(कविता) तुम मुझको कब तक रोकोगे @ वैभव चतुर्वेदी
तुम मुझको कब - तक रोकोगे (वैभव चतुर्वेदी के व्यक्तित्व पर आधारित कविता)
मुठ्ठी मे कुछ सपने लेकर
भरकर जेबो मे आशाये । दिल मे है अरमान यही कुछ कर जाये कुछ कर जाये ।
सूरज सा तेज़ नही मुझमे दीपक सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से तुम मुझको कब - तक रोकोगे
तुम मुझको कब - तक रोकोगे ।
मैं उस माटी का वृक्ष नही जिसको नदियो ने सींचा है
मैं उस माटी का वृक्ष नही जिसको नदियों ने सींचा है ।
बंजर माटी मे पलकर मैने
मृत्यु से जीवन खींचा है ।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं
शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नही
तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे ।
इस जग मे जितने ज़ुल्म नही
उतने सहने की ताकत है
इस जग मे जितने ज़ुल्म नही
उतने सहने की ताकत है
तानो के भी शोर मे रहकर सच कहने की आदत है
मै सागर से भी गहरा हूँ
तुम कितने कंकड़ फेकोगे
चुन - चुन कर आगे बढूँगा मै तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे ।
झुक - झुककर सीधा खड़ा हुआ
अब फिर झुकने का शौक नही
झुक - झुककर सीधा खड़ा हुआ
अब फिर झुकने का शौक नही
अपने ही हाथो रचा स्वयं तुमसे मिटने का खौफ़ नही
तुम हालातो की भट्टी मे
जब - जब भी मुझको झोंकोगे
तब तपकर सोना बनूंगा मै तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे ।
(लेखक - के. के. मिश्र पत्रकार)