ये कलियुग की बात है , बेटी होना श्राप है

तारकेश्वर टाईम्स (हि.दै.)



ये कलयुग की बात है,
यहाँ हर गुनाह अब माफ़ है
ग़र जन्म लिया है बेटी का,
यक़ीनन तो ये श्राप है
न अब है दहसी लोग यहाँ,
है जिस्म के वहसी लोग यहाँ,
ग़र न हो पत्थर हो भगवान?
रौंदते जाओ अब ये संसार
पक्षपात किया है तुमने,
तब ये संसार गढ़ा है तुमने
यूँ लुटती आबरुओं को देखकर,
जहाँ ईश्वर भी चुपचाप है
ये इस कलयुग की बात है
कराह तो सुनी होगी न तुमने?
जब नोच रहे थे उस रूह को कुछ वहसी दरिंदे,
जिनके पास है कुछ तुच्छ न्याय के अधिकार
चुप है वो देखो शियासत के ठेकेदार
समझाओ तो कोई इन्हें अब,
दूर नही दिन वो अब,
काल चक्र दोहरायेगा जब,
बुत बने देखते हो न सब?
सोचो उसी कराह में तुम्हारा अपना हो जब?
न्याय के ठेकेदार नही,
एक अजब इंसान की तरह ही,
 न्याय मांगते फिरोगे तब तुम,
दर्द की बिंदु समझोगे जब तुम
ग़र नहीं हुआ अब न्याय यहाँ सब?
खत्म करे फिर कोख़ यहाँ सब
कोख़ मिटाने के फिर कारण हज़ार होंगे,
हाल रहा गर यूँ ही सब,
तो "बेशक बेटी बचाना एक चाल,
और एक समय में बेटियों के सिर्फ नाम होंगे"
ये ऐसी है एक दुनिया,
जहाँ अन्याय का पलड़ा बिल्कुल साफ है
ये इसी कलयुग बात है 
 -GOlden poetry (योगिता राज सिंह)


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