वशिष्ठी (बस्ती) में राज्याभिषेक के साथ सनातन धर्मी रामलीला महोत्सव सम्पन्न 


       (भृगुनाथ त्रिपाठी 'पंकज') 


बस्ती (उ.प्र.) । सनातन धर्मी संस्था और श्री रामलीला महोत्सव आयोजन समिति की ओर से अटल बिहारी वाजपेई प्रेक्षागृह में चल रहे श्रीराम लीला के दसवें दिन श्रीराम और रावण की सेना में भीषण संघर्ष हुआ जिसमें दशानन मारा गया और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। आयोजकों ने संकल्प व्यक्त किया कि श्रीरामलीला का आयोजन अगले वर्ष भी होगा। 10 दिन चलने वाली श्रीरामलीला ने गुरूवार की मध्य रात्रि में विश्राम लिया। 



लंका दहन के दृश्य में जहां दर्शकों का उत्साह देखते बन रहा था वहीं अशोक वाटिका के प्रसंग ने भावुक कर दिया। कुम्भकरण वध, मेघनाद वध, अहिरावण वध, रावण वध,  राम- भरतमिलन, रामराज्यभिषेक की लीला का मंचन किया गया। लक्ष्मण मेघनाथ युद्ध, कुंभकरण वध के बाद रावण बध तक की लीला में लोग तरह-तरह की संवेदनाओं और भावनाओं में डूबते उतराते रहे। 



कथा व्यास कृष्ण मोहन पाण्डेय व विश्राम पाण्डेय ने कथा सूत्र को विस्तार देते हुए बताया कि लीला में अंत में कुंभकरण मारा जाता है। इसके बाद लक्ष्मण बने राजा बाबू पाण्डेय जोरदार आवाज में मेघनाद को ललकारते हैं। दोनों में युद्ध होता है। लखन लाल मेघनाथ का भी वध कर देते हैं। उसके बाद राम और रावण के बीच लंबा युद्ध चलता है। इसी बीच विभीषण ने बताया कि रावण की नाभि में अमृत है, उसे भेदकर ही रावण की मृत्यु संभव है। इसके बाद रामबाण चलाकर रावण की नाभि में पड़े अमृत को सुखा देते हैं। रावण के गिरते ही दर्शक जय श्रीराम के गगन भेदी नारे लगाने लगते हैं। पूरा प्रेक्षागृह जय सियाराम के जयकारे से गूंजने लगता है।



भगवान श्री राम माता जानकी को लेकर वापस अयोध्या आते हैं। राम और भरत का मिलन होता है और इसके बाद राम राज्याभिषेक को वैदिक मंत्रोच्चार, पुष्प वर्षा व स्वस्ति वाचन के साथ परंपरागत ढंग से संपन्न कराया जाता है। कार्यक्रम के अंत मे आयोजक सनातन धर्मी संस्था द्वारा कलाकारों, दानदाताओं, व्यवस्था प्रमुखों, कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया। दर्शकों में मिठाई, टॉफी, उपहार व धार्मिक पुस्तकों का वितरण किया गया। आयोजकों ने सभी को धन्यवाद देकर कार्यक्रम के विश्राम की घोषणा किया।



श्री धनुषधारी आदर्श रामलीला मण्डल अयोध्या से आये कलाकारो द्वारा प्रस्तुत लीला में प्रभु राम की भूमिका आनन्द तिवारी ने, लक्ष्मण की राजा बाबू पाण्डेय ने, माता सीता की मोनू पाण्डेय ने, हनुमान की रामचन्द्र शास्त्री ने, सुग्रीव की प्रेम नारायण मिश्र ने, अंगद की दीपक झा ने, रावण की उमेश झा ने, मेघनाथ की ज्ञानचंद पाण्डेय ने, विभीषण की रमेश कुमार पांडेय ने भूमिका निभाई। पात्र संरक्षक विश्राम पाण्डेय के निर्देशन में लीला का मंचन किया गया। दर्शकों से खचाखच भरे आडिटोरियम में भगवान राम के राज्याभिषेक का वीडियो देखें : -



लंकाधिपति रावण ने अयोध्यापति श्रीराम का धुर विरोधी होने के बावजूद बाह्मण आचार्य पद का सम्मान रखते हुए 'लंका विजय यज्ञ' का आशीर्वाद दिया था। रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था. उसे भविष्य का पता था। वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव है। ऐसे में जब श्रीराम ने खर-दूषण का सहज ही वध कर दिया, तब तुलसी कृत मानस में भी रावण के मन भाव लिखे हैं : - 


खर दूषन मो सम बलवंता। तिनहि को मारहि बिनु भगवंता।।


सत्य जानने की वजह से ही लंकाधिपति रावण ने अयोध्यापति श्रीराम का धुर विरोधी होने के बावजूद बाह्मण आचार्य पद का सम्मान रखते हुए 'लंका विजय यज्ञ' का आशीर्वाद दिया था।बात तब की है जब सीताहरम के बाद श्रीराम वानरों की सेना लेकर लंका पर चढ़ाई करने के लिए रामेश्वरम समुद्र तट पर पहुंचे। युद्ध में विजय के लिए 'लंका विजय यज्ञ' के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति को बुलावाने भेजा गया, मगर उन्होंने आने में अपनी असमर्थता व्यक्त की। इसके बाद विजय यज्ञ पूर्ण कराने के लिए जामवंत को रावण के पास आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया। स्वयं रावण को राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवंत ने मुस्कराते हुए कहा था 'मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूं। मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूं। उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है।' रावण ने सविनय कहा, 'आप हमारे पितामह के भाई हैं। इस नाते आप हमारे पूज्य हैं. आप आसन ग्रहण करें। 



कम्ब रामायण' में है वर्णन


शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि 'वाल्मीकि रामायण और 'तुलसीकृत रामायण' में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी महर्षि कम्बन की 'इरामावतारम्' रामायण मे इस कथा का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा कम्ब रामायण और बंगाल में प्रचलित 'कृत्तिवास रामायण' में भी इसका वर्णन मिलता है। 'कम्ब रामायण' तमिल साहित्य की सर्वोत्कृष्ट कृति एवं एक बृहत् ग्रंथ है। 



उन्होंने तमिल भाषा में लिखी रामायण के आधार पर कहा कि जामवंत ने आसन ग्रहण कर रावण से कहा कि वनवासी राम सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं। इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होंने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचार्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है। मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूं। 



 वनवासी श्रीराम ने सम्मुख होते ही आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। हालांकि 'दीर्घायु भव, लंका विजयी भव' दशग्रीव के इस आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया। मामले को समझ रावण ने कहा, 'यह आशीर्वाद आचार्य ब्राह्मण रावण ने अपने यजमान वनवासी राम को दिया न कि लंकाधिकपति राजा रावण ने अपने धुर विरोधी अयोध्यापति श्रीराम को दिया है।' रामायण में प्रसंग है कि भूमि शोधन के उपरांत रावणाचार्य ने कहा कि यजमान, अर्धांगिनी कहां है, उन्हें यथास्थान आसन दें।



सीताजी के बिना यज्ञ कैसे


श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यंत विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान संपादन कर सकते हैं। इस पर रावण ने कहा, 'अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है। प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं।



यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था। इन सबके अतिरिक्त तुम संन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है। इन परिस्थितियों में पत्नीरहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो ?' इस पर राम ने पूछा, 'कोई उपाय आचार्य ?'



पुष्पक में बैठी सीताजी को लाए विभीषण


इस पर रावण ने कहा, 'आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं. अगर स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं।' श्रीराम ने हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए मौन भाव से इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार किया। श्री रामादेश के परिपालन में विभीषण मंत्रियों सहित पुष्पक विमान तक गए और सीता सहित लौटे। 



आचार्य रावण ने सीताजी से कहा, 'अर्ध यजमान के पाश्र्व में बैठो अर्ध यजमान'। आचार्य के इस आदेश का वैदेही ने पालन किया। गणपति पूजन, कलश स्थापना और नवग्रह पूजन उपरांत आचार्य ने पूछा, 'लिंग विग्रह'। श्रीराम ने निवेदन किया कि उसे लेने गत रात्रि के प्रथम प्रहर से पवनपुत्र कैलाश गए हुए हैं। अभी तक लौटे नहीं हैं, आते ही होंगे। 



सीताजी ने रेत से बनाया लिंग-विग्रह


रामायण में वर्णित है कि आचार्य ने आदेश दे दिया कि विलम्ब नहीं किया जा सकता। उत्तम मुहूर्त उपस्थित है। इसलिए अविलम्ब यजमान-पत्नी रेत का लिंग-विग्रह स्वयं बना ले।जनक नंदिनी ने स्वयं समुद्र तट की आद्र्र रेणुकाओं से आचार्य के निर्देशानुसार यथेष्ट लिंग-विग्रह निर्मित किया। यजमान द्वारा रेणुकाओं का आधार पीठ बनाया गया। श्री सीताराम ने वही महेश्वर लिंग-विग्रह स्थापित किया। आचार्य ने परिपूर्ण विधि-विधान के साथ अनुष्ठान सम्पन्न कराया। 



अनुष्ठान समाप्त होने के बाद श्रीराम ने पूछा, 'आचार्य आपकी दक्षिणा'। आचार्य के शब्दों ने फिर चौंकाया। रावण ने कहा, 'घबराओ नहीं यजमान। स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति नहीं हो सकती। आचार्य जानते हैं कि उनका यजमान वर्तमान में वनवासी है'। इस पर श्रीराम ने कहा लेकिन फिर भी राम अपने आचार्य की जो भी मांग हो उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है। तब रावण ने कहा 'आचार्य जब मृत्यु शैय्या ग्रहण करे तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहे।' आचार्य ने यही अपनी दक्षिणा मांगी। 'ऐसा ही होगा आचार्य।' यजमान ने वचन दिया और समय आने पर निभाया भी। 



कार्यक्रम का संचालन विवेक मिश्र व अनुराग शुक्ल ने संयुक्त रूप से किया। दर्शकों में अखिलेश दूबे, कैलाश नाथ दूबे, सुनील सिंह, सिद्धार्थ मिश्र, कौशल गुप्ता, कमलेन्द्र पटेल, रवि चौधरी, डॉ डी के गुप्ता, डॉ अभिनव उपाध्याय, अभिषेक मणि त्रिपाठी, ओमकार मिश्र, राम सिंह, राघवेंद्र मिश्र, गोविंद दूबे, रमेश सिंह, सुभाष शुक्ल, आमोद उपाध्याय, बृजेश मिश्र, अंकुर वर्मा, बृजेश सिंह मुन्ना, आशीष शुक्ल, राहुल त्रिवेदी, विनय कुमार शुक्ल, अरविंद सिंह, श्याम नरायन चौरसिया, सुनील कुमार गिरि, अमन, अंकित, अभय आदि शामिल रहे। सनातन धर्मी संस्था व रामलीला महोत्सव समिति ने सेवा और सुरक्षा कार्यों में दायित्वों का निर्वहन करने वाली विभूतियों को सम्मानित भी किया। 


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