समाज और साहित्य के सेतुबंध स्व. दाऊ जी गुप्त (स्मृति शेष)

दाऊजी गुप्त समाज एवं साहित्य के ऐसे अमूल्य निधि एवं धरोहर थे। जिनकी भरपाई करने में हम सबको सदियां गुजर जाएंगी। 15 मई 1940 को जन्मे दाऊजी गुप्त ने समाज के हर वर्गों को बराबर स्थान दिया - प्रो. मुकेश मिश्र 

 समाज ,राजनीति और साहित्य को उन्होंने अपने सिद्धांतों की पैरोडी पर रचा समझौता सब उनके शब्दकोश से बाहर था कहने को बहुत से राजनीतिक ,साहित्यकार समाजसेवी, गणमान्य लोग उनके मित्र थे परंतु पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई से उनका निकट आत्मीय संबंध होने के बावजूद वाह अपने सिद्धांतों और विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया राजनीति समाज और हिंदी की सेवा यात्रा उनके जीवन की एक लंबी यात्रा रही ! वह व्यक्ति की पहचान उनके गुणों के आधार पर करते थे, प्रारंभिक राजनीति कांग्रेस से शुरू की पर सबसे ज्यादा मित्र उनके समाजवादी ,भाजपा बसपा या कहें कि प्रतिपक्ष उनके ज्यादातर करीब रहा उनका मानना था व्यक्ति का स्वभाव आचरण ही उसे समाज में उच्च प्राथमिक स्थान देता है। 

  लखनऊ नगर हमेशा उनके हृदय में बसता रहा, आज वर्तमान लखनऊ की भव्यता का जो हम स्वरूप देखते हैं उसके पीछे के सृजन करता दाऊजी रहे 21 वर्षों तक लखनऊ के मेयर पद को सुशोभित करते हुए उन्हें लखनऊ शहर की परिकल्पना का आधुनिक संदर्भ बनाये वह उनकी तूलिका से नवनिर्मित हुआ है। उन्होंने जीवन को बहुत करीब से देखा और अनुभव किया था स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्र भारत तक ही उनका जीवन विस्तार नहीं रहा हमेशा उन्होंने सिद्धांतों की बात की महिला सशक्तिकरण के पक्ष तथा ओछी राजनीति के खिलाफ रहे , उन्होंने राजनेताओं को आगाह करते हुए कहा था कि आप किसी क्रिया और प्रतिक्रिया में शामिल ना हो आपका जवाब आप का कार्य है जनता उसका जवाब देगी और नैतिक मूल्य, सिद्धांत आपको समाज में स्थापित करेंगे उनके कार्य उनकी पहचान थी वह लखनऊ शहर के इनसाइक्लोपीडिया थे ,उन्होंने कभी किसी का विरोध नहीं किया हमेशा उस व्यक्ति का समर्थन किया जो समाज और जन के कल्याण के लिए तत्पर रहे चाहे वह उनके प्रतिपक्ष का क्यों ना हो जन के कल्याण को सबसे बड़ा महा कल्याण मानते थे, उनकी प्रतिष्ठा का स्वरूप आप इन बातों से लगा सकते हैं कि संघ के संचालक गोवलकर जी की मौत पर उन्होंने एक शोक सभा तत्कालीन मुख्यमंत्री गुप्तजी से बिना पूछे कि तो पक्षीय कांग्रेश के लोगों ने उनकी शिकायत की पर दाऊजी को उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा बाद में गुप्त जी उनकी इस निर्णय को सराहा वह किसी गुटके व्यक्ति नहीं थे

   दाऊजी का मानना था समाज मानव के विकास की वह आधारशिला है जिससे वह जोड़कर समाज की व्यवहारिकता को समझता है सांसारिक संदर्भों के प्रति जागरूक होता है ,उनका पारिवारिक संदर्भ स्वतंत्रता संग्रामी लोगों का रहा इस कारण सामाजिक सिद्धांतों एवं उसके प्रयोग को वह भलि भांति समझते थे अटल विश्वास और अटल सिद्धांत उनके जीवन के दो ऐसे आधार स्तंभ थे जिस पर उन्होंने अपने व्यक्तित्व को निखारा था या कहें उसे समाज के बीच स्थापित कर उसे मिसाल के तौर पर प्रस्तुत किया था जातिवाद ऊंच-नीच भेदभाव का कोई स्वरूप उनमें नहीं रहा अटल विश्वास अटल सिद्धांत उनका खुद का नारा था। 

    दाऊजी ने हमेशा कार्य को महत्व दिया जिसका भी दायित्व उन्हें मिला उसका उन्होंने पूरा निर्वहन किया वह हमेशा राजनीति को जन के बातों को ऊपर तक पहुंचाने का माध्यम मानते थे वह शहरी विकास, नगरी विकास को विशेष महत्व देते थे इसी का प्रतिफल था, 1972 में अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड मेयर अधिवेशन जो हुआ उसमें महाभारत के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य होकर उसकी अगुवाई की इतना ही नहीं उस अधिवेशन के वाइस प्रेसिडेंट बनकर भारत के गौरव का जो मान सम्मान बढ़ाया वह इतिहास बनकर हम सबके बीच संरक्षित है

उनका व्यक्तित्व एक ऐसी धरोहर है जिनके स्वरूप को परिभाषित करना बड़ा कठिन है कांग्रेसी सिद्धांतों के पोषक होने के साथ वह समाज और जनता के उन रहनुमाईयो में थे जिस के भले के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तत्पर रहते, 1975 के इमरजेंसी में 11 महीने बंद रहते हुए मीसाबंदी में भी उनका नाम दर्ज रहा अतः इस बात से प्रमाणित है कि वह जन समाज के कल्याण के लिए किसी हद तक जा सकते थे सामाजिक सरोकार उनकी जरूरत नहीं बल्कि उनका कर्तव्य था जिसके लिए वह बराबर तत्पर रहते उनका सामाजिक सरोकार नैतिक जीवन की उस पाठशाला से आरंभ होताहैं जिसकी जरूरत समाज के हर वर्ग को होती है जीवन और सामाजिक मूल्यों के सहारे अपने को समाज से जोडे रखें, वही उनकी मूल थाती थी समाज के समस्याओं का समाधान उनकी स्वयं की परिणति बन चुकी थी

   नाका हिंडोला, शंभू हलवाई की रबड़ी, चौक की चाट से उनका नाता बचपन, किशोरावस्था के साथ जीवन के अवसान तक रहा जीवन के उन्होंने 81 वर्ष दिये हमेशा अपने मित्रों के बीच सौहार्द और प्रेम के पपीहा थे उनका सामाजिक चिंतन कई सिद्धांतों और दार्शनिक विचारधारा से निर्मित वह जहां बौद्ध दर्शन से प्रभावित रहे तो राष्ट्रवाद के हेड गवार भी उन्हें प्रभावित करते थे

उनका व्यक्तित्व कई अंणु से निर्मित था उनका एक स्वभाव यह भी था कि कोई उनका कितना भी करीबी क्यों ना हो गलत है तो उसका साथ ना देते बल्कि उसे समझा कर उसे गलत पथ से पृथक करने की कोशिश करते ना जाने कितने किस्से उनकी यादों में है जिसे बयां करने में कई पन्ने खत्म हो जायेंगे !वह समाज और साहित्य के साथ सामंजस्य बैठाकर चलते रहे वह समाज और साहित्य को एक दूसरे का पूरक मानते थे तुलसीदास कि वह उकति समरथ के नहिं दोष गुसाईं उन पर सटीक बैठती है एक प्रकार से समर्थवान व्यक्ति के लिए सब कुछ जायज है वह ऐसे ही व्यक्ति थे थे हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार प्रसार में उनका योगदान हमेशा स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा भारत ही नहीं विश्व के अन्य कई हिंदी संस्थानों के वह स्थापना करता के साथ नेतृत्वकर्ता भी थे 1975 से 2018 तक जितने भी विश्व हिंदी सम्मेलन हुए उसमें प्रतिभाग के साथ जो सहयोग दिया वह अपने आप में स्वयं एक इतिहास है और छठा विश्व हिंदी सम्मेलन 1999 ई में लंदन में आयोजित हुआ उसके वाह आधार स्तंभ थे उनका अध्ययन अध्यापन हमेशा उन्हें अंदर से ऊर्जा प्रदान करता था वह हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए हमेशा तत्पर रहते विश्व हिंदी समिति अमेरिका 1980 में स्थापित करने वाले वही थे आज जहां भी विदेशों में हिंदी के प्रचार प्रसार की ज्योति जागृति हुई है उसके पीछे दाऊ जी गुप्त का ही हाथ है 

 उन्होंने हिंदी सेवा के प्रचार प्रसार के लिए अपने पुत्र श्रद्धेय डॉक्टर पदमेश गुप्त जी को भी प्रोत्साहित किया जो वर्तमान में यूके के हिंदी समिति के माध्यम से संपूर्ण विश्व में हिंदी की ज्योति जलाये हुए हैं दाऊजी गुप्त 15 भाषाओं की जानकार और 9 भाषाओं में लिखने पढ़ने वाले व्यक्तित्व थे उन्होंने अनेक साहित्यिक पुस्तकों की रचना के साथ मैरीलैंड विश्वविद्यालय न्यूजीलैंड में विजिटिंग प्रोफेसर के पद को भी सुशोभित किया तमिलनाडु सरकार की पेरियार अवार्ड से सम्मानित होने वाले अकेले उत्तर भारतीय व्यक्ति थे उनका सपना था कि लखनऊ का इतिहास पूर्व से आज तक संजोकर जन के समक्ष प्रस्तुत करने का जिसकी पांडुलिपि उन्होंने तैयार कर ली थी पर क्या पता था वह चिट्ठी ना कोई संदेश दिए हम सब से पृथक होकर स्वर्गवासी हो जाएंगे कालसर्प के इस कोरोना महामारी ने हमसे छीन लिया वह ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके संबंध में हम कुछ लेखो चर्चाओं द्वारा परिभाषित नहीं कर सकते। 

ऐसे महान व्यक्तित्व को सादर नमन


  लेखक - प्रोफेसर  - मुकेश कुमार मिश्र

    प्राचार्य, के एस एम पीजी कालेज संसारपुर बस्ती ,यू.पी (भारत)

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