शरीफ को पद्मश्री : कोई लावारिश नहीं मरेगा

तारकेश्वर टाईम्स (हि0दै0)


नई दिल्ली । साइकिल मिस्त्री से लावारिस लाशों के मसीहा बने मोहम्मद शरीफ के जीवन का सफर बड़ा दर्दनाक है। समाजसेवा के क्षेत्र में पद्मश्री से विभूषित किए जाने की घोषणा से बेखबर मोहम्मद शरीफ महिला चिकित्सालय में स्थित एक मजार के पास शनिवार की देर शाम श्रमदान करते मिले । उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए बड़ी ही बेबाकी से कहा कि 'इस दुनिया में न कोई हिन्दू है और ना कोई मुसलमान, सभी हैं इंसान'।



     27 वर्ष पहले बदल गए जिन्दगी के मायने
27 वर्ष पहले सुलतानपुर कोतवाली के तत्कालीन इंस्पेक्टर की ओर से एक तफ्तीश उनके घर पहुंची तो उनका सारा संसार ही उजड़ गया। दरअसल, दवा लेने एक माह पहले गया उनका पुत्र रेलवे ट्रैक पर लावारिस हालत में मृत मिला था। पहने हुए कपड़ों से उसकी पहचान मोहम्मद शरीफ के पुत्र मोहम्मद रईस खान के रूप में हुई। इस हृदय विदारक घटना ने उन्हें इस कदर तोड़ दिया कि उन्होंने लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार करने का मन बना लिया जो सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है।


             पांच हजार से अधिक लावारिस शव का कर चुके हैं अंतिम संस्कार
जिले में चचा के नाम से मशहूर लगभग 80 वर्षीय मोहम्मद शरीफ अब तक तीन हजार  से अधिक हिन्दू और 2500 से अधिक मुस्लिम शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। कहते हैं कि कोई भी हो, इस दुनिया में लावारिस नहीं होना चाहिए। यही वजह है कि खुद ही शव को लेकर उसके अंतिम संस्कार के लिए निकल जाते हैं। खास बात यह है कि हिन्दू शव को हिन्दू परम्परा से मुखाग्नि देते हैं तो मुस्लिम शवों को इस्लाम के अनुसार ही दफनाते हैं।



नगर निगम से मिलती है महज 15 सौ रुपए की सहायता
लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के लिए मोहम्मद शरीफ को नगर निगम से प्रतिमाह महज 15 रूपए की आर्थिक सहायता मिलती है। जबकि प्रतिमाह सात लावारिस शव हिन्दू का वह जलाते हैं। उन्होंने बताया कि बाकी रूपयों की जरूरत शहर के मानिंद शख्सियतों के आर्थिक सहयोग से पूरी हो जाती है।


       दो पुत्रों का हो चुका है इंतकाल
मोहम्मद शरीफ के चार पुत्र थे। एक पुत्र मोहम्मद रईस को सुलतानपुर में खो चुके मोहम्मद शरीफ के दूसरे पुत्र नियाज की हृदयगति रूकने से मौत हो चुकी है। एक स्कूल की गाड़ी चलाने वाला मोहम्मद शगीर अकेले परिवार के साथ रहते हैं। जबकि मोहम्मद जमील उनके साथ ही रहते हैं। ह्दय विदारक यह भी है कि नियाज की मौत के बाद उनकी चार पुत्रियों की देखभाल भी चचा शरीफ ही कर रहे हैं।



      टीनशेड का कच्चा मकान है आशियाना
जिले में लावारिस लाशों के मसीहा के रुप में मशहूर मोहम्मद शरीफ आज भी किराए के मकान में जीवन यापन कर रहे हैं। उनका मकान भी बेहद जर्जर और टीन शेड का है। कहते हैं कि किसी तरह जीवन बिता लेंगे , लेकिन यह काम नहीं छोड़ेेंगे । खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि यह मेरा नहीं बल्कि सभी का सम्मान है। लावारिस लाशों का कोई नहीं होता, यदि इसकी परवाह होने लगे तो कम से कम कोई लावारिस नहीं मरेगा।


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