किसी भारतीय नागरिक को प्रभावित नहीं करता सीएबी , पढ़ें खबर और शांत करें जिज्ञासा
तारकेश्वर टाईम्स (हि0दै0)
सीएबी के बारे में पूछे जाने वाले बारह प्रश्नों के उत्तर से सन्तुष्ट होने के बाद प्रत्येक भारतीय को निश्चिंत रहने की आवश्यकता है । इसके साथ समाज इसके प्रति जागरूक बढ़ाते हुए कहीं भी भ्रम और अफवाह की भ्रांतियों को दूर कर एक अच्छे और सजग नागरिक के कर्तव्यों का निर्वहन कर राष्ट्र के अपने दायित्वों का भली भांति पालन करके सभी को इसके सम्बन्ध में जानकारियां दी जानी चाहिए , जिससे सभी आम नागरिकों की जिज्ञासाओं का समाधान हो सके । बारह प्रश्नों के उत्तर नीचे दिये गये हैं ।
नागरिकता संशोधन अधिनियम के सम्बन्ध में स्पष्ट अवधारणा के साथ जिलाधिकारी बस्ती आशुतोष निरंजन द्वारा आम अवाम से शान्ति व्यवस्था बनाए रखने की अपील करते हुए कहा गया है कि सभी धर्म गुरूओं / मौलवी आदि से इस कानून के बारे में जागरूकता पैदा करने की भी अपील की गयी है ।
इस सम्बन्ध में भारत सरकार द्वारा ऐसे हिन्दू , सिख , बौद्ध , जैन , पारसी व ईसाई व्यक्ति जो अन्य देशों से आकर निवास कर रहे है , उन्हें नागरिकता का आधार दिये जाने के संबंध में पारित अधिनियम के विरोध में देश व प्रदेश में जगह-जगह धरना प्रदर्शन किया जा रहा है । समाज हमारा है और बातों को अच्छी तरह समझना और अमन चैन बनाए रखना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है ।
जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन ने इस अधिनियम के बारे में आम जन मानस की उत्सुकता को देखते हुए प्रश्नोत्तर भी दिये हैं : -
प्रश्न - 1: - क्या सीएबी बिल भारतीयों ( हिंदुओं , मुसलमानों , किसी को ) को प्रभावित करता है ?
उत्तर : - नहीं । इसका भारतीयों से किसी भी तरह से कोई लेना-देना नहीं है ।
प्रश्न - 2 : - यह किसके लिए लागू होता है?
उत्तर : - तीन देशों के हिंदुओं , सिखों , जैनियों , बौद्धों और , ईसाइयों के लिए , जो उन देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं , और जो एक दिसंबर 2014 से पहले से भारत में हैं ।
प्रश्न - 3 : - तीन देश कौन से हैं ?
उत्तर : - पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान ।
प्रश्न - 4 : - इन 3 देशों के हिंदू , सिख , जैन और ईसाईयों को किस तरह फायदा पहुंचाता है ?
उत्तर : - उनकी निवास आवश्यकता 11 से घटाकर 5 वर्ष कर दी गई है । वे इस कानून के तहत एक अधिकार के रूप में नागरिकता का दावा कर सकते हैं ।
प्रश्न - 5 : - क्या इसका मतलब यह है कि इन 3 देशों के मुसलमान कभी भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं कर सकते हैं ?
उत्तर : - नहीं । लेकिन वे 'थ्रू' प्राकृतिककरण नियमों को प्राप्त करने की सामान्य प्रक्रिया को समाप्त कर देंगे , जैसे - ग्यारह वर्ष का निवास स्थान आदि ।
प्रश्न - 6 : - क्या इन 3 देशों के अवैध मुस्लिमों को इस बिल के तहत स्वचालित रूप से निर्वासित किया जाएगा ?
उत्तर : - नहीं । सामान्य प्रक्रिया लागू होती है । प्राकृतिककरण के लिए उनका आवेदन उनकी पात्रता के आधार पर हो सकता है या नहीं दिया जा सकता है ।
प्रश्न - 7 : - क्या अन्य देशों में उत्पीड़न का सामना करने वाले हिंदू इस कानून के तहत आवेदन कर सकते हैं ?
उत्तर : - नहीं ।
प्रश्न - 8 : - क्या यह बिल उत्पीड़न के अन्य रूपों पर लागू होता है - राजनीतिक, नस्लीय, यौन आदि ।
उत्तर : - नहीं । बिल अपने इरादे में बहुत विशिष्ट है - हिंदू धार्मिक उत्पीड़न 3 देश ।
प्रश्न - 9 : - ये 3 देश ही क्यों ? और केवल हिंदुओं का धार्मिक उत्पीड़न क्यों ?
उत्तर : - इन 3 देशों में हिंदुओं के व्यापक , व्यवस्थित और संस्थागत उत्पीड़न का एक ट्रैक रिकॉर्ड है ।
प्रश्न -10 : - श्रीलंकाई तमिलों के बारे में क्या है ?
उत्तर : - (1) युद्ध को अब एक दशक से अधिक समय हो चुका है । (२) धार्मिक आधार पर कभी कोई उत्पीड़न नहीं हुआ । यह नस्लीय तर्ज पर था । दशकों के गृह युद्ध के बाद श्रीलंकाई लोगों ने तमिल के संस्थागत भेदभाव को खत्म कर दिया ।
प्रश्न - 11 : - क्या शरणार्थियों की देखभाल के लिए UN के तहत भारत का दायित्व नहीं है ?
उत्तर : - हाँ यह करता है । और यह उससे दूर नहीं जा रहा है । लेकिन नागरिकता की पेशकश करना उसका कोई दायित्व नहीं है। प्रत्येक देश के प्राकृतिककरण के अपने नियम हैं । भारत इस कानून के तहत अन्य शरणार्थियों को दूर नहीं करने जा रहा है। यह संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत उनकी मेजबानी करेगा, इस निहितार्थ में कि किसी दिन वे स्थिति में सुधार होने पर अपने घर लौट आएंगे । लेकिन इन 3 देशों के हिंदुओं के मामले में , यह कानून इस वास्तविकता को स्वीकार करता है कि इन 3 देशों में उत्पीड़न का माहौल कभी नहीं सुधरने वाला है ।
प्रश्न - 12 : - पाकिस्तान में बलूचियों , यहूदियों , म्यांमार में रोहिंग्याओं को इस दयालुता के लिए क्यों नहीं माना जाना चाहिए ?
उत्तर : - उन्हें मौजूदा कानूनों के तहत माना जाएगा । विशेष श्रेणी के अंतर्गत नहीं । ( आमोद उपाध्याय )
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