यह कैसा मंजर है कोरोना - आनन्द गौरव शुक्ल

       मंजर   (कोरोना से उत्पन्न स्थिति पर एक रचना) 

          हाले दिल - आनंद गौरव शुक्ल

यह कैसा मंजर है, यह कैसा मंजर है ?

हर इंसान खूनी खंजर है !! 

भाग रहे हैं लोग अपनों से ऐसे। 

जैसे जी लेंगे जीवन अकेले में वैसे।। 

हर तरफ दर्द ही दर्द और बेबसी फैला हुआ है। 

इंसान अब जानवर सा हुआ है।। 

 संस्कृति, रीति -रिवाज एवं संस्कारों का हो रहा चीरहरण,

 यह कैसा दुशासन है जो हर घर मे पला है ?

 इस बार भी आओ कन्हैया। 

इस बार भी लाज बचाओ कन्हैया।।

लोग जान बचाने मे लगे है, झूठा आस लगाने मे लगे हैं। 

 मानवता को मिटाने मे लगे हैं।। 

न सिंहासन का झगड़ा न अधिकारों की लड़ाई,

फिर कुरुक्षेत्र में युद्ध कैसे है सजाई। 

किसके सारथी बनोगे यह बताओ कन्हैया।

इस बार लाज मानवता की बचाओ कन्हैया।।

      - लेखक आनन्द गौरव शुक्ल सामाजिक सरोकारों से जुड़े साहित्यिक अभिरूचि के व्यक्ति हैं।

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