उपद्रवियों पर कैसे लगेगी लगाम

लखनऊ । दिल्ली में पिछले दो महीनों में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध और उसके नाम पर बार−बार दिल्ली के अमन−चैन को तार−तार होते देखना एक सभ्य समाज पर बदनुमा दाग है। दिल्ली में जहां पूरे देश के मुकाबले सबसे अधिक पढ़े−लिखे और सम्पन्न लोग रहते हैं। जहां से उठने वाली किसी भी 'आवाज' से देश की नब्ज टटोली जाती हो, वहां एक ऐसे कानून (सीएए) के नाम पर कोहराम मचना तर्कसंगत नहीं लगता है, जिसका देश की जनता से कोई लेना-देना ही नहीं है। जरूर इस कोहराम के पीछे कुछ शरारती ताकतों और लोगों का स्वार्थ छिपा होगा।



यह बात प्रमाणिक तौर पर इसलिए कही जा सकती है क्योंकि सीएए के विरोध के नाम पर दिल्ली सहित पूरे देश में कुछ ऐसा माहौल बना दिया गया है, मानो मोदी सरकार सीएए के नाम पर करोड़ों लोगों को देश से निकाल फेंकेगी। उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा। हद तो तब हो गई जब लखनऊ घंटाघर में सीएए का विरोध कर रही महिलाओं ने धरना स्थल पर डिटेंशन सेंटर का मॉडल बनाकर उसमें अपने आप को 'कैद' कर लिया। 'कैद' में धरना दे रही महिलाएं जोर−जोर से रोने का नाटक करने के साथ चिल्ला−चिल्ला कर मोदी सरकार को कोस रही थीं।
  
क्या लखनऊ, क्या मुम्बई, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु या अन्य कोई राज्य अथवा शहर हो, सीएए के विरोध में हिंसा और उसके नाम पर हो रही तरह−तरह की ड्रामेबाजी कमोवेश पूरे देश में एक जैसी है। दिल्ली का शाहीन बाग तो सीएए का विरोध करने वालों का रोल मॉडल ही बन गया है। दिल्ली में हालात कुछ ज्यादा खराब हैं तो इसके लिए केन्द्र सरकार और न्यायपालिका भी कम दोषी नहीं है, जिसने समय रहते प्रदर्शनकारियों पर नकेल नहीं लगाई। बल्कि इसे लटकाने−भटकाने का काम किया। मोदी सरकार द्वारा सीएए विरोध की चिंगारी को ठंडा करने का प्रयास गंभीरता से नहीं किए जाने के कारण ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दिल्ली में मौजूदगी के समय ही दिल्ली को 'आग' लगा दी गई ताकि देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी धूमिल किया जा सके। सबसे दुखद यह है कि दिल्ली में छात्रों से लेकर बुद्धिजीवी तक सीएए के विरोध में सड़क पर हंगामा करते हैं। मगर किसी के पास इस का जवाब नहीं है कि सीएए का विरोध क्यों ? इससे आम हिन्दुस्तानी को क्या नुकसान होगा ? सवाल जब सीएए विरोध के कारणों पर पूछा जाता है तो यह लोग एनपीआर और एनआरसी (जिसका खाका भी नहीं खींचा गया है) पर चर्चा छेड़ देते हैं। जेएनयू और जामिया तो सीएए विरोध का गढ़ ही बन गया है, जिसके चलते दिल्ली वालों के दिन परेशानियों में बीत रहे हैं। जगह−जगह रास्ता रोक कर प्रदर्शन के चलते पूरी दिल्ली बंधक-सी नजर आती है। पहले लगता था कि दिल्ली चुनाव के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन चुनाव के बाद स्थिति और भी बदत्तर हो गई।


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