादों में काफी लोकप्रिय हैं। मलिक, सैनी, कुर्मी, कोइरी पटेल पर पूरी निगाह है। पूर्व बसपा नेता लालजी वर्मा भी संपर्क में बताए जा रहे हैं और राजभर समुदाय को जोड़ने के लिए समाजवादी पार्टी के नेता सक्रिय हैं।

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