महाराष्ट्र का पहला कोरोना पीड़ित परिवार स्वस्थ

तारकेश्वर टाईम्स (हि.दै.)


पुणे । महाराष्ट्र का पहला कोरोनावायरस संक्रमित परिवार पूरी तरह से ठीक हो चुका है। परिवार के चारसदस्यों में से तीन को कोरोना का संक्रमण हुआ था, बुधवार शाम 4 बजे सभी घर लौट आए। हम यहां उनका नाम नहीं दे रहे ।  यह परिवार 5 मार्च को दुबई से मुंबई लौटा था और 9 मार्च यानी ठीक होली के दिन पता चला कि सबको कोरोनावायरस का संक्रमण है। फौरन पूरे परिवार को क्वारैंटाइन कर पुणे के डॉ. नायडू अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां 17 दिन बिताने के बाद बुधवार शाम उन्हें घर भेज दिया गया। 
 परिवार का कहना है कि दुबई जाने से पहले हमने कोरोना के बारे में बहुत नहीं सुना था। देश में भी इसका ज्यादा प्रभाव नहीं था। यह मेरे परिवार की पहली विदेश यात्रा थी। हम 40 लोगों के ग्रुप का हिस्सा थे। 6 मार्च को हम पति-पत्नी बच्चों समेत पुणे लौटे। हमें हल्का बुखार और खांसी सी थी। तभी फैमिली डॉक्टर से बात की और उनकी सलाह पर डॉ. नायडू हॉस्पिटल जाकर अपनी लार का नमूना दिया। तकरीबन 8 घंटे तक वहीं हॉस्पिटल के एक कमरे में बंद रहे। देर रात रिपोर्ट आई और पता चला हम चार में से तीन को कोरोनावायरस का संक्रमण हो गया है।  



इस रिपोर्ट ने मेरे परिवार के ही नहीं पूरे सूबे के कान खड़े कर दिए। मेरे बाद मेरी इंजीनियर बेटी में भी कोरोना की पुष्टि हो गई। हालांकि, बेटे की रिपोर्ट नेगेटिव आई। इसके बावजूद उसे भी हॉस्पिटल के एक कमरे में 17 दिन तक बंद करके रखा गया। 10 मार्च को यह जानकारी देशभर में फैल गई। अगले तीन -चार दिन किसी बुरे सपने से कम न थे। पहले दो दिन तो कुछ रिश्तेदारों ने बाहर से खाना लाकर दिया, फिर राज्य सरकार की पहल के बाद हॉस्पिटल में ही खाना मिलने लगा। खाने में किसी तरह का कोई खास परहेज तो नहीं था, पर डॉक्टरों ने ज्यादा तला - भुना खाने से मना किया था।
कोरोना की पुष्टि हो जाने के बाद हमें बार-बार यह बात कचोटने लगी कि हमारी वजह से 40 अन्य लोगों को भी संक्रमण हो गया होगा। हालांकि, दो दिन बाद ही यह साफ हो गया कि ग्रुप के ज्यादातर लोग नेगेटिव हैं। शुरू में तो हमें ऐसा लग रहा था कि हम पूरे महाराष्ट्र में कोरोना फैलाने के जिम्मेदार हैं। कुछ करीबी दोस्तों को छोड़ दें तो ज्यादातर लोगों के रुख में बदलाव भी देखने को मिला।
हॉस्पिटल के डॉक्टरों और नर्सों का रवैया पूरे 17 दिन तक बेहद अच्छा रहा। शुरुआती चार दिनों में मुझे, मेरी पत्नी और बेटी को अलग-अलग कमरों में रखा गया और उसके बाद हमें कोरोना मरीजों के लिए बने स्पेशल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। इस वार्ड में मेरे बेड से दो बेड छोड़कर पत्नी को और उससे दो बेड छोड़कर बेटी को रखा गया था। दिन में तीन बार डॉक्टर और नर्स जांच के लिए आते थे। इसी दौरान दवाई भी दी जाती थी। 14 दिन हो जाने के बाद यानी 23 मार्च को फिर से कोरोना जांच की गई, इसमें हमारी रिपोर्ट पहली बार नेगेटिव आई। इसके बाद 25 मार्च को फिर से पूरे परिवार का चेकअप हुआ और सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई। इसके बाद हमें जान में जान आई।
हॉस्पिटल में रहने के दौरान हम जरूर क्वारैंटाइन थे, पर हॉस्पिटल के डॉक्टर और नर्सों ने परिवार के सदस्य की तरह हमारी सेवा की। हालांकि, हमें बाहर की कोई भी जानकारी नहीं दी जा रही थी। बस यही पता चलता था कि कोरोना का कोई नया पेशेंट हॉस्पिटल में आया है। हॉस्पिटल में न्यूज पेपर नहीं आता था। पर हमसे टीवी लगवाने के लिए पूछा था। हॉस्पिटल वालों का कहना था कि कोरोना के समाचार सुनने से नेगेटिविटी आएगी। हालांकि, टाइम पास करने के लिए हम मोबाइल और आईपैड पर कपिल शर्मा शो, नेट फ्लिक्स के शो और यू-ट्यूब देखा करते थे। पूरा परिवार वीडियो चैट के जरिए एक-दूसरे के संपर्क में रहता था।



हालांकि, दो बार रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद मेरे बेटे को दूर से हमसे बात करने और देखने की मंजूरी मिल गई थी।
पूरी तरह से नेगेटिव रिपोर्ट आने के बाद मैं और मेरी पत्नी बुधवार शाम और मेरी बेटी बुधवार रात को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिए गए। डॉक्टर्स ने हमें फूल देकर विदा किया। हम एम्बुलेंस से ही अपनी सोसाइटी तक पहुंचे और कैंपस में कदम रखते ही लोगों ने बालकनी में आकर ताली, थाली और घंटी बजाकर हमारा स्वागत किया। यह सब देख हमारे आखों में आंसू थे और यह खुशी के आंसू थे। ऐसा लग रहा था कि हम बुरे दिनों से अच्छे दिनों में वापस आ गए हैं।
डॉक्टरों की सलाह है कि अभी हम और अगले 14 दिनों तक परिवार के साथ होम क्वारैंटाइन में ही रहें। हम अपने घरों में ही हैं। सभी को हमने अपने घर आने से मना कर दिया है। हमारी दुश्वारियों का समय अब खत्म हो चुका है। हमें उम्मीद है कि फिर से लोग हमें समाज में उसी तरह स्वीकार करेंगे, जैसे हम पहले थे। लोगों को समझना होगा कि कोरोनावायरस कोई जान बूझकर अपने अंदर नहीं लाता है। हमें नहीं पता था कि यह कैसे हमारे भीतर दाखिल हो गया। लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि इससे संक्रमित 99% लोग नियम का पालन कर इससे मुक्ति पा सकते हैं।
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