जीवन है अनमोल, इसको खेल न समझें : विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस


(पवन शुक्ल) 


 हताशा व निराशा में कोई भी गलत कदम न उठायें, अपनों से करें बात, हर समस्या का होगा समाधान  


बस्ती (उ.प्र.) । कम समय में बहुत कुछ हासिल कर लेने की तमन्ना और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लोग मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। इसमें जरा सी नाकामयाबी अखरने लगती है और लोग अपनी जिन्दगी तक दांव पर लगा देते हैं। कोरोना काल में भी लाक डाउन के चलते तमाम लोगों की नौकरियां चलीं गयीं, लोगों को अपनी रोजी-रोजगार छोड़कर वापस गाँव लौटना पड़ा। लोग तनाव में थे लेकिन अपनों के बीच बैठकर जब समस्या रखी तो उसका समाधान भी निकला। इसलिए जब भी हताशा-निराशा में कोई भी गलत कदम उठाने की बात दिमाग में आये तो सबसे पहले अपनों के करीब जाएँ।   



इन्हीं मामलों को देखते हुए हर साल 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का मकसद आत्महत्या को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करना। यह सन्देश देने की कोशिश की जाती है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है इस वर्ष की थीम है “आत्महत्या रोकने को मिलकर काम करना” कोरोना काल में मीडिया में ऐसी कई खबरें आयीं कि कोरोना उपचाराधीन ने डर के कारण आत्महत्या कर ली, इसमें पढ़े लिखे लोग भी शामिल थे। कुछ लोगों ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। 


इसका सीधा जुडाव मानसिक स्वास्थ्य से है। इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन के अनुसार विश्व में आठ लाख लोग हर साल आत्महत्या करते हैं, यानि हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से होती है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में आत्महत्या की दर 2.4 प्रति लाख जनसंख्या है मतलब यह है कि एक लाख की आबादी पर लगभग दो लोग आत्महत्या करते हैं। वहीं राष्ट्रीय दर 10.4 प्रति लाख जनसंख्या है। 


जनपद के मानसिक स्वास्थ्य के नोडल अधिकारी डा. सीके वर्मा ने बताया, यदि कोई व्यक्ति लंबे समय से हीन भावना से ग्रस्त है अथवा आत्महत्या करने की सोच रहा है तो वह एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। मानसिक अस्वस्थता के कारण ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है, उचित परामर्श और चिकित्सा पद्धति के माध्यम से इसका उपचार किया जा सकता है। आज कोरोना के दौर में आत्महत्या की जो ख़बरें मीडिया में आई हैं उसकी वजह बीमारी के प्रति डर और आर्थिक असुरक्षा है। इसमें मीडिया का अहम् रोल है। प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के दिशानिर्देशों के अनुसार मीडिया आत्महत्या के स्थान का विवरण न दे, आत्महत्या को सनसनीखेज़ या न बनायें, आत्महत्या के लिए उपयोग की गई विधि के वर्णन या आत्महत्या के प्रयास में प्रयुक्त विधि का विवरण समाचार में ना करें। आत्महत्या के मामले की रिपोर्टिंग या समाचार प्रकाशन के दौरान फोटोग्राफ, वीडियो फुटेज या सोशल मीडिया लिंक का उपयोग ना करें आदि।


      समस्या है तो समाधान भी है


डा. वर्मा का कहना है जब व्यक्ति अवसादग्रस्त या तनाव में होता हैं वह मरना नहीं चाहते बल्कि अपनी पीड़ा को मारना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें अकेले उस स्थिति का सामना करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपने परिवार के किसी सदस्य या मित्र अथवा किसी सहयोगी से बात भर कर लेने पर उसका समाधान मिल सकता है। ऐसे लोगों की पहचान आसान है। उन्हें ठीक से नींद नहीं आती, उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है, वे अपने मनोभावों को व्यक्त करने में भ्रमित रहते हैं, उनकी खानपान की आदतों में अचानक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है. या तो वे बहुत कम खाते हैं या बहुत ज़्यादा। आमतौर वे अपने फ़िज़िकल अपियरेंस को लेकर उदासीन हो जाते हैं, उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वे कैसे दिख रहे हैं, धीरे-धीरे वे लोगों से कटने लगते हैं। कई बार वह खुद को नुक़सान भी पहुंचाते हैं। 


क्या करें यदि मन में ऐसे विचार आते हों ?


नोडल अधिकारी के अनुसार जीवनशैली में बदलाव लाएं, ख़ुद पर ध्यान देना शुरू करें, खानपान को संतुलित करें, नियमित रूप से कुछ समय व्यायाम या योग करते हुए बिताएं। नकारात्मक सोच को बाहर का रास्ता दिखाएं। सबसे महत्वपूर्ण बात अकेले न रहें, परिवार और दोस्तों के संग रहें, सकारात्मक होकर कार्य करे। याद रखें, हर एक ज़िंदगी महत्वपूर्ण है इसे भरपूर जियें और तनाव से दूर रहें। सरकार द्वारा जारी हेल्पलाइन नम्बर 1075 पर पर भी इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं।


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