याद किये गये डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद

बस्ती (उ.प्र.)। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद को उनके 57 वीं पुण्य तिथि पर कायस्थ वाहिनी अन्तराष्ट्रीय के मण्डल अध्यक्ष मुकेश श्रीवास्तव के संयोजन में शुक्रवार को नमन् किया गया। धर्मशाला रोड स्थित चित्रगुप्त मंदिर परिसर में राजेन्द्र बाबू को नमन् करते हुये वाहिनी प्रमुख पंकज श्रीवास्तव ने कहा कि वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे, उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में  अपना योगदान दिया, जीवन के आखिरी समय में वह पटना के निकट सदाकत आश्रम में रहने लगे, यहां पर 28 फरवरी 1963 में उनका निधन हो गया। उनके जीवन से लोगोें को प्रेरणा लेनी चाहिये कि किस तरह से उन्होने देश सेवा के लिये अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।



वाहिनी के प्रदेश उपाध्यक्ष अजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि भारत रत्न राजेन्द्र बाबू दो बार देश के राष्ट्रपति रहे। सादा जीवन उच्च विचार वाले डॉ राजेन्द्र प्रसाद पर हम सभी को गर्व है और उनका जीवन हमेशा लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। आज वे हमारे बीच जीवित नहीं है किन्तु उनका योगदान सदैव याद किया जायेगा।
प्रदेश सचिव वी.के. श्रीवास्तव ने कहा कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपिता महात्मा  गांधी से बेहद प्रभावित थे, राजेंद्र प्रसाद को ब्रिटिश प्रशासन ने 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान जेल में डाल दिया था। देश को आजाद कराने से लेकर संविधान निर्माण तक में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। वाहिनी जिलाध्यक्ष दुर्गेश श्रीवास्तव ने राजेन्द्र बाबू को नमन् करते हुये कहा कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा (बिहार) के जिला स्कूल से हुई।  उन्होंने 18 साल की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास किया।  विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें 30 रुपये की स्कॉलरशिप मिलती थी।  1915 में राजेंद्र बाबू ने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की, और कानून में ही डाक्टरेट भी किया।
राजेंद्र बाबू को नमन् करने वालों में विपुल श्रीवास्तव, प्रशान्त श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, रत्नम श्रीवास्तव, आशीष श्रीवास्तव, राजकुमार श्रीवास्तव, सर्वेश श्रीवास्तव, जितेन्द्र श्रीवास्तव आदि शामिल रहे।


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