टाॅफी के बहाने मासूम के रेपिस्ट को फांसी

 तारकेश्वर टाईम्स (हि0दै0)


           ( सुरेश पाण्डेय )
लखनऊ।पॉक्सो एक्ट के विशेष न्यायाधीश अरविंद कुमार मिश्रा ने छह साल की मासूम को टॉफी दिलाने के बहाने बहला फुसलाकर दुष्कर्म करने के बाद हत्या करने के दोषी ठहराए गए बबलू उर्फ अरफात को शुक्रवार को मृत्युदंड की सजा सुनाई है। साथ ही 40 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। आरोपी इतना शातिर था कि मासूम की हत्या के बाद उसका शव अपने घर में बंद कर उसके पिता के साथ उसकी तलाश करने में जुटा था। कुछ देर बाद संदेह और पूछताछ के बाद आरोपी के घर की तलाश ली गई, तब वहां से शव बरामद हुआ। इसके बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। राजधानी की कोर्ट ने इस मामले में महज चार महीने सुनवाई पूरी कर निर्भया कांड के बाद गठित पॉक्सो एक्ट के मामले में पहली फांसी की सजा सुनाई है। यह बेटियों से दरिंदगी के मामले में राजधानी में सबसे कम समय में आने वाला पहला फैसला भी बताया जा रहा है।



कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दोषी बबलू को बच्ची मामू कहती थी। वह उसके पिता के साथ काम भी करता था और उसका मृतका के घर आना जाना था। दोषी ने 15 सितंबर 2019 को मृतका को टॉफी दिलाने के बहाने अपने घर लेकर गया। जहां उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद गला रेता और गला दबाकर हत्या कर दी। जिससे यह प्रतीत होता है कि आरोपी पूर्ण रूप से संतुष्ट होने चाहता था कि बच्ची हर हाल में मर जाए। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के इस आचरण के कारण समाज मे लोग रिश्तेदारी और नातेदारी तथा दोस्ती के आधार पर बने संबंधों पर भी अविश्वास करने लगे है जो कि भारतीय परिवेश में सामाजिक व्यवस्था के लिए घातक है।
ऐसी घटनाओं से बच्चों को नहीं मिल रहा स्वतंत्र माहौल
कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी ने 6 वर्ष की बच्ची के साथ जैसी घटना की है उसका समाज पर व्यापक रूप से गलत असर पड़ रहा है और ऐसी घटना की वजह से समाज में लोग अपबे छोटे-छोटे बच्चों को स्वतंत्रता पूर्वक खेलने व व्यवहार करने की आजादी नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि लोगों के मन मे हमेशा ये आशंका बनी रहती है कि कहीं कोई उनके बच्चे के साथ लैंगिक या यौन अपराध न कर दे। जिसके चलते देश की नई पीढ़ी अर्थात छोटे बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा है क्योंकि वह खुल कर स्वतन्त्र माहौल में अपना बचपन व्यतीत नहीं कर पा रहे हैं। 


कोर्ट ने आरोपी बबलू उर्फ अरफात को मृत्युदंड से दंडित करते हुए इस मामले को विरलतम से विरल मानते हुए कहा कि मृतका घटना के समय मात्र 6 वर्ष की थी जो कि किसी प्रकार का कोई प्रतिरोध नहीं कर सकती थी। घटना के समय मृतका ने ढंग से दुनिया भी नहीं देखी थी और न ही वह अपना प्राकृतिक जीवन ही जी पाई थी और उसके साथ ऐसा अपराध किया गया जिसकी सभ्य समाज मे कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
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